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आसमान की सजावट--लांगकाचे टांगा-चित्र
2013-09-22 16:57:48

दक्षिण पश्चिमी चीन के स्छवान प्रांत के कान त्सी तिब्बती स्वायत्त जिले में स्थित लू ह्वो काउंटी को वर्ष 2008 में चीनी संस्कृति मंत्रालय द्वारा चीनी लोक संस्कृति एवं कला के घर की संज्ञा दी गई। इसका श्रेय इस काऊंटी की 400 वर्षों से भी अधिक पुरानी लांगकाचे शैली वाली टांगा-कला को जाता है।

तिब्बती भाषा में लांगकाचे का मतलब आसमान की सजावट है। लांगकाचे, तिब्बती टांगा-कला की एक विशिष्ट शैली है, जो 400 सालों से अधिक समय पहले लू ह्वो काउंटी में लांगकाचे नामक एक टांगा चित्रकार द्वारा स्थापित की गई थी। यह काउंटी टांगा-कला के घर के नाम से भी जानी जाती है और कई पीढ़ियों के लांगकाचे शैली वाले टांगा-चित्र बनाने वालों को भी आसमान को सुसजित करने वाले चित्रकार के रूप में माना गया है।

लांगकाचे,टांगा-चित्रकला की अन्य शैलियों से अलग है। वह चित्र बनाने में जो पद्धति अपनाती है, वह पश्चिमी ललित-कला से मिलती-जुलती है। मतलब वह किसी टांगा-चित्र के डिजाइन में नजदीकी दृष्टि से ठोस और बड़े, पर दूर दृष्टि से काल्पनिक और छोटे जैसे तत्वों पर विशेष जोर देती है। चित्रकार युंगचूलोवू को लांगकाचे शैली वाले टांगा चित्र बनाने का काम करते हुए दसेक वर्ष हो चुके हैं। उन्होंने कहाः

`हमारे बनाए टांगा चित्र अन्य शैलियों वाले टांगा चित्र जैसे नहीं हैं, जो देखने में ऐसा लगता है कि बनाने वाले सब कुछ उसमें डालना चाहते हैं। हमारे बनाए चित्र बहुआयामी और पारदर्शी दिखते हैं। जबकि दूसरी शैलियों के टांगा चित्र गुजाइश की निगाह से थोडे तंग प्रतीत होते हैं। `

लांगकाचे शैली के टांगा चित्र की विशेषता कलात्मक सूक्षमता मानी जाती है। उदाहरणार्थ चित्र के केंद्र में एक देवता के पीछे मयूर के पंखों से बना एक छोटा पंखा ध्यानाकर्षक है, पर खास बात यह है कि हरेक पंख पर एक स्वतंत्र सूक्ष्म दृश्य चित्रित होता है। चित्र में चित्र होने की बात इससे सटीक रूप से साबित है।

लांगकाचे शैली वाली टांगा चित्र-कला को बेहतर संरक्षित एवं विकसित करने के लिए लू ह्वो काउंटी में टांगा चित्रकार संघ कायम किया गया है। युंगचूलोवू इसके प्रमुख चुने गए हैं। उन्होंने कहाः

`इस संघ की स्थापना से हमें अपनी-अपनी कलाकृतियों पर रायों का आदान-प्रदान करने में सुविधा मिली है। यह संघ टांगा चित्र बनाने वालों के लिए एक दूसरे से सीखने का एक मंच भी है।`

60 वर्षीय पाईमात्सरन प्रांतीय स्तर पर अभौतिक सांस्कृतिक विरासतों के एक उत्तराधिकारी है। वो हर रोज अपने छोटे भाई और भतीजे के साथ टांगा चित्रकार संघ के अधीन चित्रशाला में चित्र बनाते है। संघ में अकदमिक आदान-प्रदान के अलावा युवा शिष्यों की भर्ती भी की जाती है। वहां अनुभवी चित्रकार इन शिष्यों को लांगकाचे शैली वाले टांगा चित्र बनाने की हुनर सिखाते हैं। इससे अभौतिक सांस्कृतिक विरासत के रूप में इस चित्र-कला के संरक्षण एवं विकास की अच्छी नींव डाली गई है।

16 वर्षीय तावातंगचाओ इन शिष्यों में से एक है। हमारे संवाददाता को साक्षात्कार देने से पहले वो काग़ज पर किसी टांगा चित्र की अभ्यास के रूप में नकल कर रहा था। उसने कहाः

` मीडिल स्कूल से ही मुझे टांगा चित्र-कला में रूचि पैदा होना शुरू हुआ। इस समय मैं रोजाना मानवाकृतियों के पैरों या कानों जैसे अंग चित्रित करने का अभ्यास करता हूं। दोपहर को कुछ देर के लिए विश्राम करता हूं। `

टांगा चित्रकार संघ के प्रमुख योंगचुलोवू के अनुसार संघ द्वारा संचालित कक्षा 3 वर्षों की है। उसमें शिक्षा लेने के लिए शिष्यों को पैसा देने की जरूरत नहीं है, बल्कि संघ उन्हें निःशुल्क भोजन एवं आवास भी मुहैया कराता है। ऐसे में कक्षा की ओर बहुत से युवा लोग आकर्षित हुए हैं और कई विकलांग लोग भी टांगा चित्र बनाने के कौशल में दक्षता प्राप्त कर अपने बल पर जीवनयापन करने के उद्देश्य से कक्षा में आए हैं। लोवूअररे उनमें से एक है। उन के अनुसार

