पहाड़ की ढलान पर लाल और सफेद रंग वाले मकानों से बना मठ-विहार दिखाई दे रहा था। उसके निकट पंक्तियों में खेड़ सफेद मकान तो आम लोगों के आवास हैं।
सुबह साढ़े 8 बजे पौ फटने लगा। सूर्योदय के साथ उषा अपनी लालिमा बिखेरने लगी। धीरे-धीरे लालिमा ने पहाड़ के साथ पूरे मठ-विहार को अपने गोद में ले लिया। मठ की छत पर उत्कीर्ण दो हिरणों की आकृति वाला स्वर्णिम बौद्ध चक्र उषा की लालिमा में अत्यंत गंभीर दिख रहा था। मठ के मुख्य भवन से बौद्ध सूत्र पढ़ने की आवाज सुनाई दे रही थी। हमारे संवाददाता ने देखा कि करीब 300 भिक्षुणियां पद्यासन में बैठी बौद्धसूत्र पढ़ रही थीं। उनमें हरेक के सामने मोटी-मोटी बौद्ध पुस्तकें रखी हुई थीं। हमारे संवाददाता को बताया गया कि हर रोज सुबह की कक्षा में कोई प्रतिष्ठित भिक्षुणी अध्यापिका के रूप में बौद्ध शिक्षा देती हैं, अन्य भिक्षुणियों के सवालों के जवाब देती हैं और उनके होमवर्क को परखती हैं।
शोंगसए मठ के आम मामलों की देखरेख करने वाले कार्यकर्ता बासांगत्जरन ने जानकारी दी कि यह मठ परंपराओं का कड़ाई से पालन करने, गंभीरता से बौद्ध शिक्षा देने और बौद्ध सूत्रों का सटीक उच्चारण करने के अपने उच्च मापदंड के लिए तिब्बती बौद्ध धर्म-जगत में प्रसिद्ध है। हर साल बहुत सी भिक्षुणियां अध्ययन के लिए यहां आती हैं।