जनता की निस्वार्थ सेवा और कठोर परिश्रम की प्रवृत्ति के कारण डाक्टर कोटनीस चीनी जनता सैनिकों और असैनिकों के लाड़ले बन गये थे। दूर दराज के लोग तक यह कहते रहते थे कि वह जापानी आक्रमण का प्रतिरोध करने में हमारी सहायता करने के लिए बहुत दूर से चीन आए हैं।
और जब मिरगी के क्रूर दौरे ने जाड़ों की एक सुबह तड़के उन के प्राण निगल लिये, तो चीनी जनता दुख के अथाह सागर में डूब गई। उन के सहकर्मी, मरीज, अस्पताल के लोग नन्हे बच्चे के साथ उन की विधवा चीनी पत्नी , सैनिक और कमांडर उन की मृत्यु सप्या पर और शोक सभाओं में फूट फूट कर रोते रहे।
डाक्टर कोटनीस के देहान्त के बाद अध्यक्ष माओ त्से तुंग ने अपने एक शोकालेख में कहा, हमारे भारतीय मित्र डाक्टर कोटनीस हमारे प्रतिरोध युद्ध को सहायता देने के वास्ते इतनी दूर से चीन आए थे। उन्होंने येनआन और उत्तरी चीन में पांच सालों तक काम किया औऱ हमारे घायल सैनिकों का उपचार किया। अत्याधिक परिश्रम के फलस्वरुप बीमार हो जाने से उन का देहान्त हो गया। इस से हमारी सेना का एक सुयोग्य मददगार और हमारे राष्ट्र का एक मित्र खो गया। हम डाक्टर कोटनीस की अंतरराष्ट्रवादी भावना को कभी नहीं भुला सकते।
दिवगंत प्रधान मंत्री श्री चो अन लाई ने कहा, डाक्टर कोटनीस चीनी और भारतीय जनता की दोस्ती के प्रतीक थे और जापानी आक्रमण तथा विश्व फाशिस्तवाद के खिलाफ संयुक्त विश्विव्यापी संघर्ष में भारतीय जनता की सक्रिये हिस्सेदारी के एक शान्दार उदाहरण थे।