वर्ष 2007 के सितंबर में गुलशन को शांगहाई विदेशी भाषा विश्वविद्यालय की छात्रवृत्ति मिली। इस तरह चीन में शिक्षा पाने का सपना पूरा हुआ। दिलचस्प बात ये है कि शांगहाई विशेदी भाषा विश्वविद्याल में उसे एक बार फिर ईरान में उसके साथ फ़ारसी भाषा सीखने वाले चीनी छात्र मिले। पुराने दोस्त एक बार फिर मिलने से गुलशन को बहुत खुशी मिली।
उसने कहा कि मुझे फिर एक बार पहले के पुराने दोस्त मिले। मुझे बहुत अच्छा लगा। दिलचस्प बात ये है कि शांगहाई में हम फ़ारसी भाषा और अंग्रेजी के बजाए चीनी में बात करते हैं। उन्हें आश्चर्य होता है कि मेरी चीनी इतनी अच्छी कैसे है। मैं इस पर गर्व करती हूं।
हालांकि मैं चीनी बोल सकती हूं, लेकिन चीन जाने के शुरूआत में मुझे कुछ कठिनाईयां भी हुईं। चीन आने के समय प्रमुख सवाल धर्म और आहार का था। गुलशन ने कहा कि दोस्तों और छात्रों की मदद से मैंने तेजी से अपने आप को चीन के जीवन के अनुरूप बनाया था।
शांगहाई विदेशी भाषा विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद गुलशन ने स्वादेश लौटकर काम शुरू किया। अपनी श्रेष्ठ क्षमता और अच्छी चीनी भाषा से वह पाकिस्तान स्थित चीनी दूतावास के वीजा कार्यालय में काम करने वाली पहली पाकिस्तानी कर्मचारी बन गई। कुछ समय बाद उसने दूतावास का काम छोड़कर पाकिस्तान के एक हाई स्कूल में चीनी भाषा सिखाने का काम शुरू किया।
चीनी भाषा के अध्यपक का काम करने की चर्चा करते हुए गुलशन ने कहा कि एक कारण है अर्थतंत्र। दूतावास में काम बहुत है लेकिन वेतन इतना ज्यादा नहीं है। और दूसरा कारण यह है कि मैं चाहती हूं अपनी चीनी भाषा और चीन की जानकारी से और ज्यादा पाकिस्तानियों को चीन के बारे में जानकारी पाने का मौका मिल सकता है।