
भाषाएं लोगों को जोड़ती हैं, विभिन्न देशों की संस्कृतियों को करीब लाती हैं। भाषा को जानने और समझने से आप उस संबंधित देश या क्षेत्र के रीति-रिवाजों और खानपान आदि के बारे में गहराई से जानकारी हासिल करते हैं। भाषा विशेषज्ञ और सीआरआई से कई दशकों से लगाव रखने वाले ऋषि कुमार शर्मा से CGTN Hindi संवाददाता अनिल पांडेय ने बातचीत की।
ऋषि कुमार कहते हैं कि भाषा का हर काल और हर दौर में महत्व रहा है, क्योंकि भाषा एक ऐसी चीज़ है जो दो लोगों को करीब लाती है। इसके साथ ही “मैं पिछले 30-35 वर्षों से भाषा के क्षेत्र में काम कर रहा हूं। हिंदी से जुड़े संस्थानों और केंद्रों से जुड़ा रहा हूं। जिसके तहत हिंदी भाषा को बढ़ावा दिए जाने पर ध्यान रहा है। साथ ही, हिंदी भाषा का अन्य देशों में प्रचार-प्रसार कर उसे वहां के साथ जोड़ा जाय, इस पर जोर रहा है। हिंदी को दूसरे देशों की भाषा के साथ जोड़ते हुए कैसे समन्वय बनाया जाय। हिंदी को कैसे संचरित किया जाय और लोगों के साथ कैसे इसके माध्यम से संचार और संपर्क किया जाय, इस पर काम चल रहा है।”
इसके साथ ही, ऋषि कुमार का चाइना रेडियो इंटरनेशनल के साथ पुराना रिश्ता रहा है। वे रेडियो प्रेमी और सक्रिय श्रोता भी रहे हैं। वे कहते हैं कि आज से लगभग तीन दशक पहले वे रेडियो पेकिंग के कार्यक्रम नियमित रूप से सुनते थे। उन कार्यक्रमों के माध्यम से भारत में रहकर उन्हें चीन के बारे में काफी जानकारी हासिल होती थी। जैसा कि रेडियो पेकिंग से अन्य भाषाओं के साथ-साथ हिंदी में भी प्रसारण किया जाता था। बकौल ऋषि चीन में मौजूद उद्घोषक बहुत अच्छे ढंग से हिंदी बोला करते थे। जो हमें आसानी से समझ आ जाता था। उस पर हम लोग अपनी प्रतिक्रिया भी पेइचिंग स्थित रेडियो स्टेशन में भेजा करते थे।
उन प्रसारणों से हमें चीन को जानने, चीन को समझने, और चीन की संस्कृति, सभ्यता आदि के बारे में जानने में बहुत मदद मिलती थी। चीन की भाषा, चीनी समाज और लोक रीति-रिवाज़ों के बारे में जिस तरह हमें पता लगता था, उसी तरह हम भी भारत की जानकारी दिया जा करते थे। जिसमें भारत के त्योहार, खान-पान आदि से जुड़ी चीज़ें भी शामिल होती थीं।
एक दौर था जब सिर्फ भारत और दुनिया भर के श्रोताओं के लिए सिर्फ रेडियो ही चीन को जानने और समझने का जरिया हुआ करता था। लेकिन बदलते वक्त के साथ सीआरआई चाइना मीडिया ग्रुप का हिस्सा बन चुका है, जिसमें फेसबुक, यूट्यूब के साथ-साथ सोशल मीडिया के अन्य माध्यमों का इस्तेमाल हो रहा है। साथ ही वीडियो, टीवी आदि के जरिए भी चीन की जानकारी लोगों तक पहुंचती है।
भाषा के क्षेत्र में चीन और भारत किस तरह करीब आ सकते हैं, इस पर उन्होंने कहा कि भाषा इसका एक महत्वपूर्ण जरिया है। आज के दौर में तकनीक का व्यापक इस्तेमाल हो रहा है, जिससे हमें चीनी भाषा और अन्य भाषाओं को ट्रांसलेशन एप्प आदि से समझने में आसानी होती है। लेकिन बहुत से लोग ऐसे भारतीय लोग होने चाहिए, जो चीनी भाषा सीखें और चीनी लोग भी हिंदी सीखें।
जैसा कि हम जानते हैं कि चीन में विदेशी भाषाओं को सीखने का काफी चलन है। इसी कड़ी में बड़ी संख्या में चीनी छात्र हिंदी का अध्ययन कर रहे हैं। वर्तमान में चीन के एक दर्जन से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है।
अगर हिंदी भाषी लोग भारत से चीन में आकर भाषा सिखाएंगे तो उससे भाषा का विस्तार होगा और लोगों की भारत के प्रति समझ बढ़ेगी। इसके साथ ही भाषा का उच्चारण भी अपने आप में काफी अहम स्थान रखता है। यह भी कहना होगा कि जब भाषाएं नजदीक आती हैं तो सिर्फ भाषाएं ही करीब नहीं आती। बल्कि संस्कृति का जुड़ाव होता है। ऐसा ही संस्कृति का जुड़ाव चीन के साथ भी होना चाहिए। इससे चीन और भारत के संबंध मजबूत होंगे।
(प्रस्तुति- अनिल पांडेय)