विकासः चलें, अब हम दूसरा पत्र पढ़ेंगे। सरकारी अस्पताल चौक, समस्तीपुर के वर्लड रेडियो क्लब के अध्यक्ष मि.प्रकाश ने अपने पत्र में यह लिखा है कि हम लोग चाइना रेडियो इन्टरनेशनल के हिन्दी कार्यक्रम हेतु अपनी रचनाएं-कहानी एवं कविता भेजना चाहते हैं। क्या आप मेरी रचनाओं को स्वीकार कर अपने हिन्दी कार्यक्रम में स्थान दे सकते हैं?आप लोग अपने कार्यक्रम हेतु कैसी रचनाओं को स्वीकार करते हैं?संभव हो सके, तो अवगत कराइएगा।
चंद्रिमाः शायद प्रकाश भाई हमारे आप का पत्र मिला कार्यक्रम से परिचित नहीं हैं। इसलिये वे ऐसे सवाल पूछते हैं। यहां मैं सभी श्रोताओं को यह अवगत कराती हूं कि केवल पत्र ही नहीं, आप लोगों द्वारा लिखी गयी अच्छी कविता या कहानी भी हम प्रस्तुत करेंगे। और कुछ अच्छी रचनाओं को हम अपनी पत्रिका श्रोता वाटिका में भी शामिल करेंगे। हम आप लोगों की रंगारंग रचनाएं पढ़ने की प्रतीक्षा में हैं।
विकासः यही नहीं श्रोताओ, अगर अपनी रचना में आप के विचार बहुत ध्यानाकर्षक व उल्लेखनीय है, तो मैं भी आप से इन्टरव्यू करूंगा, और हमारे कार्यक्रम आप की आवाज़ ऑन लाइन में प्रस्तुत करेंगे। ताकि ज्यादा से ज्यादा श्रोताओं को आप का परिचय दे सकेंगे।
चंद्रिमाः अच्छा, कविता की चर्चा से याद आया अभी हमारे पास एक कविता मौजूद है। वह शेखपुरा बिहार के कृष्ण मुरारी सिंह किसान द्वारा लिखी गयी है। कविता के अलावा उन्होंने यह भी लिखा है कि श्रोता वाटिका का अंक काफ़ी अच्छा आ रहा है। मैं इधर काफ़ी कविताएं लिख रहा हूं। एक कविता संग्रह की पुस्तक बनायी है, नाम है जन साधारण। वाह, बहुत अच्छी बात है। अगर संभव हो, तो कृप्या आप यह कविता संग्रह हमें भी भेजिये।
विकासः अब हम कृष्ण मुरारी सिंह जी की यह कविता पढ़ेंगे। नाम है विज्ञान कांग्रेस। किसान कांग्रेस का सुन्दर संकल्प, रोटी का नहीं कोई है विकल्प। भोजन पानी, हवा में शुद्धता है लानी, शाकाहारी भोजन में है भारतीय ज्ञानी।
चंद्रिमाः खाद्य, भोजन, पर्यावरण की करो सुरक्षा, इसी से होती है जीव जगत की रक्षा। नहीं करो प्रकृति की कभी उपेक्षा, विज्ञान कांग्रेस करेगी आत्म रक्षा।
विकासः धरती में विष देना छोड़ो, पेड़ पौधों को कभी न तोड़ो। धूल-धुआं से नाता तोड़ो, परम्परा-विज्ञान का अमृत घोलो।
चंद्रिमाः मिल बांट कर सब खाओ, पिकनिक में न जीवन बिताओं। कभी किसी को न भूखा सुलाओ, सब को भोजन का अधिकार दिलाओ।
विकासः विज्ञान कांग्रेस का यह राम राज्य, सभी लोग होंगे, खुशहाल। भोजन, पोषण का लिये उपहार, पर्यावरण की रक्षा को करो स्वीकार।
चंद्रिमाः देश देश के मनीषी आये, बसुधैव कुटुम्बकम हम पाये। ज्ञान, विज्ञान का त्रिवेणी बहाये। प्रधानमंत्री जी का नेतृत्व पाये।
विकासः भोजन की है सुन्दर व्यवस्था, अतिथि देवाभव की बजी परम्परा। अपनी, प्रकृति, संस्कृति में शालीनता, भारतवर्ष की यह उच्च परम्परा।
चंद्रिमाः सफल हुआ विज्ञान कांग्रेस, खाद्य संकट का हल होगा। पोषण तकनीक विकसित होगा, पर्यावरण अमृत बन सकेगा।
विकासः जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, धरती को करेगा स्वर्ग समान। गतिविधियां होगी अमृत समान, विज्ञान कांग्रेस का यही पैगाम।
चंद्रिमाः बहुत अच्छी कविता है। श्रोताओ, अगर आप को भी कविता लिखने का शौक है, तो मुरारी जी की तरह आप भी हमें अपनी रचनाओं को भेज सकते हैं।
विकासः अगला पत्र है पश्चिम पंगाल के हमारे श्रोता माधवचंद्र सागौर का। वास्तव में यह एक पत्र नहीं है, वह एक मोनिटरिंग रिपोर्ट है। इस में हिन्दी कार्यक्रम के सभी मिटरबैंड पर कार्यक्रम का समय, सिग्नल, प्रोग्राम की ठोस सूचनाएं व कॉमेंट आदि शामिल हैं। जानकारी के लिए हम आपको तहेदिल से धन्यवाद देते हैं।