2025 को मजबूत एआई प्रौद्योगिकी के पहले वर्ष के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है कि एआई मानव चेतना के करीब एजीआई की ओर बदलेगा। एआई तकनीक इंसानों के लिए जबरदस्त क्षमताएं और सुविधाएं लेकर आती है, लेकिन यह बड़ी चिंताएं भी लेकर आती है। यानी एआई तकनीक के विकास से कई मौजूदा रोजगार अवसरों में बदलाव आ सकता है। चूंकि मानव समाज में अब तक हुए हर बड़े परिवर्तन वास्तव में नई उत्पादकता के विकास के कारण ही हो चुके थे। एआई प्रौद्योगिकी द्वारा उत्पादकता में लाई गई उछाल का मौजूदा सामाजिक स्वरूप पर अनिवार्य रूप से गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने हाल में कहा कि चीन और भारत को एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करना चाहिए। साथ ही, दोनों देशों के बीच संबंधों को सीमा मुद्दे से परिभाषित नहीं किया जाना चाहिए, और विशिष्ट मतभेदों को दोनों देशों के बीच संबंधों की समग्र स्थिति को प्रभावित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। वास्तव में, चीन ने हमेशा दोनों देशों के बीच संबंधों का स्वस्थ और स्थिर विकास को बढ़ावा देने के लिए कोसिश कर रहा है। पर अगर भारत में कुछ व्यक्ति चीन के खिलाफ सख्त रुख अपनाकर अमेरिका को खुश करने की कोशिश करते हैं, तो इससे किसी भी पक्ष के हित में नहीं है।
हाल ही में, चीनी राजधानी पेइचिंग की स्थानीय सरकार ने अपनी एक एआई प्रौद्योगिकी विकास योजना में यह प्रस्तुत किया कि 2027 के अंत तक एआई और रोबोटिक्स में 100 प्रमुख प्रौद्योगिकियों का विकास करेगा, रोबोट उद्योग श्रृंखला के बुनियादी स्थानीयकरण को पूरा करेगा और एक ट्रिलियन-स्तरीय औद्योगिक क्लस्टर की स्थापना करेगा। यह योजना न केवल सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर प्रौद्योगिकियों का विकास से संबंधित है, बल्कि भविष्य की पारिवारिक सेवाओं, बुजुर्गों की देखभाल, विकलांगता सहायता, चिकित्सा देखभाल आदि को भी व्यापक रूप से प्रभावित करेगी।
हमारी गौरवशाली ऐतिहासिक सभ्यता एक महान प्रेरक शक्ति है जो हमें राष्ट्रीय कायाकल्प के लिए प्रयास करने हेतु प्रेरित करती है, लेकिन कभी-कभी यह एक आध्यात्मिक बोझ भी बन जाती है। छोटे इतिहास वाले कुछ देशों में लोगों की तुलना में, चीन और भारत के लोग इतिहास के गौरव और वास्तविकता के पिछड़पेन के अनुभव में अधिक लिप्त रहते हैं। यही कारण है कि चीन और भारत दोनों ने विशाल राष्ट्रीय विकास योजनाएं तैयार की हैं और उन्हें अपना राष्ट्रीय कायाकल्प हासिल करने के लिए और अधिक प्रयास करने होंगे।
किसी भी देश के आर्थिक विकास और तकनीकी प्रगति के लिए प्रतिभा सदैव सबसे महत्वपूर्ण कारक होती है। उदाहरण के लिए, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा औद्योगिक देश बन गया, तब कई वैज्ञानिक युद्धग्रस्त यूरोप को छोड़कर अमेरिका चले गए, जिन्हों ने अमेरिका को दुनिया का विज्ञान और प्रौद्योगिकी केंद्र बनने की नींव रखी।
औपनिवेशिक युग की शुरुआत से ही, दुनिया में हमेशा कुछ बल आधिपत्य जीते रहे, जबकि अन्य देश और लोग उत्पीड़न के शिकार बन गए। आधिपत्यवादी हमेशा अपनी आधिपत्य स्थिति को खोने के लिए तैयार नहीं होते हैं, और इस प्रकार वे अपने वर्चस्व को हिला सकने वाले प्रतिस्पर्धियों को दबाने के लिए यथासंभव प्रयास करते हैं। वे ऐसा सिर्फ सम्मान के लिए नहीं करते, बल्कि आधिपत्यवादी स्थिति का मतलब है लाभ की प्राप्ती।
