विशेष बात यह थी कि स्त्रीप्रधान इस नाटक की प्रस्तुति में मंचसज्जा से लेकर वितरण-वयवस्था तक की ज़िम्मेदारी महिलाओं के सशक्त कंधों पर थी। अपनी सहयोगियों के साथ वितरण और व्यवस्था की ज़िम्मेदारी निभा रहीं श्रीमती बीना वाघेला कहती हैं कि ग़ैर हिन्दी दर्शकों को हिन्दी रंगमंच के लिए रंगशाला तक खींचकर लाना चुनौतिपूर्ण कार्य था, लेकिन सबके मिलेजुले प्रयास की वजह से यह कार्य भी सरल हो गया।
इस मौक़े पर मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित शांगहाई कांसुलावास प्रमुख श्री प्रकाश गुप्ता ने कलाकारों की तारीफ़ करते हुए कहा कि काफी साल पहले उन्होंने इस काव्य को पढ़ा ज़रूर था लेकिन वर्षों बाद शांगहाई में इसका मंचन देखकर मन हर्षित हो उठा। शांगहाई रंगमंच अकादमी(विदेश रंगमंच विभाग) के वाइस प्रेसिडेन्ट प्रोफ़ेसर "यूउ" ने कलाकारों और निर्देशक की भूरि-भूरि प्रशंसा की। हिन्दी भाषा का ज्ञान नहीं होने की वजह से प्रोफ़ेसर यूउ नाटक की विवेचना नहीं कर पाए लेकिन उन्होंने इसे अच्छी शुरूआत बतायी साथ ही भविष्य में हिन्दी नाटककारों की कृति को चीनी भाषा में प्रस्तुत करने की इच्छा भी जतायी। भारतीय संघ,शांगहाई के प्रमुख श्री राज खोसा ने प्रस्तुति और कलाकारों की प्रशंसा करते हुए इसे हिन्दी प्रोत्साहन के लिए सराहनीय क़दम बताया।