पहाड़ के बीचोंबीच स्थित होने के कारण इस मठ के आसपास मूल्यवान नस्लों के बहुत से परिंदे पाए जाते हैं। हर साल अप्रैल से अक्तूबर तक बड़ी संख्या में पर्यटक और बौद्ध अनुयायी यहां आते हैं। सूत्रों के अनुसार अगर किस्मत साथ देती है, तो लोग इन सुन्दर परिंदों को देख पाते है, जो दुनिया के बाकी हिस्सों में देखने को कतई नहीं मिलते हैं। बासांगत्जरन ने कहा कि ये परिंदे मानव से नहीं डरते। वे कभी कभार भिक्षुणियों की बौद्धसूत्र पढने की आवाज के साथ-साथ चहकते हैं। यह दृश्य बहुत दिलचस्प है।
सुबह 10 बजे मंदिर-परिसर में आने वाले आम लोगों की संख्या अधिक होने लगी। लोगों की भीड़ में गधों के एक दस्ते की ओर हमारे संवाददाता का ध्यान गया।
बात यह है कि इस मठ का जीर्णोद्धार हो रहा था। पहाड़ की ढलान पर होने की वजह से जीर्णोद्धार के लिए जरूरी ईंटों को गधों के जरिए मठ तक पहुंचाया जाना पड़ा।
गधों के गलों पर लगी कांस्य घंटियां लय-तार पर से बजती सुनाई दे रही थीं।
मठ के नजदीक एक बड़ी गुफ़ा देखी गई। स्थानीय लोगों ने हमारे संवाददाता को बताया कि उस गुफ़ा में अब भी कोई न कोई भिक्षुणी बाहर से कटकर संन्यास ले रही है।