Web  hindi.cri.cn
स्वर्ग मंदिर
2013-05-06 19:39:54

स्वर्ग मंदिर चीन में अब तक सबसे पूर्ण रूप में सुरक्षित और सबसे बड़ा पूजा स्वरूपी स्थापत्य समूह है। इसे चीनी भाषा में'थियन थान 'और अंग्रेजी भाषा में'द टैम्पल आफॅ हैवन'के नाम से पुकारा जाता है। अच्छे मौसम और शांति की प्रार्थना करने हेतु विभिन्न प्राचीन कालों के सम्राट हर साल स्वर्ग मंदिर में पूजा करते थे। सामंती सम्राट मंगल की प्रार्थना के लिए स्वर्ग, भूमि, सूर्य, चांद, पहाडों व नदियों की पूजा करते थे, लेकिन स्वर्ग देवता की पूजा करना सबसे महत्वपूर्ण माना जाता था। प्राचीन चीनी परम्परा के अनुसार सम्राट स्वर्ग राजा का पुत्र होता था। सम्राट स्वर्ग राजा के पुत्र के रूप में जग की प्रजा पर शासन करता था और राज्य का बागडोर संभालता था, इसलिए स्वर्ग की पूजा पर उनका विशेषाधिकार होता था। यह अधिकार किसी भी अधीनस्थ पदाधिकारी और प्रजा को नहीं होता था। स्वर्ग मंदिर का निर्माण ईसा 1420 में हुआ, जहां मिंग और छिंग राजवंशों (ईस्वी 1368- 1911) के सम्राट स्वर्ग की पूजा करते थे।

स्वर्ग मंदिर पेइचिंग के प्राचीन शाही प्रासाद के दक्षिण में स्थित है, जिसका क्षेत्रफल शाही प्रासाद से चार गुना बड़ा है। स्वर्ग मंदिर के दक्षिणी भाग की दीवार चौकोर है, जो भूमि का प्रतीक है और उत्तरी भाग की दीवार अर्ध चंद्राकार है, जो स्वर्ग का प्रतीक है। यह डिजाइन प्राचीन चीन की इस मान्यता पर आधारित था कि स्वर्ग गोलाकार होता है और भू-मंडल चौकोर होता है। स्वर्ग मंदिर के भीतरी मंच और बाह्य मंच में दो भाग हैं। मंदिर के सभी प्रमुख स्थापत्य भीतरी मंच की मध्य धुरी के उत्तर व दक्षिण दोनों ओर केन्द्रित हैं। इस धुरी पर दक्षिण से लेकर उत्तरी अंत तक क्रमशः गोलाकार पूजा-मंच, परमेश्वर भवन, स्वर्ग प्रार्थना भवन खड़े नजर आते हैं। गोलाकार पूजा-मंच एक विराट तीन मंजिला गोलाकार प्रस्तर मंच है। इसी मंच पर सम्राट स्वर्ग की पूजा करते थे। स्वर्ग पूजा की शाही रस्म बहुत जटिल और गंभीर होती थी, आमतौर पर वह चीनी पंचांग के अनुसार हर साल के शीतकाल के आगमन के दिन ( हर दिसम्बर की 22 ताऱीख के आपपास ) आयोजित होती थी। अनुष्ठान की रस्म सुर्योद्य से पूर्व होती थी और सम्राट खुद रस्म का तत्वावधान करते थे। रस्म के आयोजन के समय गोलाकार पूजा-मंच के आगे बड़े बड़े आकार वाले लाल रंग के लालटेन लटकाए जाते थे, जिनमें एक मीटर लम्बी मोमबत्तियां प्रज्वलित होती थी। मंच के दक्षिण पूर्व कोने में एक विशेष धूपदान रखा जाता था, जिसमें पूजा की रस्म में प्रयुक्त पशु और रेशमी कपड़े जैसी चीजों को जलाया जाता था। रस्म के दौरान सुगंधित धूपबत्तियां जलायी जाती थीं, बाज-साज बजाया जाता था और वातावरण अत्यन्त गंभीर और मंगलमय होता था।

1 2 3
आप की राय लिखें
Radio
Play
सूचनापट्ट
मत सर्वेक्षण
© China Radio International.CRI. All Rights Reserved.
16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040