क्या इंटरनेट अब आम लोगों को अधिक मूर्ख बना रहा है? ऐसा प्रश्न उठाना निराधार नहीं है। इंटरनेट लोगों को सूचना प्राप्त करने की सुविधा तैयार करता तो है, पर यह ठीक इसलिए है क्योंकि इंटरनेट लोगों को बहुत अधिक जानकारी प्रदान करता है, जिसके कारण लोग ऑनलाइन जानकारी के सागर में गिर जाते हैं।
इस सदी में विश्व में सबसे बड़ा परिवर्तन है उभरती अर्थव्यवस्थाओं का उदय। अब चीन विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में विकसित हो चुका है और वह एक ऐसा देश भी बना है जो उच्च प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा है।
जब शीत युद्ध समाप्त हुआ, तो संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिम में कुछ लोगों ने घोषणा की कि विश्व का वैचारिक संघर्ष समाप्त हो गया, पश्चिमी लोकतंत्र और नवउदारवादी अर्थशास्त्र ही निर्विवाद रूप से सर्वोच्च विचारधाराएं हैं, पश्चिमी मानक ही विश्व के मानक हैं, तथा पश्चिम की हर चीज ही विश्व का भविष्य है।
आज दुनिया भर औद्योगिक विकास के लिए कम कार्बन उत्सर्जन करना अपरिहार्य है। ऐसा इसलिए है क्योंकि दुनिया भर में बढ़ते तापमान के कारण उत्पन्न चरम जलवायु ने सामान्य मानव जीवन को खतरे में डाल दिया है। यदि इस पर अंकुश नहीं लगाया गया तो जलवायु परिवर्तन के कारण मनुष्यों का जीवित रहना असंभव हो जाएगा।
विश्व में किसी देश की स्थिति अंततः उसकी औद्योगिक और तकनीकी ताकत से निर्धारित होती है। तकनीकी नवाचार के बिना, यह अनिवार्य रूप से संपूर्ण विश्व को खो देगा। पिछले कई सौ वर्षों में, यूरोप ने विश्व वैज्ञानिक विकास और तकनीकी प्रगति की प्रवृत्ति का नेतृत्व किया और अनेक ताकतें यूरोप में जन्म हुईं।
मानवाधिकार हमेशा से एक ऐसा विषय रहा है जिसके बारे में पश्चिमी व्यक्ति बात करते रहे हैं। लेकिन, मानवाधिकार का सार क्या हैं और किस प्रकार के वातावरण में लोगों को किस प्रकार के मानवाधिकार प्राप्त होने चाहिए, इस बारे में अलग-अलग विचार मौजूद हैं।
चाहे चीन हो, भारत हो या पश्चिमी देश, प्राचीन काल से ही बौद्धिक वर्ग ने विशेष सामाजिक जिम्मेदारियां निभाई हैं जो अन्य वर्ग प्रतिस्थापित नहीं उठा सकते। जनमत काफी हद तक बौद्धिक वर्ग द्वारा निर्देशित होता है, और राजमहल और सरकार को नीतियां बनाते समय अक्सर बौद्धिक वर्ग की राय पर विचार करना पड़ता है।
चीन विश्व में सबसे शक्तिशाली विनिर्माण उद्योग वाला देश है जिसके पास दुनिया की सबसे पूर्ण औद्योगिक श्रृंखला है, चीन लगभग सभी औद्योगिक उत्पादों का उत्पादन कर सकता है, और चीन का विनिर्माण उद्योग विश्व के कुल उद्योग का एक तिहाई है, चीन भी 140 से अधिक देशों का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
अमेरिका द्वारा शुरू किए गए टैरिफ युद्ध के परिणामस्वरूप एक ऐसा परिणाम सामने आया है जिसे अमेरिका स्वयं नहीं देखना चाहता है, अर्थात अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का डी-डॉलरीकरण। विभिन्न देशों को महसूस हुए है कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने डॉलर के आधिपत्य के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर एकाधिकार कर लिया है और इस एकाधिकार के माध्यम से अन्य देशों की संपत्ति को मनमाने ढंग से अवशोषित कर लिया है।
सुधार और खुलेपन के बाद से दशकों तक जारी रही चीन की आर्थिक वृद्धि बाजारीकरण और उद्यमशीलता की भावना से अविभाज्य तो है, पर इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह राजनीतिक बुद्धिमता और उपयुक्त अंतर्राष्ट्रीय वातावरण से अविभाज्य है।
विश्व अर्थव्यवस्था के बारे में दुखद बात यह है कि द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद से आज तक, अधिकांश विकसित देश अभी भी विकसित अर्थव्यवस्थाएं हैं, जबकि अधिकांश गरीब और पिछड़े देश अभी भी गरीबी और पिछड़ेपन के भाग्य से बच नहीं पाए हैं।
खाद्य सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है और सभी देशों की सरकारें खाद्य मुद्दे को सर्वोच्च प्राथमिकता दे देती हैं। चीन एक बड़ी आबादी वाला देश है। यदि खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की गई तो गंभीर आपदाएं आएंगी और सामाजिक स्थिरता कायम नहीं रह पाएगी।