लुछ्वु कांउटी अस्पताल में कार्यरत तिब्बती डॉक्टर च्वो माच्या
तिब्बती चिकित्सा और औषधि के शास्त्र की विशेष व्यवस्था होती है, जिसके कारगर उपचार तरीके और प्रदुषणहीन प्राकृतिक औषधियों को वर्तमान में ज्यादा से ज्यादा लोग स्वीकार करते हैं।
उत्तर पश्चिमी चीन के कानसू प्रांत के कान्नान तिब्बती प्रिफैक्चर की लुछ्वु कांउटी के कांउटी स्तरीय अस्पताल में कार्यरत तिब्बती चिकित्सा के डॉक्टर तान चङच्या की कथन:"पहले हमारे तिब्बती औषधियां मुख्य तौर पर रूस जैसे देशों में आमतौर पर मिल जाती थी। वर्तमान में फ्रांस और मंगोलिया जैसे देशों में भी पाई जाती है। कुछ तिब्बती औषधियों से बनाई गई दवाइयां हमारे अस्पताल से विदेशों को निर्यात की गई है।"
लुछ्वु कांउटी के कांउटी स्तरीय अस्पताल में कार्यरत तिब्बती डॉक्टर च्वो माच्या ने जानकारी दी:"वर्तमान में बहुत से विदेशी लोग तिब्बती चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन करते हैं। गत वर्ष हमारे अस्पताल ने विदेशियों के लिए तिब्बती चिकित्सा से संबंधित एक प्रशिक्षण गतिविधि चलाई। इसके साथ ही कई विदेशी लोग तिब्बती चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन करने के लिए छिंगहाई प्रांत के तिब्बती बहुल क्षेत्र जाते हैं। अध्ययन करने के बाद वे स्वदेश लौटकर आमतौर पर तिब्बती चिकित्सा से संबंधित कार्य करते हैं।"
तान चङच्या और च्वो माच्या दोनों लुछ्वु कांउटी अस्पताल में कार्यरत तिब्बती चिकित्सा के डॉक्टर हैं। उन्होंने कहा कि इधर के सालों में सामाजिक विकास के चलते लोग प्रकृति का ज्यादा सम्मान करते हैं। तिब्बती चिकित्सा और औषधियां प्रकृति से आते हैं। तिब्बती औषधियां ऐसी किस्म की औषधियां हैं, जिसका कुप्रभाव कम होता है। इसके साथ ही तिब्बती चिकित्सा पद्धति की विशेष उपचार तरीके को अधिक से अधिक रोगियों ने स्वीकार किया है। यहां तक कि कई विदेशी मरीज़ भी इस पर विश्वास करते हैं।
लुछ्वु काँउटी अस्पताल के तिब्बती चिकित्सा के डॉक्टर तान चङच्या
परम्परागत तिब्बती औषधि की 3000 से अधिक किस्में होती है, जिनमें 6 सौ से अधिक किस्मों वाली औषधियों का ज्यादा प्रयोग किया जाता है। ये औषधियां विश्व की छत कहलाने वाले छिंगहाई-तिब्बत पठार के प्राकृतिक पारिस्थितिकी क्षेत्र में उपजती है, और वनस्पतियों व जानवरों से बनायी जाती हैं। आंशिक तिब्बती औषधियां न केवल रोग का इलाज कर सकती हैं, बल्कि आम समय में रोग विरोध और स्वास्थ्य संरक्षण के लिए भी लाभदायक हैं। लुछ्वु काँउटी अस्पताल के तिब्बती चिकित्सा के डॉक्टर तान चङच्या ने जानकारी देते हुए कहा:"प्रकृति में उपजी हुई जड़ी-बुटियां प्राप्त करने के दौरान हमें बहुत ज्यादा ध्यान देना चाहिए, क्योंकि सनसाइड और नाइटसाइड में उगती हुई किसी एक ही जड़ी-बुटी की अलग-अलग विशेषता होती है।"
