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तिब्बत के सीमावर्ती क्षेत्र में चीन-नेपाल सीमा पर्यटन का विकास
2014-01-13 09:37:30

चीन और नेपाल के बीच पर्यटकों की आवाजाही लगभग 1800 साल पहले शुरू हुई थी। 21वीं शताब्दी में यातायात की सुविधा होने के साथ साथ अब चीन-नेपाल के बीच सीमा पर्यटन का तेजी से विकास हो रहा है।

चीन और नेपाल के बीच सीमा पर्यटन का इतिहास बहुत पुराना है। ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार जीन राजवंश (सन् 265 से 420 तक) में महाचार्य फ़ाश्यान और थांग राजवंश (सन् 618 से 907 तक) के महाचार्य ह्वानत्सांग क्रमशः ने बुद्ध शाक्यामुनी के जन्मस्थान लुम्बिनी का दौरा किया था, लुम्बिनी तो आज में नेपाल ही है। ऐसा कहा जा सकता है कि दोनों महाचार्यों की लुम्बिनी यात्रा चीन और नेपाल के इतिहास में सबसे पहली धार्मिक पर्यटन यात्रा है।

चीन और नेपाल के बीच सीमा रेखा की लम्बाई 1414 किलोमीटर है, जहां 5 पोर्ट स्थित हैं, जिनमें चांगमू पोर्ट की यातायात स्थिति सबसे अच्छी है। इस तरह चांगमू पोर्ट बेशुमार पर्यटकों का ट्रांसफर स्टेशन बन जाता है। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2013 के पिछले 8 महीनों में चांगमू पोर्ट से आने-जाने वाले पर्यटकों की संख्या 23,632 रही, जो गत वर्ष इसी अवधि से अधिक है।

चांगमू पोर्ट तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के शिकाज़े प्रिफेक्चर की न्येलामू कांउटी में स्थित है, जो तिब्बत में सबसे बड़ा राष्ट्र स्तरीय थल-व्यापार बंदरगाह है। इस पोर्ट के उत्तर में बर्फीले पवित्र स्थल तिब्बत में हैं, जबकि दक्षिण में बुद्ध की जन्मस्थली नेपाल है। यहां रहने वाले लोग चीनी हान भाषा, तिब्बती भाषा, अंग्रेज़ी और नेपाली भाषा के माध्यम से अपने बनाए उत्पाद बेचते हैं। शाम को सूर्यास्त के बाद चांगमू कस्बा बिजली की लाईट जलने से जगमगा उठता है।

54 वर्षीय व्यापारी तानचङ तुनचू तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के शिकाज़े प्रिफेक्चर के निवासी हैं। दस वर्ष पूर्व वह चांगमू कस्बे मेंआए थे और छोटा सा होटल खोलकर व्यापार करने लगे। वह अपने होटल के पहले मंजिल के हॉल में निर्यातित घड़ी, इत्र, नक्काशीदार लकड़ी जैसी नेपाली वस्तुएं बेचते हैं। उन्होंने कहा कि चांगमू कस्बे में आने वाले पर्यटकों की संख्या अधिक है। इस तरह उनके होटल में रहने वाले व्यक्ति भी अधिक हैं। होटल में बेची जा रही पर्यटन समृति वस्तुएं पर्यटकों को बहुत पसंद हैं और हर वर्ष की सालाना आय कम से कम 5 से 6 लाख युआन होती है।

चांगमू पोर्ट ने चीनी पर्यटकों की नेपाल यात्रा वाला हरा मार्ग खुल गया है। वर्ष 2002 के जून में चीनी नागरिकों के लिए नेपाल में पर्यटन सेवा शुरू हुई। नेपाल चीनी लोगों के लिए 16वां पर्यटन गंतव्य देश बन चुका है।

चांगमू कस्बे में आकर चीन-नेपाल मैत्री पुल पार कर नेपाल में प्रवेश किया जा सकता है। करीब 30 किलोमीटर की दूरी के बाद नेपाल के सीमावर्ती कस्बे बह्रबिस(Bahrabis) तक पहुच जाता है, यहां से और 170 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद काठमांडू पहुंच सकता है। नेपाली लोग हिन्दू धर्म को मानते हैं। देश में हिन्दू धर्म के मंदिरों और बुद्ध पगोडा की संख्या सबसे अधिक है। धार्मिक संस्कृति और पवित्र स्थल बेशुमार चीनी पार्यटकों को आकृष्ट करते हैं।

सूत्रों के अनुसार हाल के वर्षों में चीन और नेपाल के बीच राजमार्ग के निर्माण और हवाई सेवा शुरू होने के कारण ल्हासा से चांगमू होकर काठमांडू तक जाने वाले चीनी पर्यटकों के बीच यह क्षेत्र लोकप्रिय हो रहा है।

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के शिकाज़े प्रिफेक्चर की यात्रा कर रहे नेपाली व्यापारी कलाम ने हमारे संवाददाता से कहा कि हर वर्ष नवम्बर से अगले वर्ष मार्च तक नेपाल का सुनहरा पर्यटन मौसम रहता है, जबकि तिब्बत इसका विपरीत होता है। इस तरह दोनों क्षेत्रों में पर्यटन की आपूर्ति होती है। पर्यटन मौसम में नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र में चीनी यात्रियों को जगह जगह पर देखा जा सकता है। वे सुन्दर प्राकृतिक दृश्य का मज़ा लेते हुए शॉपिंग करने में भी व्यस्त रहते हैं। नेपाली व्यापारी कलाम ने कहा कि चीन और नेपाल के बीच सीमा पर्यटन के विकास से दोनों देशों को एक दूसरे से लाभ मिल सकता है। यह द्विपक्षीय समान विकास का पुल भी माना जाता है। चीन-नेपाल सीमावर्ती व्यापार और अर्थतंत्र की लगातार वृद्धि के चलते दोनों देशों की जनता के बीच मैत्री और प्रगाढ़ होगी।

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