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तिब्बती सांस्कृतिक सप्ताह बर्लिन में
2014-01-16 17:44:59

नृत्य-गान मंडली का पोस्टर

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा के दक्षिण में स्थित लोका प्रिफैक्चर तिब्बती जाति का उद्गमस्थल माना जाता है। दिव्य पहाड़ व पवित्र झीलों के बीच तिब्बत का पहला महल--योंगबूराखोंग, तिब्बती बौद्ध धर्म का पहला मंदिर--सामये मठ और पहले बौद्ध धार्मिक भवन—चछांगचू मठ मौजूद हैं। इसके साथ ही लोका प्रिफैक्चर से ही तिब्बती पारंपरिक संस्कृति की शुरुआत भी हुई। लोका प्रिफैक्चर में नृत्य गान कला ने तिब्बती संस्कृति और कला के विकास के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका भी अदा की है। वर्ष 2013 के अक्तूबर माह में लोका प्रिफैक्चर की नृत्य-गान मंडली ने जर्मनी की राजधानी बर्लिन में आयोजित वर्ष 2013 जर्मन•चीनी तिब्बती सांस्कृतिक सप्ताह में अद्भुत प्रदर्शन किया था। तो आज के इस कार्यक्रम में हम आपको लोका प्रिफैक्चर की नृत्य-गान मंडली के रिहर्सल की जगह पर ले जाकर वहां का दृश्य दिखाएंगे।

जर्मनी में आयोजित तिब्बती सांस्कृतिक सप्ताह में भाग लेने के लिये लोका प्रिफैक्चर की नृत्य-गान मंडली ने पूरे क्षेत्र से तीस से अधिक उत्कृष्ट युवा नृतक और गायक चुने। वर्ष 2013 जर्मन•चीनी तिब्बती सांस्कृतिक सप्ताह के उद्घाटन समारोह में उन्होंने 90 मिनट के दौरान जर्मनी व यूरोपीय श्रोताओं के सामने तिब्बती विशेष नृत्य, संगीत वाद्ययंत्र और राष्ट्रीय पोशाक आदि का बेहतरीन प्रदर्शन किया। लोका प्रिफैक्चर की नृत्य-गान मंडली के निदेशक पाईमा वांगत्वे ने इसकी जानकारी देते हुए कहा:"हमने डेढ़ घंटे का कार्यक्रम तैयार किया, जिसमें लोका प्रिफैक्चर के विशेष नृत्य के साथ-साथ लोका में स्थापित पहला तिब्बती थिएटर'ताशी शेरपा'और कोंगगा कांउटी में प्रचलित का ड्रम डांस आदि कार्यक्रम भी शामिल है, जो चीनी राष्ट्रीय गैरभौतिक सांस्कृतिक विरासत की नामसूचि में शामिल किए गए हैं। इसके साथ ही हमारी प्रस्तुतियों में छांगक्वो क्षेत्र में प्रचलित च्वोवू नृत्य भी शामिल होता है। यह नृत्य हाथ में सचेतक पकड़ते हुए ड्रम बजाने के साथ-साथ नाचा जाता है और तिब्बत स्वायत्त प्रेदश की राजधानी ल्हासा समेत कई स्थलों में बहुत लोकप्रिय है। इनके अलावा सांस्कृतिक सप्ताह में हमने देश भर में अन्य तिब्बती बहुल क्षेत्रों में तिब्बती संस्कृति के प्रतिनिधित्व वाले कार्यक्रम भी प्रदर्शित किए, जिन में उत्तरी तिब्बत में चरवाहे का नृत्य,पूर्वी तिब्बत में श्वानज़ी नृत्य और तिब्बती पोशाकों के प्रतिनिधित्व वस्त्र शो जैसे कार्यक्रम शामिल था।"

नृत्य-गान मंडली के अध्यक्ष वांगत्वे

वर्ष 2006 लोका नृत्य गान मंडली ने बड़े लोक संगीत नृत्य"यारलुंग जांग्बो"का सफल प्रदर्शन किया। इसमें हनुमान व संभोग देवता के बीच प्राचीन कथा की शुरूआत से दर्शकों को तिब्बती संस्कृति व लोका क्षेत्र के लोगों का खुशहाल जीवन दिखाया। कलाकारों ने इस प्राचीन संगीत के राष्ट्रीय चरित्र व लोकप्रियता की विशेषता बनाए रखते हुए इसमें स्टाइलिश व आधुनिक तत्व भी डाले। लोका नृत्य गान मंडली के अध्यक्ष पाईमा वांगत्वे के मुताबिक, जर्मनी के दर्शकों ने तिब्बती सांस्कृतिक सप्ताह में इस भवय लोक संगीत नृत्य की काफी प्रशंसा की। उन्होंने कहा:

"यारलुंग जांग्बो संस्कृति को अच्छी तरह से दिखाने के लिये हमारे प्रदर्शन'यारलुंग जांग्बो'संगीत नृत्य में विशेष तौर पर तिब्बती प्राचीन संगीत वाद्ययंत्र की प्रस्तुति शामिल की गई। इसके आलावा, तिब्बती लोगों का बुनाई नृत्य, कोंगगा ड्राम डांस और जातीय फैशन शो आदि आकर्षित कार्यक्रम भी जर्मनी में प्रदर्शित किए गए।"

