लोग उस जगह और समूह के प्रति प्रेम की भावना के साथ पैदा होते हैं जहां वे रहते हैं, जिसके आधार पर लोगों में स्वाभाविक रूप से राष्ट्रवाद या देशभक्ति की भावनाएं विकसित होती है और कई लोगों की सामान्य भावनाएं एक भारी शक्ति का बन जाती है। लेकिन, इस राष्ट्रवादी भावना के अतिवादी होने से सावधान रहना चाहिए, इसीलिए इस अपमानजनक शब्द "पॉपुलिज्म यानी लोकलुभावनवाद" का आविष्कार किया गया है।
तिब्बत (शीत्सांग) विश्व का सबसे अनोखा पारिस्थितिकी पर्यावरण वाला क्षेत्र है। वहां के प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा के लिए, चीनी सरकार ने तिब्बत में कभी भी बड़े पैमाने पर ताप विद्युत संयंत्र नहीं बनाए हैं। इसके बजाय, इसने आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए पवन ऊर्जा, फोटोवोल्टिक्स, भूतापीय और जल विद्युत विकसित करने के लिए प्रचुर मात्रा में स्थानीय हरित ऊर्जा का उपयोग किया है। वर्तमान में, तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में उत्पादित बिजली का 98% हिस्सा स्वच्छ ऊर्जा का होता है, जो देश में पहले स्थान पर है। वर्तमान में तिब्बत पावर ग्रिड देश के आंतरिक भूमि पावर ग्रिड से जुड़ा हुआ है, जिससे स्थानीय क्षेत्रों में आजीविका में सुधार को प्रभावी ढंग से बढ़ावा मिला है।
एशिया के दो सबसे अधिक जनसंख्या वाले दो देशों, यानी कि चीन और भारत की कई पहलुों में समानता मौजूद है। उदाहरण के लिए, दोनों देशों को पुराना सभ्यता इतिहास प्राप्त है, आधुनिक समय में साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद द्वारा उन पर आक्रमण किया गया था, और स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद दोनों देश अपने राष्ट्रों के पुनरोद्धार के लिए दीर्घकालिक प्रयास कर रहे हैं। लेकिन दोनों के बीच सतही समानताएं उनकी प्रकृति में मौलिक अंतर को नहीं छिपा सकती हैं, और उनके विकास पथ भी बिल्कुल अलग हैं।
वर्तमान में विश्व की अर्थव्यवस्था और प्रौद्योगिकी में सबसे गर्म विषय है एआई तकनीक, क्योंकि इस का अर्थ है भविष्य के समाज में आमूलचूल परिवर्तन। हालाँकि, एआई अंततः एक तकनीकी क्षमता है, और इसे मानव जीवन में प्रयोग होने के लिए एक वाहक प्राप्त होना चाहिये। जबकि रोबोट एआई के लिए सबसे उपयुक्त वाहक बन जायेंगे। भविष्य में, रोबोट एआई के साथ मिलकर शक्तिशाली बुद्धि और क्षमताओं के साथ मानव साझेदार बन जाएंगे। यही कारण है कि अब सभी प्रमुख देश रोबोटिक्स उद्योग को विकसित करने के लिए पूरी कोशिशें कर रहे हैं।
कुछ अमेरिकी राजनेताओं ने यह दावा किया है कि अमेरिका और चीन के बीच जो संघर्ष है वह तथाकथित वैचारिक संघर्ष है, जबकि भारत और अमेरिका दोनों लोकतांत्रिक देश हैं, वे वैचारिक मित्र देश हैं। हालाँकि, वास्तव में यदि हम कोहरे को दूर कर विश्लेषण करें, तो हम इस निष्कर्ष पर पहुँचेंगे कि तथाकथित वैचारिक सहयोगी अस्तित्व में नहीं है। इसके पीछे का सार है हितों के संबंध हैं। अमेरिका अपने आधिपत्य को चुनौती करते हुए नहीं देखना चाहता, तथा वह अपने हितों के लिए खतरा बनने वाले सभी विरोधियों को परास्त करना चाहता है।
आर्थिक विकास के लिए तीन प्रेरक शक्तियां हैं निवेश, उपभोग और निर्यात। पर अधिकांश विकासशील देशों के लिए आर्थिक विकास के लिए जरूरी पूंजी अर्जित करने हेतु निर्यात पर निर्भर रहना एक अपरिहार्य विकल्प है। हालाँकि, अर्थव्यवस्था के एक निश्चित स्तर तक विकसित हो जाने के बाद, निर्यात में वृद्धि जारी रखना टिकाऊ नहीं रह जाता है, और घरेलू खपत को बढ़ावा देना आर्थिक विकास के लिए एक आवश्यक विकल्प बन गया है। यों तो यह पश्चिमी अर्थशास्त्र के सामान्य नियमों के अनुरूप भी है, अर्थात, आर्थिक उछाल के बाद, अर्थव्यवस्था को जीवन की आधुनिकीकरण-पश्चात गुणवत्ता के चरण में प्रवेश करने से पहले बड़े पैमाने पर उच्च उपभोग के चरण से गुजरना होगा।
