Web  hindi.cri.cn
चीन में सबसे लम्बे थांगखा चित्र की कहानी
2013-12-12 19:30:02

कुछ समय पूर्व दक्षिण-पश्चिमी चीन के युन्नान प्रांत की राजधानी खुनमिंग शहर में "चीनी खुनमिंग अंतरराष्ट्रीय जातीय लोक कलात्मक वस्तुओं का मेला"आयोजित हुआ था। इसी दौरान विश्व में आज तक सबसे लम्बे हाथ से बनाया गया थांगखा चित्र पहली बार दर्शकों के सामने आया, जिसपर बहुत ज्यादा दर्शकों और मीडिया संस्थाओं का ध्यान केंद्रित हुआ है। इस"विशाल दृश्यों का लम्बे चित्र"नाम के थांगखा चित्र की लम्बाई 660 मीटर से अधिक है और ऊंचाई 3 मीटर, जिसमें इतिहास, मानव, बुद्ध की मूर्तियां, पहाड़ और नदियां जैसे विषय शामिल हैं। दर्शकों को इसकी सुन्दरता की प्रशंसा करते हुए थांगखा की लम्बाई पर भी आश्चर्य होता है। वास्तव में यह थांगखा चित्र को पूरा नहीं बनाया गया है, वह अर्द्ध निर्मित थांगखा माना जाता है। कहा जाता है कि इस थांगखा को समाप्त करने के बाद उसकी लम्बाई 1100 मीटर पहुंचेगी।

चोंगयोंग छीली इस लम्बे थांगखा चित्र को बनाने वाले प्रमुख शिल्पकार हैं। वे युन्नान प्रांत के दिछिंग तिब्बती प्रिफेक्चर की देछिन कांउटी स्थिति तिब्बती बौद्ध धर्म के तुंग चूलिन मठ के जीवित बुद्ध हैं। लोग उनके सम्मान में उन्हें पाखा छ्युपिन जीवित बुद्ध कहते हैं। चोंगयोंग छीली ने जानकारी देते हुए कहा कि"विशाल दृश्यों वाला लम्बा चित्र"नाम के थांगखा की लम्बाई 660 मीटर और चौड़ाई 3 मीटर है, जो वर्ष 1999 में विश्व गिनीज़ के नाम से मशहूर"चीनी तिब्बती सांस्कृतिक और कलात्मक रंगीन दृश्य चित्र"की तुलना में 42 मीटर लम्बा और 0.5 मीटर चौड़ा है। इस तरह यह थांगखा चित्र आज तक विश्व में सबसे लम्बा थांगखा माना जाता है। चीनी हस्तकला और चित्र कला के शिल्पकारों की रचनाओं की नौवीं प्रदर्शनी में आयोजित"स्वर्ग महल में सौ-फूल कप"प्रतियोगिता में इस थांगखा ने श्रेष्ठ पुरस्कार प्राप्त किया है।

दिछिंग तिब्बती प्रिफेक्चर दक्षिण पश्चिमी चीन के युन्नान प्रांत के उत्तरी भाग में स्थित है। तिब्बती भाषा में दिछिंग का मतलब शुभ और सौभाग्य है। यह युन्नान प्रांत में एक मात्र तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर है, जहां शांग्रीला के नाम से विश्वविख्यात है। करीब 60 वर्षीय चोंगयोंग छीली का दिछिंग तिब्बती प्रिफेक्चर की देछिन कांउटी में पनचीलान कस्बे के निच्येक्वो गांव में जन्म हुआ। सम्मान स्वरूप लोग उन्हें पाखा छ्युपिन जीवित बुद्ध कहते हैं। पाखा, तो पहले पाखा जीवित बुद्ध का जन्मस्थान है, चोंगयोंग छीली पाखा जीवित बुद्ध के अवतार हैं, उन्हें पांचवां पाखा जीवित बुद्ध माना जाता है। छ्युपिन तिब्बती बौद्ध धर्म में बौद्धिक शिष्टाचार की जिम्मेदारी लेने वाला आचार्य होता है।