नाचना का अभ्यास करते हुए

वर्ष 1995 पाईमा वांगत्वे ने लोका नृत्य गान मंडली का नेतृत्व कर नीदरलैंड, फ्रांस और स्पेन जैसे देशों का दौरा किया। उनके विचार में अभिनेता और अभिनेत्रियों की संख्या और प्रस्तुतियों की गुणवत्ता की दृष्टि से देखा जाए, तो बर्लिन में आयोजित मौजूदा तिब्बती संस्कृति सप्ताह में प्रस्तुत कार्यक्रम सबसे अच्छा रहा। उन्होंने कहा:"वर्ष 1995 में हम 20 लोग यूरोप में प्रदर्शन करने के लिये गए, जिसमें केवल 12 डांसर थे। उस समय का लाइनअप वर्तमान प्रदर्शन की तुलना में बहुत कमजोर था। इस बार मैंने खुद तिब्बती जातीय फैशन शो में भी भाग किया।"

एक बांसुरी बजाने वाले अभिनेता के रूप में जर्मनी में आयोजित मौजूदा तिब्बती संस्कृति सप्ताह के दौरान पाईमा वांगत्वे ने बांसुरी बजाने से जर्मन लोक गीत"लोरेलेई"पेश किया, जबकि कई तिब्बती गायकों ने इसके साथ-साथ जर्मन भाषा में वहां के लोकप्रिय गीत गाए। फेमा वांगत्वे के विचार में हालांकि तिब्बती गायकों की पोशाक व गायन जर्मनी से अलग है, लेकिन शायद जौ के आटे व मक्खन का मिश्रण, यह जर्मन गाना एक अनोखा आकर्षण पैदा करता है।

अब आप सुन रहे हैं तिब्बती गायिका पाईमा रामू फोन पर डाले वीडियो के सामने जर्मन गीत सीखने का एक परिदृश्य है। पहली बार जर्मन भाषा वाला गीत गाना उसके लिए बड़ी मुश्किल है। तिब्बती गायिकी पाईमा रामू ने कहा:"जर्मन भाषा मेरे लिये थोड़ी मुश्किल है,लेकिन कोई बात नहीं। मैं तिब्बती भावना से इस गीत गाने की पूरी कोशिश कर रही हूं। पहले मैंने तिब्बती,चीनी, इतालवी भाषा में गाया, जर्मन सचमुच बहुत मुश्किल है।"

अभिनेत्री संवाददाता के साथ इन्टरव्यु लेते हुए

वर्तमान प्रदर्शन में शामिल बुनाई नृत्य, ड्राम डांस आदि नृत्य सब तिब्बती लोगों के जीवन से आए हैं। कोरियोग्राफ़र लाबा चोमा के विचार में इन मूल नृत्यों के आधार पर सुधार करते हुए इसमें कुछ आधुनिक विशेषताएं भी जोड़ने की जरूरत है,ताकि तिब्बती लोक डांस और अधिक आकर्षक बने।

लाबा चोमा ने वर्ष 1995 में लोका नृत्य गीत मंडली के यूरोप प्रदर्शन में भाग लिया था। उनके अनुसार उस समय उन्होंने केवल गांव से आए क्वोच्यांग नृत्य और रेबा नृत्य आदि लोक डॉस का प्रदर्शन किया था। जर्मनी में आयोजित वर्तमान प्रदर्शन उसकी तुलना में बहुत बेहतर हो गया है। इस बार उन्होंने मूल पारिस्थितिकी तत्वों के आधार पर बहुत आधुनिक नृत्य तकनीक व तिब्बत प्रभावी संयोजन के प्राचीन लोक परंपरा को जोड़ा है। इसके माध्यम से जर्मनी के दर्शकों को एक तेजी से विकसित हो रहे तिब्बत के दृश्य दिखाए गए। लाबा चोमा ने कहा:"पिछली बार जब हमने यूरोप में प्रदर्शन किया था,वहां के स्थानीय लोगों की बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली। प्रर्दशन के बाद दर्शकों ने 15 मिनट तक तालियां बजायीं थीं। हम बहुत उत्साहित थे। हालांकि शायद वे हमारे प्रदर्शन को अच्छी तरह नहीं समझते,लेकिन उन्होंने बहुत सक्रिय रूप से तालियां बजायीं, इसने मेरे ऊपर गहरी छाप छोड़ी।"

मौजूदा जर्मन•चीनी तिब्बती सांस्कृतिक सप्ताह में भाग ले रहे ज्यादातर तिब्बती कलाकारों के लिये यह पहली जर्मनी यात्रा थी। प्रदर्शन के बाद वे जर्मनी की राजधानी बर्लिन और आसपड़ोस के बड़े शहरों में घूमने गए और जर्मन लोगों के जीवन को अनुभव किया। इसके प्रति उन्हें बहुत अच्छा लगता है।

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