पठार में रहने वाले तिब्बती जाति के लोग बहुत सीधे-सादे और उत्साह से भरे होते हैं। मदिरा पीना त्यौहर की खुशियां मनाने का आम तरीका है। इस तरह मदिरा गीत तिब्बती जाति की परम्परागत मदिरा संस्कृति का एक भाग बन गया है। खाना खाते समय दूसरे के सम्मान में लोग मदिरा पिलाते हैं। अगर मदिरा गीत गाया जाता, तो एक-एक कप मदिरा पीना पड़ता है। विवाह समारोह में मदिरा गीत गाने का अनुभव बताते हुए सोनान छाईरांग ने कहा:"मैंने एक दिन दो रात या दो दिन एक रात तक लगातार गाना गाया था। उस दौरान खाने के वक्त आम तौर पर खाते हुए, मदिरा पीते हुए गीत गाते थे, लगातार 30 से अधिक घंटे तक। गीत गाने के बाद मैंने घर वापस लौटकर आराम किया, फिर दूसरे दिन ही मुझे थकान महसूस हुई, इसके बाद मैं लगातार दो दिनों तक सोया रहा। गाना गाने के वक्त मुझे बहुत खुशी होती है। रात में जब मैं दूसरे गायकों के साथ सवाल जवाब वाले गीत गा रहा था उस समय मुझे बिल्कुल भी नींद नहीं आई।"
तिब्बती वृद्ध सोनान छाईरांग दसेक वर्षों में गीत गाते थे। लेकिन आजकल समारोहों में वे कम ही गाते हैं। इसका एक कारण तो उनकी बढ़ी उम्र है और दूसरी तरफ़ उनके साथ सवाल-जवाब वाले गीत गाने वाले प्रतिद्विंद्वी कम मिल पाते हैं। आधुनिक सभ्य समाज में ह्वारेई लोकगीत जैसी परम्परागत संस्कृति धीरे-धीरे कमज़ोर हो रही है, आजकल ह्वारेई मदिरा गीत गाने वालों की संख्या कम हो रही है। इसकी चर्चा में सोनान छाईरांग ने कहा:"वर्तमान में मदिरा गीतों के प्रति बहुत ज्यादा लोगों की रुचि नहीं रह गई है। यह हमारे सामने मौजूद मुश्किल भी है। लम्बे समय में बाहरी दुनिया के प्रभाव के कारण लोगों के अपनी जाति की भाषा और लेखन के प्रति शौक पहले से ज्यादा नहीं रह गया है। यहां तक कि अपनी जाति के लोग अपनी जातीय भाषा भी नहीं बोल सकते। युवा लोग आधुनिक गीत संगीत से प्रभाव में पॉप संगीत ज्यादा पसंद करते हैं। इस तरह अब बहुत अधिक युवा लोग मदिरा गीत नहीं सुनना और गाना चाहते हैं।"