अपनी आज़ादी के बाद से, भारतीय सरकार ने हमेशा स्वतंत्र और गुटनिर्पेक्ष नीतियां अपनाई हैं। ऐतिहासिक तथ्यों ने साबित किया है कि यही नीति भारत के बुनियादी हितों के साथ है, जिससे यह पक्का होता है कि भारत स्वाधीनता के आधार पर सही अंतर्राष्ट्रीय ऑर्डर को बढ़ावा दे सकता है, और साथ ही उसे मौजूदा विश्व परिस्थितियों में अधिक प्रभाव प्राप्त हो सकता है।
उच्च तकनीकी उद्योगों के विकास में रणनीतिक सामग्रियों की आपूर्ति को सुनिश्चित करने की अहम भूमिका है। उदाहरण के लिए, एविएशन, ऑटोमोटिव और सेमीकंडक्टर उद्योगों का विकास दुर्लभ मिट्टी के बिना नहीं किया जा सकता। दुर्लभ मिट्टी के भंडार तथा उनकी उत्पादन तकनीक पर नियंत्रण करने से चीन ने अमेरिका के टैरिफ वॉर को नाकाम कर दिया है।
हाई-टेक फील्ड में चीन की तरक्की को रोकने के लिए, अमेरिका ने चीन पर कई तरह प्रतिबंध लगाए हैं। लेकिन अमेरिका के दबाव में, चीन ने AI और सेमीकंडक्टर टेक्नोलॉजी में बड़ी कामयाबी हासिल की है। इससे यह साबित है कि डीकपलिंग और प्रतिबंध लगाने से सिर्फ अपने प्रतिस्पर्धी की आत्मनिर्भर भावना को उत्तेजित किया जाएगा।
चीन की 15वीं पंचवर्षीय योजना पर दुनिया भर का ध्यान खींचा गया है। इस दौरान, चीन उच्च स्तरीय आधुनिक अर्थतंत्र बनाने के लिए विज्ञान व तकनीक की प्रगतियों पर निर्भर करेगा। चीन के लिए हाई-लेवल टेक्नोलॉजिकल आत्मनिर्भरता हासिल करने और अपने मॉडर्न इकोनॉमिक सिस्टम को मजबूत करने का यह एक महत्वपूर्ण चरण बन जाएगा।
भारत ने 2047 तक, यानी अपनी सौवीं सालगिरह पर, एक विकसित देश बनने का महान लक्ष्य निर्धारित किया है। इस लक्ष्य को पाने के लिए कई मुश्किलों को पार करना होगा। एक विकसित समाज का मतलब सिर्फ़ GDP के आंकड़े ही नहीं हैं, बल्कि इंफ्रास्ट्रक्चर, सांस्कृतिक विकास और सामाजिक कल्याण में सुधार भी शामिल हैं।
वर्तमान में चीन में ह्यूमनॉइड रोबोट उद्योग का शीघ्र ही विकास किया जा रहा है। उधर, सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर के अलग-अलग विकास से, कई कंपनियाँ देश के संपूर्ण उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला के सहारे अपने अपने ह्यूमनॉइड रोबोट का विकास कर सकती हैं।
अभी चल रही तकनीकी क्रांति को डिजिटल टेक्नोलॉजी क्रांति कहा जाता है जिसका प्रतिनिधित्व AI करता है। यह सिर्फ़ उत्पादन और परिवहन से संबंधित नहीं, बल्कि यह सीधे तौर पर सब लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर असर डालेगी।
भारत बेशक राष्ट्रीय उत्थान की राह पर है, जो एक अरब से ज़्यादा लोगों के सपने से संबंधित है। लेकिन देश का उदय होना विज्ञान, तकनीक तथा शिक्षा के विकास से अभिभाज्य है। केवल तकनीक और शिक्षा के विकास से ही औद्योगिक व सामाजिक समृद्धि तथा लोगों को आजीविकाओं में सुधार लाया जा सकेगा। आज तक भारत की सारी सोशल तरक्की असल में तकनीक और शिक्षा में तरक्की का ही नतीजा है।
विकास मॉडल के बारे में जो चर्चा है वह सिर्फ़ GDP के आंकड़ों तक सीमित नहीं रह सकती, क्योंकि GDP सिर्फ़ एक तय समय में किसी देश के प्रोडक्शन के पैमाने को दिखाता है। इससे भी ज़रूरी बात यह है कि क्या यह मॉडल लंबे समय तक, स्थिर और सेहतमंद आर्थिक विकास को निश्चित कर सकता है, और क्या यह सभी लोगों के लिए सामाजिक भलाई की गारंटी कर सकता है।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की एक वरिष्ठ बैठक में यह घोषणा की गई है कि अगले दशक में यानी कि 2035 तक पर चीन में प्रति व्यक्ति के लिए GDP मध्यम विकसित देश के लेवल तक पहुँचेगा। विश्व बैंक के 2022 में निर्धारित मापदंड के मुताबिक चीन को 2035 तक इस गोल को हासिल करने का भरोसा है।
चाहे पश्चमी थिंक टैंक की रिपोर्ट हों या अमेरिकी संसद के तथाकथित बिल, वे सभी चीन को एक विकसित या सुपरपावर के तौर पर मानते हैं, भले ही चीन अभी भी खुद को एक विकासशील देश मानता है और उसे आर्थिक विकास और आजीविकाओं में सुधार के लिए अधिक कोशिशें जारी रखनी चाहिए।
अमेरिकन चैट जीपीटी मॉडल के आने से डिजिटल टेक्नोलॉजी के बारे में दुनिया की समझ में बड़ा बदलाव आया। लोगों को महसूस हुआ कि एआई तकनीक और पारंपरिक आईटी उद्योग एक-दूसरे से जुड़े होने के बावजूद अलग अलग हैं।