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छिंगहाई-तिब्बत रेलवे पर तीन पीढ़ियों वाले"रेलगाड़ी चालक"
2013-06-11 14:56:22

ली योंगवेई वर्ष 1985 के बाद चीनी में जन्म लेने वाले युवा हैं। रेलगाड़ी से संबंधित काम करने पर उनका परिवार गर्व करता है और दूर तक जा रही रेल की पटरी पर बचपन से ही उसका स्वप्न भी पनप रहा है। आज के इस कार्यक्रम में हम आपको सुनाएंगे छिंगहाई-तिब्बत रेलवे पर तीन पीढ़ियों वाले परिवार के सदस्यों की कहानी।

छिंगहाई तिब्बत रेल मार्ग पश्चिमी चीन स्थित छिंगहाई प्रांत और तिब्बत स्वायत्त प्रदेश से होकर गुज़रता है। छिंगहाई प्रांत की राजधानी शी निंग से तिब्बत की राजधानी ल्हासा तक, इस रेलमार्ग की कुल लम्बाई 1956 किलोमीटर है, जिसे विश्व भर में समुद्र तल से सबसे ऊंचा और लम्बा पठारीय रेलमार्ग माना जाता है। इस रेलमार्ग पर यातायात वर्ष 2006 की जुलाई में शुरू हुआ।

विश्वविद्यलय से स्नातक करने के बाद ली योंगवेई छिंगहाई-तिब्बत रेल कंपनी में एक उप-चालक बन गए। वह अपने गुरु के साथ सामंजस्य नाम की विद्युत रेलगाड़ी चलाते हैं। 25 वर्षीय ली योंगवोई ने हमारे संवाददाता से कहा कि परिजनों की वजह से ही रेलवे के प्रति उनका आकर्षण बना हुआ है और उनकी भावनाएं भी रेलवे के साथ जुड़ी हैं।

ली योंगवेई का परिवार रेलवे से जुड़ा रहा है। उनके दादा जी ली रनछाओ छिंगहाई पठार में पहली पीढ़ी वाले रेलगाड़ी चालक थे, जो गत शताब्दी के 70 के दशक में कोयले से चलनेवाली रेलगाड़ी चलाते थे। उस समय वे उत्तर पश्चिमी चीन के कान सू प्रांत की राजधानी लान चो से छिंगहाई तक के लान-छिंग रेल लाइन पर गाड़ी चलाते थे। ली योंगवेई के पिता जी ली वन छिंगहाई-तिब्बत रेललाइन पर मालगाड़ी चालक हैं, जो मुख्य तौर पर छिंगहाई प्रांत के केर्मू शहर से तिब्बत की राजधानी ल्हासा तक जाते हैं।

छिंगहाई प्रांत के केर्मू शहर में ली वन ने पहले रेलवे के वर्किंगरूम में तकनीशियन काम किया फिर बाद में उन्होंने इंजन ड्राइवर का काम शुरु किया।

छिंगहाई-तिब्बत रेललाइन के केर्मू से ल्हासा तक का भाग विश्व की छत और विश्व में सबसे ऊंचे पठारीय स्थल पर से होकर गुज़रती है, जहां पर जमी बर्फ़ीली भूमि की लम्बाई भी अति विशाल है।

रेलगाड़ी चलाते हुए ली वन ने हमारे संवाददाता को बताया जिस रेलगाड़ी को वो चला रहे हैं उसकी औसत गति 100 किलोमीटर प्रति घंटा है। रेलगाड़ी समुद्र तल से विश्व में सबसे ऊंचे स्टेशन तक पहुंचती है और बर्फ़ीली भूमि वाली सुरंग भी गुज़रती है। प्रति घंटे 100 किलोमीटर की रफ्तार से विश्व में बर्फीली भूमि से गुज़रने वाली सबसे तेज़ रेलगाड़ी मानी जाती है। इसकी चर्चा करते हुए रेलगाड़ी चालक ली वन को बहुत गर्व होता है।

रेलवे आज के दौर में सबसे सुविधापूर्ण तरीके से सामान को तिब्बत तक पहुंचाती है, इसके साथ ही वह तिब्बत में उत्पादित विशेष और श्रेष्ठ उत्पादों को भी देश के दूसरे स्थलों तक पहुंचा सकती है।

