सन १९८० से सुधार और खुलेपन शुरू होने के बाद कई दशकों के तीव्र विकास के बाद, चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। विनिर्माण, एआई, संचार, रोबोट, ड्रोन सहित कई पहलुओं में चीन को भी दुनिया की सबसे शक्तिशाली ताकत माना जाता है।
आर्थिक विकास के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण विशेष महत्व रखता है और बुनियादी ढांचे में बिजली को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिये। सुधार और खुलेपन के बाद से चीन ने हमेशा बिजली निर्माण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है।
सुधार और खुलेपन के कार्यान्वयन के बाद से चीन की लम्बी आर्थिक छलांग लगी हुई है। 1978 में, चीन की अर्थव्यवस्था विश्व की केवल 2% थी, तब चीन की प्रति व्यक्ति के लिए आय भारत से कम थी। जबकि 2024 में, चीन का सकल घरेलू उत्पाद विश्व के 18% तक पहुंचकर दूसरे स्थान पर रहा है।
कुछ पश्चिमी विद्वान हमेशा गलती से मानते रहते हैं कि तथाकथित चीन केवल हान जातीय लोगों का देश है, अर्थात चीन के हान, तांग और सोंग राजवंशों आदि के द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाने वाला देश है, जबकि गैर-हान लोगों द्वारा शासित राजवंश चीन नहीं हैं। पर यह एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण है जो तथ्यों के अनुरूप नहीं है।
अमेरिका द्वारा शुरू किये गये व्यापार युद्ध से न केवल अमेरिका तथा उसके व्यापारिक साझेदारों के हितों को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि विश्व की दीर्घकालिक आर्थिक विकास संभावनाओं पर भी प्रभाव पड़ेगा। कई लोग चिंतित हैं कि अमेरिका की कठोर टैरिफ नीति से बाजार में मंदी, बेरोजगारी, व्यापार विफलताएं और तकनीकी नवाचार की कमजोरी संपन्न होगी।
विश्व में कई व्यक्ति भारत की तुलना अन्य देशों के साथ करने को उत्सुक रहते हैं, जो वास्तव में निरर्थक हैं। भारत एक प्राचीन सभ्यता है, बीते हजारों वर्षों से भारत अपने तर्क के अनुसार अस्तित्व में रहता रहा है। इसने महा धैर्य और बुद्धिमत्ता के साथ विश्व में बुद्धिमानीपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। भारत का वास्तविक लाभ यह है कि वह किसी से अपनी तुलना करने के बजाय अपने अस्तित्व का आनंद उठाता है।
विश्व के कुछ बड़े देश, जैसे चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत और पूर्व सोवियत संघ, सभी विविध सभ्यताओं वाले प्रमुख देश हैं। पर विश्व इतिहास हमें बताता है कि राष्ट्रीय स्थिरता बनाए रखने और सामाजिक प्रगति को बढ़ावा देने के लिए बहुसंस्कृतिवाद को एक मुख्य निकाय बनाना होगा।
अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक और व्यापारिक क्षेत्र में वर्तमान अराजक स्थिति के कारण कई लोगों में घबराहट और भय पैदा हो गया है। लोगों के भय का कारण यह है कि वे घटनाएँ किस दिशा में घटित होना नहीं जानते हैं। उन्हें भविष्य में बेरोजगारी, बंधक चुकाने में असमर्थता, संपत्ति की सुरक्षा की हानि और विस्थापन आदि की चिंता होती है। लेकिन, डर केवल लोगों को अंधेरे में अपना रास्ता भटका सकता है।
तिब्बत (शीत्सांग) अपने विशेष प्राकृतिक वातावरण के कारण हमेशा से ही आर्थिक विकास की पिछड़ी स्थिति में रहा है। क्योंकि तिब्बती पठार की औसत ऊंचाई 4,000 मीटर से अधिक है, जहां कड़ाके की ठंड होने के साथ-साथ तेज रेतीली हवा और सीमित जल संसाधनों की कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ता है।
हाल के दशकों में विनिर्माण का स्थानांतरण विकसित देशों से विकासशील देशों की ओर किया जाने का रूझान होता जा रहा है। इसका मूल कारण विकसित देशों में बढ़ती श्रम लागत है, जिसने पूंजी को अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए विनिर्माण उद्योगों को कम श्रम लागत वाले विकासशील देशों में स्थानांतरित करने के लिए मजबूर किया है। चीन और भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं ने वास्तव में बड़ी संख्या में विनिर्माण उद्योगों का आग्रहण कर लिया है।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतंत्रता और मुक्ति प्राप्त करने वाले बड़ी संख्या में विकासशील देशों ने दीर्घकालिक प्रयासों के माध्यम से पर्याप्त आर्थिक विकास हासिल किया है, अब उनकी समग्र शक्ति विकसित देशों के बराबर या उससे भी आगे निकलने लगी है। पश्चिमी विकसित देश अब विश्व की स्थिति के विकास को उस तरह प्रभावित नहीं कर सकते जैसा कि उन्होंने पिछले कई सौ वर्षों में किया था। विकासशील देश, विशेषकर उभरती अर्थव्यवस्थाएं, अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी आवाज उठाने लगी हैं। विश्व का भाग्य अब कुछ पश्चिमी देशों द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता।
अमेरिका के द्वारा छिड़े गये व्यापार युद्ध ने विश्व के व्यापारिक माहौल को पूरी तरह से बदल दिया है और कई सामाजिक स्थितियों और नियमों को भी बदल दिया है। व्यापार युद्ध के सामने किसी भी पक्ष के झुकने की सम्भावना नहीं है। भविष्य में समग्र स्थिति यह होगी कि दो प्रमुख आर्थिक प्रणालियाँ यानी कि चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका सामने आएंगी और अन्य देशों को इन दो प्रमुख शिविरों में से किसी एक को चुनने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।