सूंघना (और सुनना भी)
सूंघने वाले उपाय का मतलब है कि चिकित्सक रोगियों की आवाज़ सुनते हैं और रोगियों के मल आदि की गंध सूंघने से रोग का पता लगाते हैं।
रोगियों की आवाज़ सुनने से न केवल आंतों में लगी बीमारियों का पता लगाया जाता है, बल्कि रोगियों की आवाज़ में आए हुए परिवर्तन से शरीर के अन्दर आंतों में हुए परिवर्तन का भी पता लगाया जा सकता है। रोगियों की आवाज़ में बोली, सांस और डकार आदि शामिल है।
पुराने समय में रोगी का शरीर तथा उसके रहने वाले कमरे की गंध सूंघने के द्वारा भी रोग की स्थिति तय की जाती थी। क्योंकि रोग के कारण रोगियों की आंत, खून और शारीरिक द्रव में बदबू पैदा हो जाती है, और इसी वजह से रोगियों की बदबू इनके रहने वाले कमरे में फैल जाती है। मिसाल के तौर पर संक्रामक रोग के रोगियों की बदबू इनके रहने वाले कमरों में फैल जाती है।
पूछताछ
पुराने समय में चिकित्सक अक्सर रोगी से और रोगी के रिश्तेदारों से पूछताछ करके रोग लगने के कारणों, इसके विकास व वर्तमान स्थिति का अंदाज़ा लगाता थे, और इलाज करने के उपायों के बारे में सोचते थे। पूछताछ करने के माध्यम से चिकित्सक रोगियों के रोग की स्थिति का पता लगाते थे, और अगर रोगियों की स्थिति काफी स्पष्ट नहीं होती थी, तो पूछताछ करने से मूल्यवान सूचनाएं प्राप्त करते थे। इसके अलावा पूछताछ करने से रोगियों की अन्य उपयोगी सूचनाएं जैसे रोगियों का दैनिक जीवन, काम करने का वातावरण, खाने पीने की स्थिति तथा शादी करने की स्थिति आदि प्राप्त की जाती थी। पूछताछ करते समय चिकित्सक रोगियों की आम स्थिति जैसे नाम, लिंग, उम्र, हैसियत, जाति, जन्मस्थान तथा इलाज लेने की तिथि आदि के बारे में पूछते है।
नब्ज देखना
नब्ज देखते समय चिकित्सक हाथ से रोगियों की नाड़ी पकड़ने के साथ-साथ इनके शरीर को भी छूता है। इस उपाय में दो तरीके होते हैं यानी नब्ज देखना और हाथ से छूना। पहले तरीके से चिकित्सक रोगियों की नब्ज पकड़कर रोगियों की अंदरूनी स्थितियों का पता लगाता है। फिर चिकित्सक हाथ से रोगियों के शरीर को छूने से रोगियों के शरीर में हुए असामान्य परिवर्तन का पता लगाता है, और इसी से रोगियों के रोग लगने का भाव तथा स्थितियों की गंभीरता तय करता है।