छिंगहाई-तिब्बत रेलमार्ग बहुत लम्बा है, रास्ते में मौसम बहुत दुष्कर है और यहां पर बर्फबारी होना बहुत ही सामान्य बात है। अगर ऐसा मौसम मिला, तो ली वन और दूसरे साथियों को रेलगाड़ी को रोक कर पहले रेल की पटरी पर जमी बर्फ़ को हटाना पड़ता है। ली वन ने कहा कि अपने पिता जी के काल की तुलना में वर्तमान में रेलगाड़ी ज्यादा उन्नत हो गई है। साथ ही कार्य स्थिति भी सुविधापूर्ण है।

ली वन पुरानी बातों को याद करते हुए कहते हैं कि उनके पिताजी ली रनछाओ का रंग हमेशा काला और सफ़ेद हुआ करता था। युवावस्था में वह अक्सर पिता जी के लिए खाना पहुंचाता था। पिता जी से मिलने के वक्त वह सिर्फ़ उनके काले चहरे और दोनों आंखें ही देख पाता था। क्योंकि रेलगाड़ी चलाते वक्त धुआं उनके पिताजी के चेहरे को बिल्कुल काला कर देता था।

40 साल पूर्व प्रति घंटा 30 किलोमीटर की गति चलनेवाली रेलगाड़ी छिंगहाई पठार पर उस समय की सबसे तेज़ यातायात साधन थी। एक रेलगाड़ी चालक बनना परिवार के लिये गर्व की बात मानी जाती थी। उस समय ली रनछाओ कोयले से चलने वाली रेलगाड़ी चलाता था और कानसू प्रांत की राजधानी लानचो से छिंगहाई प्रांत तक परिवहन का काम संभालता था।

अब ली रनछाओ रिटायर हो गए हैं। उन्होंने रेलगाड़ी चलाने के पुराने दौर को याद करते हुए कहा कि उस ज़माने में रेलवे में काम करना बहुत कठिन था। रेलगाड़ी चलाने के वक्त धुएं और आग के कारण बहुत मुश्किल होती थी। कोयलेवाली रेलगाड़ी चलाने के लिये शारीरिक रूप से और बौद्धिक रूप से हमें शक्तिशाली होना पड़ता था। कोयले से चलनेवाली रेलगाड़ी की प्रेरक शक्ति बड़े आकार वाले स्टोव से आती है। गाड़ी की गति बढ़ाने के लिए स्टोव में लगातार कोयला भरना पड़ता था। एक बार 200 किलोमीटर की यात्रा के दौरान दस से अधिक टन कोयले की आवश्यकता पड़ती थी। रेलगाड़ी के मज़दूरों को एक-एक बेलचे से बड़ी मात्रा में कोयले को स्टोव में डालना पड़ता था।

ली रनछाओ के घर में एक पुराना फ़ोटो सुरक्षित है, जिसमें वह खुद रेलगाड़ी को मज़दूरों के साथ मिलकर खींच रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब यह फोटो बहुत मूल्यवान है और वह चीनी रेलवे के विकास का प्रत्यक्ष साक्षी बन गया है। उन्होंने कहा कि उस समय उनका सपना था कि वो रेलगाड़ी चलाते समय साफ सुथरे रहें साथ ही तेज़ गति से गाड़ी चलाएं, उनके इस सपने को उनके बेटे और पोते ने साकार किया है।

वर्ष 2012 में उनका पोता ली योंगवेई विश्वविद्यालय से स्नातक हुआ। वह एक चिकित्सक बनने के बजाय उप-रेलगाड़ी चालक बन गया। अगर औपचारिक रेलगाड़ी चालक बनकर सच्चे मायने में रेलगाड़ी चलाएगा, तो अगले वर्ष उसे परीक्षा देनी पड़ेगी।

ली योंगवेई चीनी रेलवे विकास पर ध्यान देते हैं। उनके कंप्यूटर में बहुत ज्यादा रेलगाड़ियों के फ़ोटो सुरक्षित हैं। उन्होंने बताया कि एक औपचारिक रेलगाड़ी चालक बनकर छिंगहाई-तिब्बत पठार में रेलगाड़ी चलाना उनका सबसे बड़ा सपना है। उन्हें आशा है कि वो अपना सपना जल्द ही साकार करेंगे।

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