लंदन का चारिंग क्रास रोड पुरानी पुस्तकों की दुकान के लिए जाना जाता है। इनमें से कुछ पुरानी पुस्तकों की दुकान किताब प्रेमियों के लिए पवित्र स्थल माना जाता है। पेरिस में लॉवर पैलेस से नोट्रे डेम तक की सड़क, न्यूयार्क का मैनहाटन, कोलंबिया विश्वविद्यालय आदि ऐसी जगहें हैं जहां आज भी पुरानी पुस्तकों की दुकानों का भरमार है और वहां पर जाने वाले किताब प्रेमियों का आज भी जमावड़ा होता है। यदि ये जगहें नहीं होतीं, तो आज किताब प्रेमी वहां नहीं जाते, तो उन जगहों पर किसी लोहे या स्टील का फैक्ट्री बन जाता। यह तो किताब की दुकान, किताब प्रेमी और किताब पढ़ने की संस्कृति का देन है कि आज भी उन स्थलों पर हरियाली छायी हुई है।
बाहरी दुनिया के लिए किसी शहर का पुस्तक मेला उसका सांस्कृतिक परिचायक होता है तथा उस की भावना दर्शाने का एक नेम कार्ड का काम आता है। जब कि उसी शहर के लोगों के लिए वह एक ऐसी खिड़की है जिस के जरिए लोगों के लिए नयी दुनिया खुल जाती है, अगर किताब खरीदना है तो किसी भी किताब की दुकान से खरीदी जा सकती है यहां तक कि इंटरनेट पर भी खरीददारी की जा सकती है। किन्तु बुक मेले में जाकर किताबें खरीदने का सिर्फ खुरीदारी से मायना नहीं होता है। इसका मकसद सिर्फ किताब खरीदना ही नहीं है, बल्कि अन्य प्रकार का आनंद भी मिल सकता है, जैसाकि किसी वक्त पर आपकी मुलाकात किसी प्रसिद्ध लेखक के साथ हो जाती है, किसी कॉफी हाउस में किसी विद्वान के साथ बैठकर किसी विषय पर बहस करने का अवसर मिल जाता है। यही पुस्तक मेले की सबसे बड़ी विशेषता है और यही विशेषता शहर के लोगों को प्रभावित किए बिना नहीं रह पाती है।
सामूहिक चर्चा, आम विषय और उसके बारे में प्राप्त विचार के साथ ही इस बार का नौवां शांघाई पुस्तक मेला समाप्त हो गया। वह एक नए संदेश वाहिका के रूप में ध्यानाकर्षित हुआ है। शांघाई पुस्तक मेले के जरिए लोगों को किताब पढ़ने का प्रोत्साहन मिलता है और पढ़ना बहुत समय से जीवन का एक अभिन्न भाग बन जाता है और इस मंत्र के साथ लोगों के घर-घर में फैल जाता है।