पगोडा प्राचीन चीनी वास्तुशिल्प में बाहर से आई विशेषता है। पिछले दो हजार वर्षों में इसका वास्तुशिल्पीय विकास हुआ है। आरंभ में पगोडा मुख्यतः लकड़ी के बनाए जाते थे, पर बाद में ईंट व पत्थरों का प्रयोग होने लगा।
पगोडा में चीनी बहुमंजिली मीनार और प्राचीन भारत के स्तूप के तत्व शामिल हैं। प्राचीन भारत में स्तूपों का निर्माण बौद्ध स्मृति अवशेषों को सुरक्षित रखने के लिए किया गया। प्रथम शताब्दी में बौद्ध धर्म के साथ-साथ वास्तुनिर्माण की यह शैली भी चीन आई।
आरंभ में पगोडा लकड़ी के बनाए गए और उनमें से अधिकांश आग में जलकर नष्ट हो गए। थाडं(618-907) और सुडं (960-1271) राजवंशों में इमारती सामग्री में लकड़ी की जगह ईंट और पत्थरों ने ले ली। इस शताब्दी से पहले बने अधिकांश पगोडा ईंट और पत्थरों के बने हैं। इनकी संख्या लगभग 10000 है। इनमें सबसे पुराना पगोडा हनान प्रांत के सुडंशान पहाड़ पर स्थित सुडंय्वे पगोडा है। इसका निर्माण छठी सदी में हुआ और यह ईंटों का बना है।