ध्रुव ने हमारे रिपोर्टर को बताया कि लौटने के बाद उन्होंने काफी समय तक वह बेरोज़गार रहा था। सोचा कि हर संभव तरीके से कोई एक अनुकूल और इज्ज़त का काम मिल जाए। एक गाईड़ बनना उनके लिए न केवल एक अच्छा चुनाव रहा, बल्कि इससे परिवार की जरूरतें भी पूरी होती रही। हालांकि इसके बावजुद भी अभी भी नीचे स्तर का सामना करना पड़ता है। उन्हें यथार्थ का सामना करना होगा। वो इसे देश बचाने का वक्र के रूप में देखते है। वो बताते है कि उनका सपना अभी भी अपने पेशे की लाइन में जाना है। वो एक समाचार एसेंसी स्थापित करना चाहते है, पर उसके लिए पहले धन इकट्टठे करने की जरूरत है। अभी उन्होने एक चीनी स्कुल खोला है, और नेपाली लोगों को चीनी भाषा सीखाते है। नेपाली भाई ध्रुव बताते है कि इन दिनों चीनी भाषा सीखने के लिए नेपाली लोगों की संख्या बढ़ रही है, इसलिए मैनें चीनी सीखाने का स्कुल खोला है। दरअसल बात यह भी है कि मैं चीन सरकार के लिए कुछ योगदान करना चाहता हूँ, क्योंकि चीन सरकार ने मुझे स्कॉलरशिप दी थी, तभी मेरा चीन जाकर पढना सम्भव हो पाया था। इसलिए मैंने यह चीनी भाषा सीखाने का स्कुल खोला है, ताकि ज्यादा से ज्यादा नेपाली लोग चीनी भाषा सीख़ सकें। मेरी इच्छा है कि मैं इसे आगे भी लगातार जारी रखुँ।
यह थी ध्रुव की कहानी। रोज़गार पाना मुश्किल है?कितने स्नातक छात्र सोचते है कि काम उनके लायक नहीं है, उनकी इज्ज़त का नहीं है, और जो बड़े स्तर का है, उसके लायक योग्यता नहीं है, और जो छोटे स्तर का, उसे कोई करना नहीं चाहते। अंत में, खुद का काम करने में रास्ता संकीर्ण होता चला जाता है।
चीनी व्यंजन खाने के शौकिन असिम बहुत अच्छी चीनी भाषा बोलने वाले नेपाली युवक है। वर्ष 2003 से पेईचिंग विदेशी भाषा विश्वविधालय में 5 साल तक पर्यटन प्रबंधन की पढाई की। उनका मानना है कि पढाई के दौरान विचारों के घोड़ो को नहीं दौड़ाने चाहिए, बल्कि किसी उद्यम को शुरू करने के प्रयास में लगे रहना चाहिए। इन 5 सालों में उनके काम के अनुभव को बहुत ही रंगबिरंगा कहा जा सकता है। अपने दोस्त के साथ मिलकर एक टूर कंपनी खोली, रियल एस्टेट कंपनी में डिजाइन तैयार किया, और जब वाहनों में लगा मोबाइल टीवी चीन में लोकप्रिय होने लगा, तो तभी किसी एक वीडियो उत्पादन कंपनी को एक आईडिया बेच दिया। उनका कहना है कि उन्हें चुनौतीपूर्ण और अभिनव बातों में बेहद दिलचस्पी है। उन्हें विभिन्न तरह के काम करने का अनुभव है, जिसकी वजह से स्नात्क होने के बाद उन्हें बड़ी आसानी से नेपाल की सब से बड़ी विज्ञापन कंपनी में नौकरी मिली और वो कंपनी में एक क्रिएटिव निदेशक बने। हाल के दिनों में उन्होंने अपने विश्वविधालय की पढाई को जोड़कर दो पर्यटन कंपनियां खोलीं हैं, जिनमें वो कम्पनियों के मालिक बन गये है। 18 वर्ष की कम उम्र में घर छोड़कर काम करने वाले इस नेपाली युवक ने अपने करियर में छोटा-मोटा मुकाम हासिल कर लिया था। रोज़गार पाने के क्षेत्र में उनका क्या अनुभव है?वो बताते है कि बहुत लोग कहते है कि मैने इतना पढा है, उतना पढा है पर मुझे लगता है कि यह ज़रा-सा भी महत्वपूर्ण नहीं है। क्योंकि शैक्षिक पृष्ठभूमि सिर्फ एक प्रारंभिक प्रयास है। तुमने कुछ भी पढा हो, पर हकिकत यह है कि आज के समय में यह ज्यादा मायने नहीं रखता है। सबसे जरूरी है अनुभव का होना। क्योंकि अनुभव आपको बहुत कुछ सीखा देता है, जो किताबों में नहीं होता है। मुझे सोचना पसंद है। अपने दिल की बात सुनो, और वही करो जो आपका दिल कहता है। यह ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसके साथ-साथ मुझे नये-नये आईडियाज़ और चुनौतियां भी पसंद है। पुराने और रूढि सोच को तोड़ने की आदत-सी हो गई है। मुझे वो काम करने में अच्छा लगता है, जो दूसरा इंसान करने की सोच भी नहीं सकता और कर भी नहीं सकता।