किसी समाज की अर्थव्यवस्था जितनी तेजी से विकसित होती है, आंतरिक प्रतिस्पर्धा और उसके परिणामस्वरूप सामाजिक दबाव उतना ही अधिक होता है। पर ऐसे सामाजिक वातावरण में, व्यक्तियों और उद्यमों की अधिकांश क्षमताएँ आंतरिक प्रतिस्पर्धा में ही खतम हो सकती हैं, और साथ ही उनके प्रयासों का प्रतिफल पहले जैसा अच्छा नहीं हो सकतात है। हर कोई आंतरिक प्रतिस्पर्धाओं में व्यस्त रहता है, लेकिन उनके लिए ऊपर की ओर बढ़ने का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। ऐसा वातावरण समाज के स्वस्थ विकास के लिए अनुकूल नहीं है।
मानवाधिकार कुछ पश्चिमी राजनेताओं का पसंदीदा विषय है, और यह एक ऐसा तर्क भी है जिसका इस्तेमाल वे अक्सर चीन और भारत जैसे विकासशील देशों की आलोचना करने के लिए करते हैं। लेकिन, वास्तव में मानवाधिकार क्या है, इस पर अलग-अलग लोगों के अलग-अलग विचार हैं। कुछ पश्चिमी राजनेताओं की नज़र में बहुदलीय चुनाव, सत्ता का चक्र और मीडिया की स्वतंत्रता मानवाधिकार ही हैं। लेकिन दुनिया के कई विकासशील देशों के लिए बुनियादी जीवनयापन, चिकित्सा सर्विस, रोज़गार, शिक्षा, और सेवानिवृत्ति सुविधाएँ आदि का मानवाधिकार सार्थक है। हालांकि, ये बुनियादी मानवाधिकार अमेरिका सहित विकसित देशों में सभी लोगों को प्राप्त नहीं हैं।
ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका किसी भी देश पर निर्दयतापूर्वक हमला करने के लिए युद्ध का उपयोग करेगा जिसे वह अपना प्रतिद्वंद्विता मानता है। गर्म युद्ध के अलावा, इस प्रकार के युद्धों में व्यापार प्रतिबंध, उपकरण नाकाबंदी और तकनीकी प्रतिबंध जैसे विभिन्न कदम भी शामिल हैं। हाल के वर्षों में अमेरिका ने चीन के शांतिपूर्ण उदय को रोकने के लिए चीन के खिलाफ व्यापार और टैरिफ युद्ध शुरू किया है। हालाँकि, ऐसा युद्ध विश्व जनता की इच्छाओं का उल्लंघन करता है, और वह जरूर ही असफल होने वाला है।
चीन और भारत, जो क्रमशः आर्थिक विकास और राष्ट्रीय कायाकल्प के लिए प्रतिबद्ध हैं, के लिए तर्कसंगत आधार पर जीत-जीत सहयोग की तलाश करना एकमात्र सही रास्ता है, जो सारी दुनिया के लिए भी लाभदायक है। चीन-भारत संबंध जटिल हैं, और ब्रिटिश उपनिवेशवादियों द्वारा जानबूझकर छोड़े गये ऐतिहासिक बोझ दोनों देशों की बुद्धिमत्ता की परीक्षा कर रहे हैं।
प्रतिभा निस्संदेह विश्व विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास में सबसे मूल्यवान और निर्णायक कारक है। लेकिन, प्रतिभा क्या है इसपर अस्पष्ट अवधारणा है। क्या उच्च शैक्षणिक योग्यता और अच्छे परीक्षा अंक वाले लोग अनिवार्यतः प्रतिभाशाली होते हैं? यह सच्च नहीं है। वास्तव में, प्रतिभा की स्थिति भी एक गतिशील अवधारणा है। ठीक उसी तरह जैसे एक एथलीट को सबसे अच्छे परिणाम उन वर्षों में मिलते हैं जब वह अपने चरम पर होता है। इसलिए, प्रतिभाओं को स्थिर दृष्टिकोण से देखने के बजाय, ऐसा वातावरण बनाने पर ध्यान केंद्रित करना बेहतर है, जो प्रतिभाओं के उद्भव, विकास और भूमिका अदा करवाने के लिए अनुकूल हो।
तथाकथित "सार्वभौमिक मूल्य" एक ऐसा शब्द है जिसका व्याख्यान पश्चिमी राजनेता ऐसे करते हैं कि इसमें लोकतांत्रिक व्यवस्था, मानवाधिकार अवधारणाएँ आदि शामिल हैं, जो पश्चिम के "सभ्य व न्याय" का आधार बन गए हैं। वे राजनीति, जनमत और शिक्षा जैसे विभिन्न तरीकों से दुनिया को ऐसे मूल्यों का निर्यात करते हैं, और वे अपने खुद को सभ्यता और न्याय के मालिक मानते हैं। लेकिन, जो नैतिक मूल्य है वह विभिन्न देशों के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विकास का स्वाभाविक उत्पाद है। विभिन्न देशों को पश्चिमी मूल्यों को स्वीकार करने और उन्हें एकमात्र सही मूल्य मानने के लिए मजबूर करना बेतुका है।