चीन की राजधानी पेइचिंग के थ्येनआनमन द्वार का इतिहास 500 वर्षों से अधिक पुराना है। यह अनेक राजवंशों के शाही अधिकार का प्रतीक रहा है। राजनीतिक महत्व की दृष्टि से प्राचीन काल से आज तक दुनिया में कोई भी ऐसा वास्तु नहीं है, जो थ्येनआनमन द्वार के समकक्ष हो।
पेइचिंग शहर के सर्वोच्च स्थान चिडंशान पर्वत पर स्थित वानछुन मंडप (सदाबहार मंडप) पर खड़े होकर इसे देखा जा सकता है। शहर के उत्तर में खड़ी घंटाढोल मीनार से चिडंशान पर्वत का वानछुन मंडप, दक्षिण में स्थित निषिद्ध नगरी के तीन शाही भवन, थ्येनानमन द्वार, छ्येनमन द्वार और फिर युनतिडं द्वार(अब इसे हटा दिया गया) ये सब शहर के दक्षिण से उत्तर की ओर एक सीधी रेखा में खड़े हैं। यह सीधी रेखा समूचे शहर के मेरुदंड की तरह है। थ्येनआनमन द्वार इसी रेखा के मध्य भाग में दक्षिण कोने के सबसे महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित है।
15वीं सदी में यूरोप में पूंजीवाद का जन्म हुआ और व्यापारिक माल का अर्थतंत्र कुछ देशों में शीघ्र ही विकसित हुआ। इधर चीन में मिडं राजवंश के तीसरे सम्राट चू ती अपनी सामंती सत्ता को मजबूत बनाने के लिए पेइचिंग के बाहर लंबी दीवार की मरम्मत और पेइचिंग के अंदर शाही निषिद्ध नगर का पुनर्निर्माण करा रहे थे। यह शाही नगर दुनिया के किसी भी शाही महल से क्षेत्रफल, सुन्दर वास्तुकला, भव्य विनियोजन और शानदार रंग-सज्जा में आगे हैं।
थ्येनआनमन इस शाही निषिद्ध नगर का मुख्य द्वार है। शुरू में यह लकड़ियों से बना एक तीन मंजिला तोरण द्वार था और इसका नाम छडंथ्येन(स्वर्ग से आदेश प्राप्ति) द्वार था, शाही आज्ञा जारी करते समय, विवाह व पूजा और युद्ध के लिए प्रस्थान के मौके पर सम्राट इसी छडंथ्येन द्वार पर शानदार समारोह का आयोजन करते थे। यह स्थान आम प्रजा के लिए निषिद्ध था।
मिडं राजवंश का शासन 200 वर्षों से कुछ अधिक समय तक रहा है। 1644 में शेनशी प्रांत के पीली मिट्टी पठार के किसान नेता ली चछडं ने विद्रोही सेना लेकर पेइचिंग पर कब्जा करने के अद्देश्य से छडंथ्येन द्वार में प्रवेश किया। मिडं राजवंश का अंतिम सम्राट चू योच्येन घबराकर निषिद्ध नगर से भाग खड़ा हुआ और उसने नगर के पीछे चिडंशान पर्वत की तलहटी में एक बबूल पेड़ से लटककर आत्महत्या कर ली। मानचू जाति के सरदार नूरहाछी के वंशज ने मौका पाकर पूर्वी ल्याओनिडं से सेना भेजकर लंबी दीवार के दक्षिण की ओर कूच किया और वह पेइचिंग पर कब्जा करके इस निषिद्ध नगर का नया मालिक बन बैठा। 1651 में इस नगर के छडंथ्येन द्वार का वर्तमान आकार में निर्माण किया गया और उसका नाम "थ्येनआनमन" द्वार रखा गया।