जोखांग मठ का प्रातः कालीन समय भक्तों से भरा हुआ होता है। सभी लोग यहाँ पर सूत्रपिटक को घुमाने के लिए आते हैं। उस जगह पर जमीन पर चारों तरफ तेल ही तेल फैला होता है, मिट्टी तेल में सनी होती है लेकिन इसके बावजूद लोग बड़ी तन्मयता के साथ सूत्रपिटक के चारों तरफ परिक्रमा करते रहते हैं। यहाँ आने वाले लोगों की संख्या बहुत ज्यादा होता है लेकिन फिर भी लोग बहुत ही एकाग्रता के साथ मंत्र का जाप करते रहते हैं। वे लोग अपने बुद्ध प्रतिमा को ढ़ूढंते हैं और उसकी पूजा करते हैं। सामने रखे दीपों को तेल से भरते हैं, तथा दीप के प्रकाश में सभी लोगों का चेहरा दीप्तमान होता रहता है। उस समय हमलोग तिब्बती लोगों के धार्मिक जीवन का अवलोकन कर सकते हैं। हमारे गाईड ली श्याओह्वा ने परिचय देते हुए कहा:
"हमलोग यहाँ पर जब सूत्रपिटक के चारों तरफ परिक्रमा करते हैं या फिर यहाँ पर घुमते हैं तो घड़ी की सूई की दिशा में घुमते हैं। तिब्बती बौद्ध धर्म चार संप्रदायों में बँटा हुआ है। लेकिन जोखांग मठ किसी विशेष बौद्ध संप्रदाय की विशेषता वाला नहीं है। यहाँ पर चारों संप्रदाय के लोग पूजा करने आते हैं। यह एक बौद्ध प्रतिमा वाला पवित्र स्थल है। इसलिए जोखांग मठ में शाक्यमुनि के 12 वर्षिय प्रतिमा के अलावा यहाँ के चारों बौद्ध संप्रदायों के प्रवर्तकों की भी प्रतिमा है।"
जोखांग मठ के निर्माण के समय तक तिब्बत में घर का त्याग कर भिक्षु बनने का रिवाज नहीं था। 5 वीं शताब्दी में जब दलाई लामा ने धार्मिक शासन शुरू किया था तो उस समय जोखांग मठ उनके शासन क्षेत्र में नहीं था। तिब्बत में बौद्ध धर्म के कलगु संप्रदाय के उत्पत्ति के बाद, हरेक साल जोखांग मठ में सभा लगना शुरू हुआ। उसी समय से वहाँ पर दीक्षा समारोह का आयोजन होना भी शुरू हुआ। इसलिए यह कहा जा सकता है कि जोखांग मठ प्राचीन काल से बौद्ध धर्म के आयोजनों का केंद्र रहा है।
"यह जोखांग मठ का एक प्रांगण है। वर्ष 1409 में, कलगु संप्रदाय के प्रवर्तक सोंगपा ने यहाँ पर बहुत बड़े पैमाने पर दीक्षांत समारोह का आयोजन किया था। इस समारोह का नाम जोखांग समारोह था। जोखांग मठ का नाम भी इसी समारोह के नाम पर रखा गया है। हजारों बौद्ध भिक्षु यहाँ बैठकर एकसाथ बौद्ध सूत्र का पाठ करते हैं। इसके साथ ही यह एक बहुत बड़ा परीक्षा स्थल भी है। यहाँ पर कलगु संप्रदाय के सबसे उच्च डिग्री के लिए परीक्षा दिया जाता है जो वर्तमान समय के स्नातकोत्तर और डॉक्टेरेट की डिग्री के बराबर होता था। इस डिग्री के मिलने के बाद ही तीन बड़े मठों का मठाधीश बनने का मौका मिलता है।"