निषिद्ध नगर के न्य द्वारों की तुलना में थ्येनआनमन द्वार कहीं ज्यादा शानदार व भव्य है। द्वार की बुनियाद संगमरमर के 1.59 मीटर लंबे टुकड़ों से बनायी गयी, द्वार का मंच 24 किलोग्राम भारी ईंट से तैयार किया गया। द्वार की कुल ऊंचाई 34.7 मीटर है, द्वार के ऊपर भारी छत का विशाल भवन खड़ा है। द्वार के आगे निचश्वी नहर बहती है, नहर के ऊपर संगमरमर के पांच पुल हैं, जो थ्येनआनमन द्वार के पांच गेटों के बिल्कुल आमने-सामने खड़े हैं। द्वार के दोनों तरफ पत्थर के सिंह व कलात्मक खंभे हैं।
इटालवी यात्री मार्को पोलो ने अपने "यात्रा संस्मरण" में पश्चिमी देशों के लोगों के लिए इस प्राचीन पूर्वी देश का रहस्योद्धाटन किया। उसने चीन को "सोने व मसाले का धनाढ्य देश" कहा। इसके बाद यूरोप के अनेक व्यापारी और महात्वाकांक्षी व्यक्ति इस पूर्व देश के प्रति आकर्षित हुए।
1840 में अफीम युद्ध में साम्राज्यवादियों ने बारूद से, जिसका आविष्कार चीनियों ने किया था, चीन का दरवाजा तोड़ दिया। तब से सौ वर्षों तक थ्येनआनमन(शान्ति) द्वार को भीषण "अशान्ति" झेलनी पड़ी।
1900 के अगस्त में ब्रिटेन व अमरीका आदि कुल आठ देशों की संयुक्त सेना ने पेइचिंग पर कब्जा किया। थ्येनआनमन द्वार आक्रमणकारी सेना का फौजी कैंप बन गया। आज तक थ्येनानमन द्वार के सम्मुख स्थित खम्भों पर हमलावर सेनाओं की गोलियों के निशान हैं।
जनवरी 1919 में प्रथम विश्वयुद्ध के विजेता देशों का पेरिस में शान्ति सम्मेलन हुआ। सम्मेलन में चीन ने अपने पर जबरन थोपी गई असमान "21 धाराओं वाली संधि" को रद्द करने की न्यायपूर्ण मांग पेश की, मगर उसे न केवल ठुकरा दिया गया, बल्कि इसके विपरीत चीन के शानतुडं प्रदेश में जर्मनी के विशेषाधिकार जापान को देने का निर्णय किया गया। 4 मई को पेइचिंग के हजारों विद्यार्थियों ने पुलिस की घेरेबंदी को तोड़कर थ्येनआनमन द्वार के सामने सभाएं कीं और "राष्ट्रीय अधिकार की रक्षा करने व देशद्रोहियों को दंड देने" का नारा लगाया। यह चीन के इतिहास में विख्यात "चार मई आन्दोलन" है।
1935 में उत्तर-पूर्वी चीन के तीन प्रांतों पर कब्जा करने के बाद जापानी साम्राज्यवादियों ने उत्तर चीन की ओर निरंतर अपने पंजे फैलाए। चीनी मजदूर किसान लाल सेना ने जापानी हमले के खिलाफ उत्तर चीन की तरफ कूच करने के लंबे अभियान के रास्ते में समूची चीनी जनता से एकजुट होकर जापानी साम्राज्यवादियों के विरुद्ध अपने राष्ट्र को बचाने का आवाहन किया। 9 दिसंबर को पेइफिडं(आज का पेइचिंग) के 6000 से ज्यादा देशभक्त विद्यार्थियों ने थ्येनआनमन द्वार के सामने जुलूस निकाले और राष्ट्रीय सरकार से मांग की कि वह गृहयुद्ध बंद करे और एकजुट होकर जापानी आक्रमण का विरोध करे। लेकिन राष्ट्रीय सरकार की पुलिस ने देशभक्त विद्यार्थियों का दमन किया। मगर "9 दिसम्बर" का आन्दोलन समूचे देश में आक्रमण के विरुद्ध एक विशाल जनवादी आन्दोलन के नए उभार का प्रतीक बन गया।
7 जुलाई 1937 को, "मार्को पोलो पुल की घटना" के बाद हमलावर जापानी सेना ने "पूर्वी एशिया की नई व्यवस्था स्थापित करने" का एक बोर्ड थ्येनआनमन द्वार के ऊपर लगाकर फिर से एक बार चीनी जनता के मुंह पर कालिख पोत दी।
पहली अक्तूबर 1949 को पेइचिंग के थ्येनआनमन द्वार का कायापलट हुआ। इस दिन पेइचिंग के तीन लाख निवासियों ने थ्येनआनमन द्वार के चौक में भव्य सभा आयोजित करके चीन लोक गणराज्य की स्थापना का अभिनंदन किया। सभा में केंद्रीय जन सरकार के अध्यक्ष माओ चतुडं ने थ्येनआनमन द्वार के भवन पर पांच सितारों वाला लाल झंडा फहराकर यह घोषणा की कि चीन लोक गणराज्य की स्थापना हो गई है। तब से थ्येनानमन द्वार राजधानी पेइचिंग और नए चीन का प्रतीक बन गया।