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छिंगहाई प्रांत में डंगर प्राचीन शहर का दौरा
2013-04-23 19:43:44

डंगर प्राचीन शहर का दृश्य

छिंगहाई तिब्बत पठार पर स्थित छिंगहाई प्रांत की ह्वांगयुआन कांउटी में एक मशहूर प्राचीन शहर है। प्राचीन समय में वह चीन के भीतरी क्षेत्र और तिब्बत के बीच व्यापारिक केंद्र रहा है, थांग राजवंश में (वर्ष 618 से 907 तक) भीतरी इलाके और तिब्बत के बीच प्राचीन मार्ग का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा और प्राचीन चाय-घोड़ा मार्ग का केंद्र भी रहा है। यह है डंगर ... एक प्राचीन शहर।

डंगर क्षेत्र उत्तर पश्चिमी चीन में पीली मिट्टी पठार और छिंगहाई तिब्बत पठार के बीच में स्थित है, ये स्थल कृषि और पशुपालन संस्कृति जोड़ने वाला स्थल ही नहीं, थांग राजवंश और तिब्बत के थूपो शासन को जोड़ने वाला थांग-थूपो प्राचीन मार्ग तथा रेश्मी मार्ग के दक्षिण भाग का महत्वपूर्ण केंद्र भी है। लम्बे अर्से में डंगर क्षेत्र में हान, तिब्बत, मंगोल और ह्वेई आदि जातियां मेल मिलाप से रहती आई हैं, जिसका आर्थिक और सैन्य महत्व भी है। बताया जाता है कि डंगर का नाम स्थानीय तिब्बती बौद्ध धर्म के तोंगखेर मठ से आता है, जिसे वर्ष 1648 में तिब्बत से छिंगहाई के ह्वांगयुआन तक स्थानांतरित किया गया था। हमारी गाइड सुश्री ली ने डंगर शहर का परिचय देते हुए कहा:"डंगर तिब्बती भाषा में 'तोंगखेर' शब्द का मंगोलियाई उचारण है, इसका मतलब है सफेद शंख। यहां पीली नदी के उत्तरी भाग, छिंगहाई झील के आसपास और ह्वांगश्वेइ नदी के उद्गम स्थल पर स्थित है, जो प्रांत की राजधानी शीनिंग से 40 किलोमीटर दूर है। यही नहीं, यहां थांग राजवंश और तिब्बत के थूपो शासन के बीच थांग-थूपो प्राचीन मार्ग और रेशमी मार्ग का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा था। यह शहर'छिंगहाई और तिब्बत का कंठ'और'चाय-घोड़े की वाणिज्यिक राजधानी'के नाम से भी मशहूर था।"

डंगर प्राचीन शहर का निर्माण इस्वी 14वीं शताबदी में हुआ था, जो आज से छह सौ से ज्यादा वर्ष पुराना है। वास्तव में दो हज़ार वर्ष पूर्व हान राजवंश के समय से ही इस क्षेत्र चीन में बहुपक्षीय संस्कृतियों के मेलमिलाप वाला महत्वपूर्ण केंद्र बन गया था। 7वीं शताब्दी में थांग राजवंश और तत्कालीन तिब्बत के थूपो शासन ने आज के रिय्वे पवर्त क्षेत्र में छिंगहाई तिब्बत पठार में पहला चाय-घोड़ा बाज़ार खोला और थांग-थूपो प्राचीन मार्ग की स्थापना शुरू हुई। सौकड़ों वर्षों तक डंगर उत्तर पश्चिमी चीन में सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र हुआ करता था। पेइचिंग और थ्येनचिन आदि भीतरी इलाके के बड़े शहरों से आए व्यापारियों और तकनीकी मज़दूरों के अलावा ब्रिटेन, अमेरिका, रूस और बेल्जियम जैसे देशों के व्यापारी भी यहां आते-जाते थे। हान जातीय क्षेत्र और तिब्बती जातीय क्षेत्र के बीचोंबीच स्थित होने के कारण डंगर में विशेष तौर पर जातीय व्यापार करने वाले"तिब्बती व्यापारी"भी प्रसिद्ध थे। ह्वांगयुआन कांउटी के प्रसार विभाग के उप प्रधान चांग चोंग ने जानकारी देते हुए कहा:"तत्काल में इस स्थल में हान जातीय लोगों की संख्या ज्यादा थी। इसके अलावा तिब्बती, ह्वेई, मंगोल, सारा और थू आदि जातियों के लोग भी मेल-मिलाप से रहते थे। यह शहर उत्तर पश्चिमी चीन में एक बड़ा व्यापारिक केंद्र था। उसके पश्चिम में पशुपालन क्षेत्र और पूर्व में कृषि क्षेत्र था। तत्काल में यहां आने जाने वाले तिब्बती व्यापारियों की संख्या ज्यादा थी और धीरे-धीरे चार घोड़ा बाज़ार कायम हुआ। आर्थिक और व्यापारिक विकास के चलते इस स्थल को'लघु पेइचिंग'के नाम से देश भर में जाना जाता था।"