कुछ लोगों का मानना है कि अमेरिका के द्वारा टैरिफ युद्ध छिड़ने का उद्देश्य विनिर्माण की वापसी और देश के आंतरिक संकट को हल करना है। उधर, अन्य लोगों का मानना है कि अमेरिका का मूल उद्देश्य अपने प्रतिद्वंद्वियों को हराना और विश्व उत्पादन एवं आपूर्ति श्रृंखला को अपने पक्ष में नया स्वरूप देना है। हालाँकि, अमेरिका ने दीर्घकालिक तैयारी के बाद टैरिफ युद्ध शुरू किया है । अमेरिका टैरिफ को हथियार के रूप में न केवल अपने विरोधियों पर प्रहार करने के लिए प्रयोग करता है, बल्कि उन राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं को हल करने के अवसर का लाभ भी उठाता है, जो लंबे समय से अमेरिकी समाज को परेशान कर रही हैं। टैरिफ युद्ध शुरू करने के पीछे अमेरिका का मूल उद्देश्य यही है।
तिब्बत(शीत्सांग) हमेशा खुलेपन के आधार पर पर्यटन का विकास करता रहा है। पर हाल ही में अमेरिकी राजनेता यह आरोप लगा रहे हैं कि चीन "विदेशियों के तिब्बत में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा रहा है" तथा वे इसका इस्तेमाल चीनियों पर वीजा प्रतिबंध लगाने के बहाने के रूप में करना चाहते हैं। इस अनुचित कृत्य के जवाब में चीनी सरकार ने पारस्परिक जवाबी कदम उठाए। वास्तव में, आधुनिक काल से ही पश्चिमी ताकतों ने तिब्बत में हस्तक्षेप करना कभी नहीं छोड़ा। उनका मूल उद्देश्य तिब्बत में अस्थिरता पैदा करना और अंततः तिब्बत को चीन में से विभाजित करने की अपनी साजिश को साकार करना है।
विश्व फासीवाद विरोधी युद्ध की विजय की 80वीं वर्षगांठ पर विश्व के विकास इतिहास पर नजर डालें तो यह पता चलता है कि चीन और भारत सहित एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कई विकासशील देशों ने द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद अपनी राष्ट्रीय मुक्ति और स्वतंत्रता हासिल की और तेजी से आर्थिक विकास के रास्ते पर आगे बढ़े। विश्व मामलों पर कुछ पश्चिमी शक्तियों के प्रभुत्व का इतिहास समाप्त हो गया, आज उभरती अर्थव्यवस्थाएं और क्लॉब साउस के देश विश्व अर्थव्यवस्था के विकास के मुख्य शक्ति बन गए हैं। यह वास्तव में सौ वर्ष परिवर्तनों का मूल कारण है और यही है फासीवाद-विरोधी युद्ध के विजय का सबसे अहम अर्थ है।
अपनी स्थापना के बाद से ही बौद्ध धर्म पूरे विश्व में फैलना शुरू हो गया था। पूर्वी एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया बौद्ध धर्म के प्रसार के मुख्य क्षेत्र हुए थे। हान राजवंश के दौरान चीन में बौद्ध धर्म के प्रवेश के बाद, यह धीरे-धीरे स्थानीय हो गया था और त्यान शाखा और तिब्बती बौद्ध धर्म शाखा जैसी पूरी तरह से चीनी धार्मिक शाखाओं में विकसित हो गया था। उधर चीनी विद्वानों के अनुसार, बौद्ध धर्म का प्रसार केवल एक विचारधारा का प्रसार नहीं, बल्कि संस्कृति भी है।
1.4 अरब की आबादी वाले दो प्रमुख देशों, चीन और भारत के नागरिकों के लिए यह शब्द "उदय" विशेष आकर्षण और संवेदनशील महत्व रखता है। दोनों देशों के थिंक टैंक, मीडिया और आम लोग सब अपने देश के "उदय" के बारे में बात करने के लिए बहुत उत्सुक रहते हैं। यों तो एक शक्तिशाली देश बनने के लिए आवश्यक भू-भाग, जनसंख्या और प्राकृतिक संसाधन सभी अपरिहार्य शर्तें हैं, पर हमें बड़ी आबादी के अलावा, एक शक्तिशील देश बनने के लिए और क्या क्या शर्तें प्राप्त हैं?
प्रसिद्ध भारतीय अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने एक बार कहा था कि वैश्वीकरण के संदर्भ में, एक सच्ची बाजार अर्थव्यवस्था प्रणाली वैश्विक मालों, पूंजी, प्रौद्योगिकी, सेवाओं और सूचना के मुक्त और पूर्ण प्रवाह और विनिमय को जन्म दे सकती है, जिससे विश्व अर्थव्यवस्था में सच्ची समानता प्राप्त हो सकती है। उधर, विश्व इतिहास दर्शाता है कि वैश्वीकरण का मार्ग आसान नहीं है। कुछ देश वैश्वीकरण का समर्थन तभी करते हैं जब यह उनके लिए लाभदायक हो।