चीन काफी हद तक भारत की तरह हैं। यह वो जगह है जहाँ आप अभी भी बैलों द्वारा खेत जोतते हुए देख सकते हो और किसान को काम करते वक्त मोबाइल फोन पर बात करते हुए। यह तो आइडिया फोन के प्रचार वाक्य से मेल खाता हैं.....जस्ट टाँक वेन यु वाँक बेबी….!!!
मेरा यह मानना हैं कि चीन एक तरफ विकास की राह पर अग्रसर हैं, तो दूसरी तरफ अपनी संस्कृति और परम्परा को संयोए रखा हैं।
यहाँ मैं अक्सर देखता हूँ कि बडी-बडी कम्पनी के लोग हाई-प्रोफाइल बिजनेस मीटिंग में नामी गिरामी ब्राण्ड जैसे अरमानी, ज़ारा, लूइस-बैटन आदि के सूट और कपड़े पहनते हैं। कुछ लोग तो अभी भी चीनी नववर्ष मनाने अपनी नाय-नाय यानि दादी माँ के पास उनके गांव जाते हैं, जहाँ वह मुर्गी पालती है, आलूबुखारे का पेड़ उगाती है, ताजी मिर्च पिसती है, और रसोईघर में मसालेदार तोफू-चिकन बनाती हैं। यह आधुनिकीकरण और परंपरावादी का एक मिला-जुला सवरूप हैं। यहां आपको अक्सर नौजवान बास्केटबॉल खेलते हुए, और बूढें लोग सवेरे-सवेरे थाई-छी व्यायाम करते हुए नज़र आ जाते हैं।
मैं यहां देखता हूँ कि चीन में सड़कें, बिजली, रोज़गार के साधन, चिकित्सा, खान-पान और रहन-सहन का स्तर काफी अच्छा हैं, और अर्थव्यवस्था के फलने-फूलने के साथ-साथ, चीन में जीवन काफी संतोषजनक हैं।