पगोडा निर्माण की शैली में पर्याप्त भिन्नता है। मीनारनुमा पगोडा, मंडपनुमा पगोडा, सटी ओलतियों का पगोडा, स्तूपाकार पगोडा, सुसज्जित रंगीन पगोडा, भव्यकार वज्त्रासन से युक्त पगोडा आदि भिन्न शैलियां हैं।
ईंट या पत्थर का मीनारनुमा पगोडा काष्ठ पगोडा का अनुकरण है। इसमें पहली मंजिल के रूपाकार की पुनरावृत्ति होती है, पर उसका अनुपात क्रमशः कम होता जाता है। थाडं कालीन पगोडा अधिकतर चौकोर हैं और सुडं कालीन पगोडा षटकोणीय या अष्ट कोणीय हैं। सुडं राजवंश के बाद निर्मित मीनारनुमा पगोडा में ईंटों के स्तंभ मुख्य संरचना के अभ्यंतर तक बने हुए हैं और वे दीवारों, सीढ़ियों व गलियारों से जुडे हुए हैं। इस शैली के पगोडा की यह विशेषता है कि इसमें ऊपरी मंजिल तक सीढ़ियों से जाया जा सकता है और हर मंजिल पर खिड़की और दरवाजे बने हुए हैं।
सटी ओलतियों वाला पगोडा ठोस या खोखला हो सकता है, पर आम तौर पर इसके अंदर नहीं जाया जा सकता। यह भी काष्ठ पगोडा का अनुकरण है। ऐसे पगोडा की ऊंची नींव होती है, जिसके ऊपर मुख्य मंजिल स्थित होती है। मुख्य मंजिल की ओलतियां एक दूसरे से सटी होती है, ऊपर वाली ओलती नीचे वाली ओलती से क्रमशः छोटी होती जाती है।