प्राचीन काल में भारत और चीन के बीच धर्म, संस्कृति और व्यापार के आदान-प्रदान तक संबंध सीमित रहे थे। लेकिन, 20वीं सदी के चौथे दशक में चीन गये उक्त मेडिकल मिशन ने इस गलियारे को चौड़ा कर दिया और स्वतंत्रता तथा मुक्ति के आदर्शों के लिए लड़ रही फासिस्टवाद विरोधी शान्तिप्रिय शक्तियों की विश्व व्यापी एकता के आधार पर एक नया संबंध द्वार खोल दिया। भविष्य में दो देशों के बीच घनिष्ठ सहयोग को इसी आधार शिला पर प्रस्थान करना था औऱ डाक्टर कोटनीस ने इस आधार शिला पर स्तम्भ खड़ा करने के लिए अपना मूल्यवान जीवन अर्पित कर दिया। जापानी आकर्मण विरोधी युद्ध के दौरान, उत्तरी चीन के चीनी कामरेडों और जनता के समान कष्टमय जीवन में हिस्सेदारी करते हुए डाक्टर कोटनीस अपने कार्य का स्थल पर एक साधारण राष्ट्रवादी से साम्रान्याद विरोधी तपे तपाये युद्धा, एक अंतरराष्ट्रवादी और चीनी जनता के महा दोस्त बने। और अंत्तः अपने पूर्व वर्ती डाक्टर बैथ्यून की ही तरह जनता की सेवा, साम्राज्यवाद विरोध और अंतरराष्ट्रवाद के लिए प्राण न्यौछावर कर अमरत्व को प्राप्त हो गये।
कानाड़ावासी डाक्टर नारमन बैथ्यून के गुजरने के बाद वू थाईशान पर्वत क्षेत्र में स्थित अंतरराष्ठ्रीय शान्ति अस्पताल का निर्देशक बनने पर डाक्टर कोटनीस अपने पूर्व वर्ती के पदचन्हों पर चलते रहे।
उन्होंने डाक्टर नारमन बैथ्यून की स्मृत्ति में और अध्यक्ष माओ त्से तुंग की अन्य कृतियों का गहन अध्ययन किया और सब को भूलकर जनता की सेवा में लगे और इस तरह समूची चीनी जनता के प्यार और स्नेह का पात्र बने। उनकी उदात्त आकांक्षा भी तब पूरी हो गई, जब उन्हें जुलाई 1942 में गौरवशाली चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य बना लिया गया।
उत्तरी चीन के ह पेई प्रांत की राजधानी शी च्याच्वांग में 9 दिसम्बर 1976 को चीनी जन मुक्ति सेना के डाक्टर बैथ्यून अंतरराष्ठ्रीय अस्पताल में उन केप्रथम निर्देशक डाक्टर कोटनीस की स्मृति में उन्हीं के नाम पर एक भव्य स्मृत्ति हॉल की स्थापना का चीनी जनता ने भारत के सुयोग्य पुत्र डाक्टर कोटनीस के प्रति अपनी भ्रद्धा प्रेम और सम्मान प्रकट किया है।