छे-ग पेड़ पत्ते से बनी पीपनी बजाते हुए
दक्षिण पश्चिमी चीन के युन्नान प्रांत के होंग-ह हानी जाति और यी जातीय स्वायत्त प्रिफेक्चर में फूछुन गांव है। जहां पीढ़ी दर पीढ़ी बसे हुए हानी जाति के लोग गीत गाते हुए खेती करते हैं। जब प्रमुख गायक गाना गाना शुरू करता है, तो अन्य लोग उसके साथ-साथ गाते हैं। कभी-कभी गांववासी तीन तारों वाला वाद्ययंत्र या पेड़ के पत्तों का प्रयोग कर धुन बजाते हुए गाते हैं। उनके गानों में जीवन, प्रेम और प्रकृति का गुणगान होता है। गीत की धुन बेहद मीठी, सीधी-सादी और कर्णप्रिय होती है। वर्ष 2006 में इस प्रकार की गायन शैली को राष्ट्र स्तरीय गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासत के रूप में शामिल किया गया, जिसे हानी जातीय बहु-ध्वनि वाला लोकगीत कहा जाता है।
51 वर्षीय छे-ग की आवाज़ बहुत सुरीली है, जो हानी जातीय बहु-ध्वनि लोकगीत की राष्ट्र स्तरीय उत्तराधिकारी है। वह"बुवाई का गीत"समेत कई गीतों में प्रमुख गायिका है।
अब नानी बन गई छे-ग की आवाज़ अब भी मधुर है। बचपन से ही उसे गीत गाना पसंद है। उसके लिए गीत गाना अपनी भावना प्रकट करने के साथ-साथ आदत और आवश्यकता बन गई है। उसके लिए पानी पीना जैसा है और जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है। हानी जाति की गायिका छे-ग ने कहा:"बचपन में मैं नानी और मां की सहायता कर छोटी बहन और छोटे भाई की देखभाल करती थी। वे काम करते हुए प्रेम-गीत गाती थीं। उस समय मुझे लगा कि प्रेम गीत इस प्रकार भी गाया जा सकता है। धीरे-धीरे मैं नानी और मां से गीत गाना सीखने लगी।"
छे-ग को चीनी भाषा में मेंडारिन बोलनी और समझनी नहीं आती है। उसके साथ संपर्क करने के लिए दुभाषिया की जरूरत पड़ती है। लेकिन बातचीत से लगता है कि वह उत्साहपूर्ण और खुले दिल वाली हानी जातीय महिला है। वह कभी आसपास खड़े पेड़ से पत्ते को तोड़कर छोटी-सी पीपनी बनाकर बजाती है। सुनने वाले श्रोता हानी लोगों के संगीत और प्रकृति के बीच सामंजस्य महसूस कर सकते हैं।