पिछले कुछ वर्षों में विशेष संग्रह-कलाकृति के रूप में थांगखा चित्र छिंगहाई-तिब्बत पठार उतरकर विश्व भर में फैल गया, जिसके बाद ये वैश्वक कलाकृतियों के बाज़ार में उतरकर सभी के दिलों में बस गया है। 14 जुलाई को पेईचिंग स्थित तिब्बती भवन में"चीन स्वप्न, थांगखा स्वप्न"शीर्षक थांगखा चित्र प्रदर्शनी आयोजित हुई, जिसमें प्रदर्शित थांगखा चित्रों का देशी विदेशी थांगखा-प्रेमियों ने स्वागत किया।
थांगखा तिब्बती भाषा का शब्द है, यह रंगीन रेशमी कपड़े पर चित्रित धार्मिक चित्र है, जिसका विषय मुख्य तौर पर तिब्बती बौद्ध धर्म की कहानियां, तिब्बती जाति के इतिहास में महान व्यक्ति, मिथकों, कथाओं और महाकाव्यों में पात्र और उनकी कहानी शामिल है। चीन में तिब्बती बहुल क्षेत्रों में चाहे बड़े या छोटे मंदिर में हो, या हर परिवार के बुद्ध कमरे में क्यों न हो, थांगखा चित्र रखा जाता है। थांगखा चित्रकला का जन्म ईस्वी 7वीं शताब्दी में तत्कालीन तिब्बत यानी थूपो के राजा सोंगचान कानबू काल में हुआ था, आज तक इसका एक हज़ार से अधिक वर्ष का इतिहास है। तिब्बती जाति घूमंतू जीवन बिताती है और तिब्बती लोग आम तौर पर घास के मैदान में रहते हैं, उनके हृदय में थांगखा चित्र मंदिर के बराबर है। चाहे शिविर में हो, या पेड़ की शाखा पर ही क्यों न हो, थांगखा को लगाए जाने के बाद तिब्बती लोग पूजा कर सकते हैं। उनके विचार में थांगखा चित्र एक शुद्ध बौद्धिक चिह्न है।
मौजूदा थांगखा प्रदर्शनी में 70 से अधिक थांगखा चित्र प्रदर्शित किये गए हैं, जिनमें रंगीन थांगखा, लाल थांगखा और काला थांगखा जैसी चित्रकला शामिल हैं। इन थांगखाओं में"भगवान बुद्ध शाक्यमुनी की जीवन कहानी"नामक थांगखा चित्र सबसे आकर्षित है, जिसकी लम्बाई 9 मीटर है और इसे बनाने में 3 साल लगे थे, जिसे मौजूदा प्रदर्शनी में पहली बार दर्शकों के सामने पेश की गई है। प्रदर्शनी में बहुत ज्यादा विदेशी लोग इसके सामने विस्तृत रूप से देखते हैं।
ऑस्ट्रेलिया से आए थांगखा प्रेमी जॉन बर्न्डगेस्ट ने कहा कि उन्हें थांगखा चित्र बहुत पसंद है। मेलबोर्न शहर में उन्होंने इस प्रकार की कलात्मत वस्तु को देखा था। थांगखा चित्र के विषय तिब्बती जाति के इतिहास, राजनीतिक, संस्कृति और जीवन से जुड़े हुए हैं। थांगखा के माध्यम से वे तिब्बती जाति के बारे में ज्यादा जानकारी हासिल कर सकेंगे।
हाल के वर्षों में चीन में कई बार थांगखा चित्र मेला आयोजित हुआ था, जिनमें देशी विदेशी व्यापारियों की सक्रीय भागीदारी भी हुई थी। इसके साथ ही कई चीनी उद्यम देशी विदेशी बाज़ार में थांगखा चित्र के भविष्य पर आश्वस्त हैं। मौजूदा प्रदर्शनी के संयोजक पेइचिंग चोंगखा संस्कृति प्रसार कंपनी के बोर्ड अध्यक्ष रेनचङ च्यानत्सो ने परिचय देते हुए कहा कि मौजूदा थांगखा चित्र प्रदर्शनी आयोजित करने का उद्देश्य तिब्बती जाति की संस्कृति और जातीय भावना का प्रसार करना है। इस मंच के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों को थांगखा के बारे में जानकारी मिल सकेगी। उन्होंने कहा कि वर्तमान में थांगखा को विश्व स्तरीय गैर भौतिक सांस्कृतिक विरासतों की नामसूचि में शामिल किया गया है, थांगखा चित्रकला अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भी प्रसिद्ध है। इसे देखते हुए भविष्य में थांगखा चित्र से जुड़े अंतरराष्ट्रीय बाज़ार का विस्तार किया जाएगा।
हाल के वर्षों में थांगखा कला चीन के तिब्बती बहुल क्षेत्रों में विशेष कलात्मक व्यवसाय बन गया है, जिसपर स्थानीय सरकारों और विभिन्न क्षेत्रों के व्यक्तियों का महत्व प्राप्त हुआ है। थांगखा चित्र का जन्मस्थान छिंगहाई प्रांत का रेकोंग है। वर्ष 2012 में यहां पर बेचे गए थांगखा चित्रों से इस क्षेत्र को एक करोड़ युआन की आमदनी हुई थी, जिससे स्थानीय सौ किसान और चरवाहे परिवारों को लाभ मिला। रेकोंग क्षेत्र से आए छिंगहाई प्रांतीय थांगखा चित्र शिल्पकार च्यान त्सान ने हमारे संवाददाता से कहा कि दादा जी और पिता जी के काल में थांगखा चित्र बनाने की तकनीक पारिवारिक रहस्य था और घरवालों के अलावा दूसरे लोगों को नहीं सिखाया जाता था। लेकिन आज थांगखा बनाने की तकनीक दूसरे व्यक्तियों को भी सीखाई जा सकती है, इससे थांगखा शिल्पकारों की संख्या बिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है।
थांगखा चित्र शिल्पकार च्यान त्सान के अनुसार वर्तमान में उनका 16 वर्षीय बेटा थांगखा चित्र बनाना सीख रहा है। उन्हें आशा है कि बेटा थांगखा कला की तकनीक प्राप्त कर तिब्बती जाति की परम्परागत संस्कृति को विरासत में लेते हुए उसे विकसित करेगा।
सूत्रों के अनुसार, पहले थांगखा चित्र बनाने का तकनीक मुख्य तौर पर लोक कलाकारों द्वारा बच्चों को पढ़ाई जाती थी, लेकिन अब स्थिति बदल रही है। वर्तमान में तिब्बत विश्वविद्याल, उत्तर-पश्चिम जातीय विश्वविद्यालय, छिंगहाई जातीय विश्वविद्यालय में थांगखा कोर्स स्थापित हुआ है। थांगखा बनाने की तकनीक को ज्यादा अच्छी तरह सुरक्षित करने के लिए चार प्रमुख थांगखा जेनरस सिखाने वाले पहला केन्द्र इस वर्ष के जून माह में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा में स्थापित हुई। इसी वर्ष में उत्तर पश्चिमी चीन स्थित कांसू प्रांत में थांगखा कोर्स को लेकर पहली एकीकृत परीक्षा दी गई। लोगों का मानना है कि इन सिलसिलेवार कदमों से थांगखा चित्र के विकास को आगे बढ़ाया जाएगा।
(श्याओ थांग)