छिंगहाई तिब्बत पठार पर तिब्बती बहुल क्षेत्रों के बड़े छोटे तिब्बती बौद्ध धर्म के मठों और तिब्बती जाति के निवास मकानों में रंगबिरंगे और सुन्दर थांगखा चित्र बहुत लोकप्रिय हैं। थांगखा तिब्बती भाषा का शब्द है, यह रंगीन रेशमी कपड़े पर बनाया गया धार्मिक चित्र है, जिसका विषय मुख्य तौर पर तिब्बती बौद्ध धर्म की कहानियां, तिब्बती जाति के इतिहास में महान व्यक्ति, मिथकों, कथाओं और महाकाव्यों में पात्र और उनकी कहानियां शामिल है। चीन में तिब्बती बहुल क्षेत्रों में चाहे बड़े या छोटे मंदिर में हों, या हर परिवार के कमरे में क्यों न हों, थांगखा चित्र रखा जाता है। थांगखा चित्रकला का जन्म ईसा की 7वीं शताब्दी में तत्कालीन तिब्बत यानी थूपो के राजा सोंगचान कानबू के काल में हुआ था, आज तक इसका एक हज़ार से अधिक वर्ष का इतिहास है। तिब्बती जाति घुमंतू जीवन बिताती है और तिब्बती लोग आम तौर पर घास के मैदान में रहते हैं, उनके हृदय में थांगखा चित्र मंदिर के बराबर है। चाहे शिविर में हो, या पेड़ की शाखा पर ही क्यों न हो, थांगखा को लगाए जाने के बाद तिब्बती लोग पूजा कर सकते हैं। उनके विचार में थांगखा चित्र एक शुद्ध बौद्धिक चिह्न है।

तिब्बती जाति की विशेषता, तिब्बती बौद्ध धर्म का रहस्य और अद्वितीय कलात्मक शैली से लम्बे समय में थांगखा चित्र को तिब्बती जाति के मूल्यवान खजाना माना जाता है। इसके साथ ही थांगखा चीनी गैर भौतिक सांस्कृतिक अवशेषों का एक अंग भी बन गया है।

थांगखा चित्र की सबसे बड़ी विशेषता इसके मूल्यवान रंगद्रव्य और इसे बनाने वाली विशेष तकनीक को जाती है। थांगखा चित्र बनाने के सभी रंगद्रव्य प्राकृतिक खनिज सामग्री हैं। स्वर्ण रेखा और स्वर्ण पाउडर सब शुद्ध सोने से बने हुए हैं, जो कभी नहीं मुरझाते हैं। इतिहास में थांगखा चित्र बनाने वाले लोग आम तौर पर तिब्बती बौद्ध धर्म के भिक्षु और जीवित बुद्ध थे। थांगखा बनाने की तकनीक बहुत जटिल है, इस तरह दिछिंग तिब्बती प्रिफेक्चर में तिब्बत बौद्ध धर्म के विषय वाले थांगखा शिल्पकार कम हैं। इसकी चर्चा करते हुए जीवित बुद्ध चोंगयोंग छीली ने कहा:"हमारे दिछिंग तिब्बती प्रिफेक्चर में भगवान बुद्ध का चित्र बनाने वाले शिल्पकारों की संख्या कम है। ज्यादातर लोगों को पर्वत, नदियां, फूल और घास के मैदान जैसे प्राकृतिक दृश्यों के चित्र बनाना आता है। लेकिन मुझे भगवान बुद्ध का चित्र बनाने में बड़ी रुचि है। वर्ष 1984 में मैंने मठ की मरम्मत के लिए सछ्वान प्रांत के कानची तिब्बती प्रिफेक्चर की ताओकू कांउटी में तिब्बती बौद्ध धर्म के थांगखा शिल्पकारों को बुलाया था। मैंने उनसे दो वर्षों में थांगखा चित्र बनाना सीखा था। उन्होंने हमारे यहां तीन वर्षों तक चित्र बनाया। मुझे लगता है कि थांगखा बनाने के दौरान बुद्ध की मूर्तियों का मापदंड, स्केल और रंग जैसी तकनीक सीखना सबसे मुश्किल है।"

कहा जाता है कि थांगखा चित्र बनाने के लिए चित्रकारों का मन बहुत शांत होना चाहिए, उनमें पूजा करने की भावना के साथ इसे बनाने की लगन होना चाहिए। प्रतिभाशाली व्यक्ति पांच वर्ष तक सीखने के बाद स्वयं थांगखा चित्र बना सकते हैं, जबकि साधारण स्थिति में शिष्यों को सात या आठ वर्षों का समय चाहिए, यहां तक कि कई लोगों को इसे सीखने में दस वर्ष का समय भी लग जाता है। जीवित बुद्ध चोंगयोंग छीली ने जानकारी देते हुए कहा कि थांगखा बनाने के दौरान हर एक थांगखा के विषय, रंग और आकार को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया जाता है। विशेष कर बुद्ध मूर्तियों के मापदंड में कोई गलती नहीं हो सकती। इसकी चर्चा करते हुए जीवित बुद्ध चोंगयोंग छीली ने कहा:"थांगखा की सबसे बड़ी विशेषता है कि उसका प्रमुख विषय बुद्ध मूर्ति है। उदाहरण के लिये बोद्धिसत्व अवलोकितेश्वर प्रमुख वाले थांगखा में अवलोकितेश्वर के अलावा बर्फीले पहाड़, आसमान, जमीन जैसे दृश्य आप अपनी इच्छा और कल्पना के अनुसार चित्रित कर सकते हैं।"

