भूराजनीतिक अध्ययन को राष्ट्रीय हितों की सेवा करनी चाहिए

11:16:00 2025-07-17

 

भूराजनीतिज्ञ (Geopolitics) किसी देश की विदेशी राजनीतिक रणनीति (राष्ट्रीय रक्षा और कूटनीतिक रणनीति सहित) और उसके भौगोलिक वातावरण के बीच संबंधों का अध्ययन है। भूराजनीति की उत्पत्ति पश्चिम में हुई और वह पूर्वी देशों के विदेश नीतियों को भी बहुत प्रभावित करती है। लेकिन, यह भी ध्यान देने योग्य है कि पूर्वी देशों में कुछ विद्वान अक्सर पश्चिमी सिद्धांतों को अंधाधुंध विश्वास करते हैं और भू-राजनीति सवाल को पश्चिमी दृष्टिकोण से देखते हैं, और उनके निष्कर्ष अक्सर उनके अपने राष्ट्र के हितों के विपरीत होते हैं।

 

वास्तव में, चीन और अन्य एशियाई देशों के अपने भू-राजनीतिक हित हैं और उनकी अपनी भू-राजनीति भी होनी चाहिए। क्योंकि भूराजनीति अंततः राजनीति का ही एक रूप है, जो भी कुछ पक्षों के हितों का प्रतिनिधित्व करती है। उदाहरण के लिए, कुछ दक्षिण-पूर्व एशियाई राजनेताओं ने स्पष्ट रूप से बताया है कि हालांकि कुछ दक्षिण-पूर्व एशियाई देश अपने राजनीतिक रुख में अमेरिका और पश्चिम का पक्ष लेते हैं, लेकिन वे अपने दिल में यह अच्छी तरह जानते हैं कि एक शक्तिवान चीन के बिना, पूर्वी लोग दुनिया में अधिक उत्पीड़ित और भेदभाव वाली स्थिति में होंगे। यद्यपि पश्चिमी लोग कानूनी स्तर पर नस्लीय भेदभाव का विरोध करते हैं, लेकिन उनके दिल में एशियाई लोगों के प्रति अहंकार भरा हुआ है। उधर राजनीति, सैन्य और प्रौद्योगिकी में चीन के उत्थान ने सीधे तौर पर पश्चिम के आधिपत्य को हिला दिया है और सभी ओरिएंटल राष्ट्रों की स्थिति में सुधार किया है।

 

वास्तव में, पश्चिमी देशों द्वारा किया गया भू-राजनीतिक अनुसंधान पश्चिमी देशों के रणनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति करता है। चीन और अन्य एशियाई देशों के लिए भी यही सच है। हमें अपनी भू-राजनीति का अध्ययन एशियाई लोगों के नजरिए से करना चाहिए। आखिरकार, सभी देशों के विकास को सीमित संसाधनों का सामना करना पड़ता है, और इससे उत्पन्न संघर्ष ही विश्व राजनीति की मूल प्रेरक शक्ति है। तथाकथित राजनीतिक मुद्दा संसाधन का मुद्दा है। बेशक, यहां तथाकथित संसाधन में बाजार, भूगोल और प्रतिभा जैसे सभी पहलु शामिल हैं। विश्व के संसाधन-प्रधान क्षेत्र विश्व भू-राजनीति के केंद्र भी हैं। जैसे-जैसे विश्व अर्थव्यवस्था पूर्व की ओर बढ़ रही है, प्रशांत-हिंद महासागर क्षेत्र विश्व के सबसे अधिक घनी आबादी वाले उभरते बाजार वाले देशों का केंद्र बना है, जिसके कारण सभी ताकतें अपना ध्यान इस क्षेत्र पर केंद्रित कर रही हैं।

 

अपने इतिहास से यह जाहिर है कि चीन में अमेरिका और पश्चिम के आधिपत्य को चुनौती देने की न तो क्षमता है और न ही इच्छा। इसलिए, चीन को कुछ अंतरराष्ट्रीय ज्वलंत मुद्दों के संघर्ष में शामिल होने में कोई रुचि नहीं है। जब तक विदेशी शत्रुओं द्वारा बड़े पैमाने पर आक्रमण नहीं किया जाता, चीन अपने सभी प्रयास आर्थिक और सामाजिक विकास में डालेगा। यह भू-राजनीतिक अवधारणा है जिसका चीन की सत्तारूढ़ पार्टी कई वर्षों से दृढ़तापूर्वक पालन करती आ रही है। सीधे शब्दों में कहें तो, चीन की भूराजनीति हमेशा राष्ट्रीय हितों को केंद्र में रखेगी और राष्ट्रीय हितों के साथ मिलकर विकास रणनीतियों का अध्ययन करेगी। यह बात माओ त्से तुंग के सिद्धांत, डेंग जियाओपिंग के सुधार के सिद्धांत और वर्तमान चीनी नेता के मानव जाति के लिए साझा भविष्य के समुदाय के सिद्धांतों से सुसंगत रही है। चीन भविष्य में भी अपने सुधार और विकास में सदैव इन विचारधाराओं का अनुसरण करेगा।