चीन लोग गणराज्य की मान सेवी अध्यक्ष मैदम सोंग छिंगलिंग ने डाक्टर कोटनिस के साथी डाक्टर बसु के नाम एख पत्र में लिखा, डाक्टर कोटनीस की स्मृति न केवल हम दो राष्ट्रों के धरोहर है, स्वतंत्रता और मानव मात्र की प्रगति के अदम्य योद्धाओं की महान पांतों की भी धरोहर है। भविष्य उन का आज से कहीं ज्यादा सम्मान करेगा। क्योंकि भविष्य के लिए ही तो वह लड़े और कुर्बान हुए।
विदेशी आक्रमण से जुझ रही चीनी जनता के प्रति दोस्ती और गहन सहानुभूति के प्रतीक के रुप में भारत की जनता के साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष ने जिस का प्रतिनिधित्वल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस करती थी और जवाहरलाल नेहरु ने जिसे शुरु किया था, सितम्बर 1938 में भारतीय जनता द्वारा दान किये गये साज सामान के साथ एख मेडिकल मिशन चीन भेजा। भारतीय राष्ठ्रीय कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष लुभाष चन्द्र बोस ने कलकत्ते की भव्य बिदाई सभा की अध्यक्षता की और मिशन के सदस्य कलकत्ते के डाक्टरों के बम्बई रवाना होते वक्त बिदाई देने के लिए हावड़ा स्चेशन स्वयं पहुंचे। भारतीय राष्ठ्रीय कांग्रेस की सर्वप्रिय नेताओं में से एक श्रीमति सरोजिनी नायडू 9 जनवरी 1938 को जिन्ना हाल में एक विशाल आम सभा की समाप्ति पर बैलार्ड पियर पर उन के जहाज को बिदा करने आई। उन्होंने कहा, हम आप को युद्ध पीड़ित चीनी जनता के पास सदिच्छा औऱ सदभावना के दूत के रुप में भेज रहे हैं। आप में से एकाध हो सकता है, स्वदेश वापस न भी लौट सके।
कितनी सच निकली उन की भविष्यवाणी। एक सचमुच वापस न आया। वह थे, डाक्टर कोटनीस।
भारत चीन और विश्व के लिए इस ऐतिहासिक घटना का महत्व अत्यन्त सार्थक है।