थांगखा चित्र बनाने के दौरान रंग का समन्वय अत्यंत आवश्यक है। आम तौर पर सफेद, पीला, लाल, नीला, हरा, बैंगनी, काला और सियान नीला समेत 8 प्रमुख रंग हैं। इन आठ प्रमुख रंगों से एक दूसरे को मिश्रित करके अन्य 100 से अधिक तरह के रंग बनाये जा सकते हैं। प्राकृतिक खनिज सामग्रियों और वनस्पतियों से बनाए गए रंगद्रव्य बहुत ताजा़ और उत्कृष्ट होते है। कुछ रंग बनाने का फ़ॉर्मूला गोपनीय है। चोंगयोंग छीली ने कहा कि एक जीवित बुद्ध के रूप में श्रेष्ठ शिल्पकारों से सीखकर थांगखा बनाने की तकनीक प्राप्त करना उनका उत्तरदायित्व है। उन्होंने कहा:"तिब्बती बहुल क्षेत्रों में एक ऐसी आदत है, एक जीवित बुद्ध के नाते उसे सब कुछ सीखना चाहिए। वह ज्ञान प्राप्त करने के बाद दूसरे लोगों को पढ़ा सकता है। अगर जीवित बुद्ध श्रद्धालुओं को ज्ञान पढ़ाते, तो सब लोग उनका बहुत सम्मान करते हुए सीखते हैं। पढ़ाई के दौरान जीवित बुद्ध ने जो कहा, श्रद्धालु उनके कथन के अनुसार करते हैं।"

चोंगयोंग छीली ने कहा कि थांगखा बनाने के लिए निपुण तकनीक होने के साथ-साथ लोगों को धर्म-निपुण होकर इसे सीखना चाहिए। थांगखा बनाने की जटिलतापूर्ण प्रक्रिया में जो गलती पेंसिल द्वारा चित्रिक की गई है, उसे ठीक किया जा सकता है। लेकिन अगर चित्र में रंग भरना शुरु किया जाता, तो गलती को ठीक करने का मौका नहीं मिलता। क्योंकि बार-बार का संशोधन भगवान बुद्ध का अनादर है। इस तरह थांगखा बनाने के दौरान शिल्पकार कभी-कभी मन में बौद्धिक सूत्र पढ़ते हैं। इसकी चर्चा करते हुए थांगखा चित्र शिल्पकार जीवित बुद्ध चोंगयोंग छीली ने कहा:"थांगखा चित्र को रंग करने के वक्त किसी भी तरह की गलती नहीं कर सकता। क्योंकि थांगखा तेल चित्र और आबरंग चित्र से अलग है, जिसका रंग सावधानी से चुन कर धीरे-धीरे बार-बार रंगा लगाया जाता है।"

तिब्बती बौद्ध धर्म के एक जीवित बुद्ध के नाते लम्बे समय में चोंगयोंग छीली बौद्ध धर्म के प्रसार प्रचार में संलग्न हैं। इन वर्षों में वे खुद पढ़ाई करते रहते हैं। उन्हें पक्का विश्वास है कि लगातार पढ़ाई से वे अपनी श्रेष्ठता दिखाकर अपना मूल्य साकार कर सकेंगे। वर्ष 2002 में चोंगयोंग छीली ने दिछिंग तिब्बती प्रिफेक्चर के चेथोंग गांव में एक व्यावसायिक और तकनीकी स्कूल की स्थापना की, जिसमें तिब्बती और चीनी दोनों भाषाओं में शिक्षा दी जाती है। वर्तमान में स्कूल में सौ से अधिक विद्यार्थियों में सबसे बड़े विद्यार्थी की उम्र 25 वर्ष है और सबसे छोटे विद्यार्थी की आयु 8 वर्ष है। इस स्कूल में पढ़ने वाले सभी विद्यार्थी गरीब पहाड़ी क्षेत्र से आए बच्चे और अनाथ बच्चे हैं। यहां ये विद्यार्थी तिब्बती, चीनी और अंग्रेजी सीखने के साथ-साथ कंप्यूटर से संबंधित आधारभूत ज्ञान भी प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही विद्यार्थी अपनी इच्छानुसार तिब्बती चिकित्सा और औषधि का आधारभूत ज्ञान, थांगखा चित्र बनाने, नक्काशी और तिब्बती जातीय परम्परागत हस्त कलात्मक वस्तु बनाने जैसे तकनीक सीखने का विकल्प भी कर सकते हैं। अपने स्कूल की चर्चा करते हुए जीवित बुद्ध चोंगयोंग छीली ने कहा:"अब हमारे स्कूल से एक क्लास के 27 विद्यार्थी स्नातक हो चुके हैं। उनमें 11 व्यक्तियों ने थांगखा चित्र बनाना सीखा है, 2 ने नक्काशी सीखी और 3 लोगों ने कंप्यूटर ज्ञान सीखा। इनके अलावा उनमें से 6 लड़के और 1 लड़की दक्षिण पूर्वी चीन के चच्यांग प्रांत की राजधानी हांगचो में बाल काटने की कला सीखने गए हैं।"