आमतौर पर तिब्बती जड़ी-बुटियां समुद्र तल से 3 हज़ार मीटर की ऊंचाई पर उगती हैं, यहां तक कि कुछ जड़ी-बुटियां समुद्र तल से 5 हज़ार मीटर की उंचाई पर भी उग जाती हैं। हर वर्ष अप्रैल से अक्टूबर के अंत तक डॉक्टर तान चङच्या बीस या तीस लोगों का नेतृत्व कर खुद जड़ी-बुटियां की खोज के लिए पठारीय पहाड़ी क्षेत्र में जाते हैं। उन्होंने कहा कि तिब्बती जड़ी-बुटियों को अलग करना एक प्रकार का तकनीकी कार्य है। जड़ी-बुटियों की खुदाई के लिए डॉक्टरों के पास बहुत अनुभव होना चाहिए। इसके साथ ही जड़ी-बुटियों के उगने के समय से संबंधित ज्ञान भी अच्छी तरह से मालूम होना चाहिए, अन्यथा कुछ दिनों की देरी के बाद एक ही साल में कई प्रकार की जड़ी-बुटियां नहीं मिल पाती। इसकी चर्चा में तिब्बती चिकित्सा के डॉक्टर तान चङच्या ने कहा:"एक-एक जड़ी-बुटी की भिन्न-भिन्न ऋतु में अलग-अलग चिकित्सीय विशेषताएं होती हैं। अगर हमारे पास जड़ी-बुटियों के उगने के समय से संबंधित जानकारी नहीं होती है और ऋतु के अनुसार जड़ी-बुटी की खुदाई नहीं की जाती है, तो हमें अच्छी गुणवत्ता वाली औषधियां नहीं मिल सकतीं। दूसरा कारण है कि तिब्बती जड़ी-बुटियों की कारगरता का सबसे ज्यादा समय 2 साल है। 2 सालों के बाद औषधियों की कारगरता बहुत कम रहती है।"
पहाड़ी क्षेत्र में जड़ी-बुटियों की खुदाई करना 20-30 लोग भी कम है। आमतौर पर एक ही दिन में करीब 5-6 किलो जड़ी-बुटियां प्राप्त की जाती हैं। इससे तिब्बती जड़ी-बुटियों का मूल्य जाहिर हुआ। तिब्बती चिकित्सा के डॉक्टर तान चङच्या हर साल युवा डॉक्टरों को पहाड़ी क्षेत्र ले जाकर अध्ययन करवाते हैं और उनका नेतृत्व कर तिब्बती जड़ी-बुटियों की खुदाई करते हैं। उनके विचार में यदि एक तिब्बती चिकित्सा के डॉक्टर के रुप में अगर तिब्बती औषधियां बनाने का सबसे बुनियादी तकनीक हासिल नहीं करता, तो भविष्य में तिब्बती जाति का यह परम्परागत तकनीक खो जाता। इसके साथ ही तिब्बती चिकित्सा के डॉक्टरों को औषधियां पहचाने की क्षमता भी बड़ी हद तक कम हो जाती।
खुदाई करने के बाद तिब्बती जड़ी-बुटियों को सूखाने, प्रोसेसिंग करने और जांच करके भंडार किए जाने की कड़ी होती है। इसके बाद संबंधित नूस्खे के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की दवाइयां बनाई जाती हैं, और अंत में रोगियों के इलाज में प्रयोग किया जाता है। इधर के सालों में कानसू प्रांत के तिब्बती चिकित्सा अस्पताल श्रेष्ठ अनुभवों का सारांश करते हुए परम्परागत तिब्बती चिकित्सीय उपचार तरीके को आधुनिक तकनीक के साथ जोड़ते हैं, जिससे तिब्बती चिकित्सा के विकास में नई जीवन शक्ति का संचार होता है। तिब्बती चिकित्सा के डॉक्टरों ने आधुनिक चिकित्सीय उपकरणों के सहयोग में परम्परागत तिब्बती चिकित्सीय स्नान का फायदा उठाकर गठिया के इलाज में उल्लेखनीय कामयाबियां हासिल कीं।
थ्यानचू कांउटी के तिब्बती चिकित्सा अस्पताल के जिम्मेदार व्यक्ति य्वी फ़ूली
