दोस्तो, कुछ समय पहले हमारे संवाददाता ने तिब्बत जाकर पहाड़ पर स्थित एक मठ-विहार का दौरा किया, जहां सिर्फ भिक्षुणियां रहती हैं।
सुबह 7 बजे भी प्राचीन ल्हासा शहर रात के अंधेरे में था, लेकिन सांगचेछ्वीचन नाम की एक भिक्षुणी ने कब से ही उठकर एक पोट घी-चाय बनाई। वो पद्यासन में बैठी चाय के साथ तिब्बती जौ के केक खा रही थी। उधर मेज पर रखे हुए टेप-रिकार्डर से बौद्ध सूत्र पढ़ने का रिकार्ड सुनाई दे रहा था।
भिक्षुणी बनकर मठ में आने के बाद यह उन का अपरिवर्तित दिनचर्या का एक भाग है। मठ में रहने वाली भिक्षुणियों के लिए हर रोज सुबह घी-चाय पीने और बौद्ध सूत्रों का प्रसारण सुनने के साथ दिन की शुरूआत होती है। करीब 8 बजे सानचेछ्वीचन अपने कक्ष से बाहर जाने को तैयार थी। सूर्योदय से पहले मठ-विहार का एक परिक्रमा करते हुए बौद्ध सूत्र पढ़ना उनका नियमित कार्यक्रम है।
सांगचेछ्वीचन 10 साल की उम्र में ही शोंगसअ नामक मठ में भिक्षुणी बनी थी। तबसे अब तक 10 साल हो गए हैं। शोंगसअ मठ तिब्बत की राजधानी ल्हासा की छ्वीश्वी काऊंटी में शोंगसअ पहाड़ पर स्थित है, जिसका 900 साल से अधिक पुराना इतिहास है। यह मठ तिब्बत में सबसे बड़ा भिक्षुणी मठ है, जिसमें तिब्बती बौद्धधर्म के निंगमा समुदाय की भिक्षुणियां संन्यास लेती हैं।
हमारे संवाददाता ल्हासा के नगरीय क्षेत्र से करीब 4.5 किलोमीटर दूर इस मठ की ओर जा रहे थे। वो ल्हासा के हवाई अड्डे के हाई स्पीड मार्ग से गाड़ी चलाते हुए लगभग एक घंटे बाद शोंगसअ पहाड़ पहुंचे।