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चीनी परंपरागत चिकित्सा पद्धति
2013-10-28 14:33:49

चीन की परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों में हान जाति की चिकित्सा पद्धति का इतिहास सबसे लम्बा है और इसका अनुभव व विचारधारा भी सबसे संपन्न है।

चीनी परंपरागत चिकित्सा पद्धति का मूल स्रोत पीली नदी का क्षेत्र रहा है। बहुत पहले ही चीनी चिकित्सा पद्धति की अपनी व्यवस्था बन चुकी थी। विकास के लम्बे इतिहास में चीनी परंपरागत चिकित्सा पद्धति का भी निरंतर विकास होता रहा है। इस दौरान अनेक प्रसिद्ध चिकित्सक हुए, बहुत सी महत्वपूर्ण चिकित्सा पद्धति शाखाएं उभरी और अनेक रचनाएं भी आमने आयीं।

लगभग 3000 सालों से पहले के ईन और शांग राजवंशों में हड्डियों पर ही चिकित्सा पद्धति तथा दसेक बीमारियों का उपचार लिखा जाता था। चीन के शांग राजवंश के काल में चिकित्सक देखकर, सूंघकर, पूछताछ कर और नाड़ी देखकर बिमारी का पता लगाया करते थे और दवा, ऐक्यूपंचर तथा शल्यक्रिया आदि उपायों के द्वारा रोगी का इलाज करते थे। इसके बाद के छीन और हान राजवंशों के काल में ही चीन में ह्वांग-ती ग्रंथ जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना हुई। चीनी परंपरागत चिकित्सा पद्धति देने वाला यह सबसे पुराना चिकित्सा पद्धति ग्रंथ है। फिर मशहूर चिकित्सक च्यांग जूंगचिंग द्वारा रचित पुस्तक मियादी बुखार में और अन्य अनेक रोगों का इलाज करने वाले सिद्धांत चर्चित थे। इस पुस्तक ने इसके बाद की चिकित्सा पद्धतियों के विकास के लिए सिद्धांत का काम किया। हान राजवंश के दौरान चीन में शल्य चिकित्सा का काफी विकास होने लगा था। प्रसिद्ध ऐतिहासिक पुस्तक त्रितीय देशों का इतिहास में इस बात का उल्लेख हुआ है कि तत्कालीन जाने माने चिकित्सक ह्वाथो ने एनेस्थीसिया माफोसैन के जरिये रोगियों का ओपरेशन करना शुरू कर दिया था।

चीन के वेई, चिन और दक्षिण-उत्तर काल में ही (ईसा सदी 220-589) से स्वेई, थांग और पांच राजवंशों के काल तक (ईसा सदी 581-960) नाड़ी देखकर उपचार करने के तरीकों में तेज़ी से विकास हुआ। इसी दौरान चिकित्सा पद्धति की विभिन्न व विशेष शाखाएं भी स्थापित हुईं। इस काल की मशहूर चिकित्सा संबंधी रचनाओं में ऐक्यूपंचर के संदर्भ में ऐक्यूपंचर च्या ई ग्रंथ, दवा बनाने के संदर्भ में लेगूंग पौच्चि ग्रंथ, रोगों के कारणों की चर्चा करने वाला भिन्न भिन्न रोगों का स्रोत, बाल रोगों की चर्चा करने वाला लूशिन ग्रंथ तथा दवाओं की गुणवत्ता की चर्चा करने वाला नव संशोधित बेनचाओ आदि शामिल हैं। थांग राजवंश के काल में प्रसिद्ध चिकित्सक सुन सिम्याओ का छिआनचिन याओफांग तथा चिकित्सक वांग थाओ का वैइतैइ मियाओ का चिकित्सा संबंधी ग्रंथ भी बहुत मूल्यवान था।

सुंग राजवंश से (ईसा सदी 960-1279) चीन की चिकित्सा पद्धति की शिक्षा में ऐक्यूपंचर के प्रशिक्षण में भारी बदलाव आया। चिकित्सक वांग वेई ने शरीर पर ऐक्यूपंचर लगाने के लिए तांबे के बने शरीर पर ऐक्यूपंचर की शिक्षा पद्धति प्रस्तुत की। बाद में उन्होंने वास्तविक मनुष्य के कद के दो तांबे के शरीर बनाये, जिसके द्वारा छात्र ऐक्यूपंचर से उपचार का प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते थे। सुंग राजवंश तथा इसके बाद के काल पर भी इस चिकित्सा संबंधी शिक्षा पद्धति का व्यापक प्रभाव पड़ा है। मींग राजवंश (ईसा सदी 1368-1644) में कुछ चिकिस्तकों ने यह मत प्रस्तुत किया था कि मियादी बुखार और बुखार को अलग-अलग रोग के रूप में रखा जाना चाहिये। छींग राजवंश में बुखार के रोग का अनुसंधान उच्च स्तर पर पहुंचा हुआ दिखाई देता है। यहां तक कि इस रोग के लिए विशेष अनुसंधान कार्य की रचना भी हुई।

मींग राजवंश से ही आधुनिक चिकित्सा पद्धति पश्चिम से चीन में दाखिल होने लगी। कुछ चीनी चिकित्सकों का यह मत था कि चीनी व पश्चिमी चिकित्सा पद्धतियों को एक साथ मिलाना चाहिए, जो आज की मिश्रित चीनी पश्चिमी चिकित्सा पद्धति का स्रोत बना था।

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