कानसू प्रांत की थ्यानचू तिब्बत स्वायत्त कांउटी के तिब्बती चिकित्सा अस्पताल के जिम्मेदार व्यक्ति य्वी फ़ूली ने जानकारी देत हुए कहा:"तिब्बती औषधियों के स्नान से गठिया के इलाज में बहुत असरदार होता है। देश भर के 20 से अधिक प्रांतों और शहरों के रोगी विशेष तौर पर हमारे यहां इलाज के लिए आते हैं। यह हमारे अस्पताल की एक ख़ास विशेषता है।"
य्वी फ़ूली ने कहा कि दीर्घकालीन बीमारियों के इलाज में तिब्बती चिकित्सा की विशेष कारगरता होती है। तिब्बती औषधियों के स्नान से गठिया के इलाज को लेकर उन्होंने परिचय देते हुए कहा:"हमारे अस्पताल में स्नान के लिए प्रयोग किए जाने वाली औषधियां समुद्र तल से 3 हज़ार मीटर स्थित बर्फिले पहाड़ से खुदाई करके जड़ी-बुटियों से बनाई गई है। इन औषधियों को पानी और औषधि के अनुपात के अनुसार तालाब में डाला जाता है। रोगी इस तालाब में 10 से 20 मिनट तक स्नान करते हैं। इसके बाद वह बाहर आकर भांप वाले पलंग पर 10-15 मिनट का और इलाज किया जाता है। गठिय से पीड़ित रोगी स्नान करके भांप वाले पलंग पर सोते हुए पसीने से तर हो जाता है। साथ ही साथ वह हमारे अस्पताल द्वारा बनाई गई दवाइयां खाते हैं। इस प्रकार का इलाज गठिया से ग्रस्त रोगियों के लिए बहुत उपयोगी है।"
आधुनिक तिब्बती चिकित्सा के डॉक्टरों की कड़ी मेहनत और कोशिशों से परम्परागत तिब्बती चिकित्सा और औषधियों का वर्तमान समय में महत्वपूर्ण भूमिका अदा हो रहा है। तिब्बती चिकित्सीय इलाज से कई रोगियों को बीमारियों से छुटकारा मिला है। लेकिन इन्टरव्यू के दौरान तिब्बती चिकित्सा डॉक्टरों के साथ हुई बातचीत में उन्होंने यह अपील भी की कि तिब्बती जड़ी-बुटियों के स्रोतों का संरक्षण किया जाए। कानसू प्रांत के कान्नान तिब्बती प्रिफैक्चर की लुछ्वु कांउटी के कांउटी स्तरीय अस्पताल के तिब्बती चिकित्सा के डॉक्टर तान चङच्या ने कहा:"हमें कभी-कभार इस प्रकार के सवालों का सामना करना पड़ता है कि अस्पताल में औषधियों की सप्लाई पूरी तरह नहीं हो सकती। इसका प्रमुख कारण यह है कि तिब्बती औषधि प्राकृतिक जड़ी-बुटियों से बनाई जाती है और मुख्य तौर पर इन जड़ी-बुटियों के जड़ों का प्रयोग किया जाता है। ज्यादा से ज्यादा मांग के चलते प्राकृतिक जड़ी-बुटियों के जड़ों की खुदाई साल दर साल अधिक हो रही है, इसके फलस्वरुप जड़ी-बुटियों की जड़े कम हो रही है। हमारे तिब्बती क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि देश के भीतरी इलाकों के दूसरी जगहों के अस्पतालों में भी तिब्बती जड़ी-बुटियों की भी मांग अधिक है। सवाल है कि प्राकृतिक तिब्बती जड़ी-बुटियों के संरक्षण में भारी अभाव होता है।"
यह बात सच है कि तिब्बती औषधियों के संरक्षण पर जोर दिया जाना चाहिए। तिब्बती संस्कृति के एक मूल्यवान भाग के रुप में तिब्बती चिकित्सा और औषधियों को विरासत में लेते हुए उसका विकास करना चाहिए, ताकि अधिक से अधिक रोगियों को लाभ मिल सके। इस उद्देश्य के लिए तिब्बती चिकित्सा के चिकित्सक अथक प्रयास कर रहे हैं।