जीवित बुद्ध चोंगयोंग छीली ने आशा जताते हुए कहा कि विद्यार्थी पढ़ाई से जीवन के लिए एक तकनीक प्राप्त कर सकेंगे और साथ ही तिब्बती संस्कृति की विरासत में और विकास कर सकेंगे। चोंगयोंग छीली ने कहा कि वर्तमान में अपने जन्मस्थान में तिब्बती जातीय परम्परागत चित्रकला तकनीक जानने वालों की संख्या लगातार कम हो रही है। इसके साथ ही उनके द्वारा स्थापित व्यावसायिक और तकनीकी स्कूल के पास धन का भी अभाव है। तो 2006 के शुरू में उन्होंने हमारे कार्यक्रम के शुरु में उल्लेख किया गया लम्बा थांगखा बनाने का विचार किया। इसी की चर्चा में चोंगयोंग छीली ने कहा:"पहले मैंने इतना लम्बा और विशाल थांगखा बनाने का कभी नहीं सोचा। लेकिन इस थांगखा चित्र से हमारे स्कूल को मदद मिलेगी। साथ ही मेरे स्कूल के विद्यार्थी भविष्य में इसके उत्तराधिकारी होंगे और वे तिब्बती संस्कृति की विरासत का विकास करेंगे।"

पता चला है कि जीवित बुद्ध चोंगयोंग छीली द्वारा बनाए गए इस लम्बे और विशाल थांगखा के विषय में ब्रह्मांड की शुरुआत, मानव जाति का स्रोत, भगवान बुद्ध की कहानी, धर्म और रीति रिवाज़ समेत छह भाग शामिल हैं। इनमें तिब्बती जाति के इतिहास से संबंधित चीनी हान जाति, पाई जाति और नाशी जाति के साथ भारत और नेपाल जैसे देशों के आंशिक इतिहास भी शामिल किये गये हैं। इसे तिब्बती जाति का ज्ञान कोष भी माना जाता है।

जीवित बुद्ध चोंगयोंग छीली के अनुसार उन्होंने सौ से अधिक थांगखा शिल्पकारों का निमंत्रण कर 3 वर्षों में इस विशाल और लम्बे थांगखा चित्र को बनाया। जिसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि इसे बनाने के दौरान प्राकृतिक खनिज सामग्रियों के प्रयोग के साथ बड़ी मात्रा में मोतियों, सुलेमानी पत्थरों, सोना, रजत और आभूषणों का भी इस्तेमाल किया गया है, इसके अलावा थांगखा में भगवान बुद्ध शाक्यमुनी के शिष्यों का 7 शरीरांक भी रखा गया है। इस तरह यह थांगखा तिब्बती बौद्ध धर्म के श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत मूल्यवान है।

जीवित बुद्ध चोंगयोंग छीली ने कहा कि इस"विशाल दृश्यों के लम्बे चित्र"नाम के थांगखा में बहुत मूल्यवान सामग्रियों के प्रयोग से थांगखा बनाने में भी भारी खर्च आया है। पूंजी अभाव के कारण अब तक इस थांगखा चित्र का आधा भाग ही खत्म किया जा सका है। उन्होंने कहा कि भविष्य में अगर स्थिति अनुकूल होगी, तो वे शेष भाग खत्म करने का प्रयास करेंगे, ताकि तिब्बती संस्कृति की विरासत के रूप में अधिक विकास हो सके।

संदर्भ आलेख
आप की राय लिखें
सूचनापट्ट
• वेबसाइट का नया संस्करण आएगा
• ऑनलाइन खेल :रेलगाड़ी से ल्हासा तक यात्रा
• दस सर्वश्रेष्ठ श्रोता क्लबों का चयन
विस्तृत>>
श्रोता क्लब
• विशेष पुरस्कार विजेता की चीन यात्रा (दूसरा भाग)
विस्तृत>>
मत सर्वेक्षण
निम्न लिखित भारतीय नृत्यों में से आप को कौन कौन सा पसंद है?
कत्थक
मणिपुरी
भरत नाट्यम
ओड़िसी
लोक नृत्य
बॉलिवूड डांस


  
Stop Play
© China Radio International.CRI. All Rights Reserved.
16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040