` परिश्रम के समय असावधानी के कारण मेरे टांग टूट गए। इससे कठोर परिश्रम में मैं करीब पूरी तरह से अक्षम हो गया हूं। मेरे घर में केवल मेरी पत्नी और मेरी मां दो कमजार व्यक्ति हैं, जिनके लिए परिश्रम करना मुश्किल है। वर्तमान समय में नौकरी पाना बहुत कठीन है, मेरे जैसे विकलांगों के लिए तो दूर। इसलिए मैं टांगा चित्र-कला सीखने इस कक्षा में आया हूं। मैं चाहता हूं कि भविष्य में टांगा चित्र बनाने के जरिए पैसा कमाऊ। `

अनुभवी चित्रकारों के निर्देशन में शिष्य तीन साल की कक्षा लेने के बाद आम तौर पर टांगा चित्र बनाने की हुनर पर महारत हासिल कर सकते हैं और चित्र बनाने से पैसा कमा सकते हैं, यहां तक कि संघ के साथ अनुबंध कर उसके चित्रकार बन सकते हैं। उल्लेखनीय है कि यह अनुबंध कागजी नहीं, भौखिक है। वह वास्तव में एक भौखिक वायदा है। युंगचूलोवू ने कहाः

` तिब्बती लोग अपने वायदों का पालन करने में बेहद मजबूत हैं। मिसाल के तौर पर एक बार मैंने एक युवा को दो साल की शिक्षा लेने की सलाह दी, लेकिन उसने कहा कि उसके पास कक्षा में रहने का केवल दो साल का समय होगा। मैं ने आगे कहा कि सिखाने वाली विषयवस्तुएं ज्यादा हैं और उन्हें पूरी तरह ग्रहण करने में कम से कम दो साल का समय लगेगा। यह सुनकर वह युवा बिना कुछ कहे कक्षा में दाखिल हुआ। इस तरह बिना काजगी अनुबंध के तिब्बतियों में बहुत से काम चलते हैं। तिब्बती लोग जो कहते हैं, उन का पालन करते हैं। `

संघ के अब तक 200 से अधिक टांगा चित्रकार हो गए हैं। वे चित्र बनाने की अपनी हुनर को निखारने के साथ-साथ जीर्ण-शीर्ण परंपरा को तोड़कर टांगा चित्रकला में भी नई जान फूंकी है। संघ के प्रमुख योंगचुलोवू ने पहले लांगकाचे शैली वाली टांगा चित्रकला सीखी थी, फिर पेशेवर ललितकला प्रतिष्ठान में आगे अध्ययन किया। उन्होने कहाः

` चाहे परंपरागत चीनी चित्र हो, या पश्चिमी तेल-चित्र या फिर दूसरी शैली के टांगा चित्र क्यो न हो, उन सभी की विशेषताएं हमारे लांगकोचे शैली वाले टांगा-चित्रों में देखने को मिलती हैं। हम चित्र बनाने के विभिन्न तरीकों का प्रयोग करते हैं, ताकि उत्कृष्ट कृतियां बनाई जा सके। `

गौरतलब है कि इस संघ के चित्रकारों के बनाए टांगा चित्र विदेशों में भी लोकप्रिय हो गए हैं। ब्रिटेन, जापान और अमेरिका आदि देशों से अक्सर टांगा चित्र खरीदने के ऑर्डर आते हैं। संग्रह के लिए एक क्वालिटी वाले टांगा चित्र का बेहद ऊंचा मूल्य है। लेकिन अब यह समस्या सामने आई है कि कैसे टांगा चित्रों का व्यापार कायदे से किया जाए और टांगा के ब्रैंड को अच्छी तरह संरक्षित किया जाए। लू ह्वो काउंटी के टांगा चित्रकार संघ के प्रदर्नशी- कक्ष में हमारे संवाददाता ने देखा कि प्रदर्शित हो रहे सभी टांगा चित्रों के नीचे दो आयामी कोड छपे हैं। संघ के प्रमुख योंगचुलोवू ने बतायाः

`एक बार मैंने छंगतू शहर की सड़क पर घूमने के समय दो आयामी कोड वाले चित्र सा देखा और अपने एक मित्र से पूछा कि यह क्या चीज है? उन्होंने जवाब दियाः दो आयामी कोड। फिर पूछाः दो आयामी कोड़ क्या चीज है? उन्होंने कहा कि वह सीम जैसी चीज है, जिसके जरिए आप कुछ सूचनाएं प्राप्त कर सकते हैं। ` वाह, यह मेरे लिए बहुत उपयोगी है। इसके बाद मैं ने उसका प्रयोग करना सीखना शुरू किया। अब मैं अपनी रचनाओं के प्रचार-प्रसार, संघ के परिचय और दूसरे टांगा चित्रकारों से संपर्क में भी दो आयामी कोड का प्रयोग करता हूं। इस कोड से स्कैन करने पर मुझे यह भी पता चल सकता है कि कौन सा चित्र मेरा है और कौन सा मेरा नहीं है। इस कोड की मदद से मैं अपने बौद्धिक संपदाधिकार की अच्छी रक्षा करता हूं।

बेशक डिजिटल युग में उभरा दो आयामी कोड एक अत्याधुनिक चिंह है, जिसका लांगकाचे शैली वाली टांगा चित्रकला में प्रयोग लोगों को यह दिखाता है कि तिब्बती संस्कृति एवं कला की विशेषताओं के एक मुख्य प्रतिनिधि के रूप से टांगा चित्रकला अपनी श्रेष्ठ परंपराओं को बनाए रखने के साथ-साथ आधुनिक तकनीक से भी अपने को अधिक परिष्कृत बनाने की कोशिश कर रही है।

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