डंगर प्राचीन शहर आने के बाद लोग पूर्व ओर"यिंगछुन द्वार"से शहर में प्रवेश करते थे और पश्चिम और"कोंगहाई द्वार"से बाहर जाते थे।"यिंगछुन"का अर्थ वसंत का स्वागत है, जबकि"यिंगछुन द्वार"का मतलब है वसंत ऋतु की तरह डंगर में सब चीजें उत्पन्न होकर दूर से आने वाले अतिथियों का स्वागत करता है।"कोंगहाई द्वार"का नाम स्थानीय छ्यांग जातियों की रीति रिवाज़ से जुड़ा हुआ है। "कोंग"का मतलब है सम्मान करना और"हाई"का अर्थ समुद्र, कुल मिलाकर"कोंगहाई"का मतलब समुद्र का सम्मान करना है। यह वास्तविक समुद्र नहीं है, स्थानीय लोग विशाल छिंगहाई झील को पश्चिमी समुद्र कहते हैं।"कोंगहाई द्वार"के नाम के बारे में स्थानीय लोगों में एक कथा प्रचलित है। इसे सुनाते हुए हमारी गाइड सुश्री ली ने कहा:"डंगर प्राचीन शहर का पश्चिमी द्वार कोंगहाई द्वार है। कहा जाता है कि चीनी परम्परागत पंचांग के अनुसार हर वर्ष जुलाई के 15वें दिन को देवी शी वांगमू का जन्मदिन आता है। छिंगहाई झील के आसपास देवताओं की पूजा करने वाले भव्य समारोह को आयोजित किया जाता था। अनुयायी इस द्वार से पवित्र झील की ओर जाते थे। इस तरह लोग इस द्वार को कोंगहाई द्वार कहते हैं।"

डंगर प्राचीन शहर का द्वार

"कोंगहाई द्वार"के बारे में एक और कथा भी प्रचलित है। कहते हैं कि अहम व्यापारिक केंद्र और सैन्य अड्डे के रूप में चीन के विभिन्न राजवंशों ने डंगर को भारी महत्व दिया था। बताया जाता है कि 17वीं शताब्दी से 20वीं सदी के शुरू तक छिंग राजवंश की सरकार हर वर्ष चीनी पंचांग के मुताबिक जुलाई के 15वें दिन को छिंगहाई झील के तट पर विशेष दूत भेजती थी, जहां तिब्बती और मंगोलियाई कबाइली क्षेत्रों के प्रधानों का शिखर सम्मेलन आयोजित किया जाता था। छिंगहाई झील के तट पर जाने के लिए डंगर प्राचीन शहर से गुज़रना पड़ता था। विशेष दूत का नेतृत्व वाला प्रतिनिधि मंडल शहर के पूर्वी द्वार से प्रवेश करके पश्चिमी द्वार से निकलता था। वे पश्चिमी द्वार के बाहर समुद्र सम्मान के समारोह का आयोजन करते थे। धीरे-धीरे पश्चिमी द्वार"कोंगहाई"द्वार कहलाया जाने लगा।

थांग राजवंश की राजकुमारी वनछङ और तिब्बत के थूपो वंश के राजा सोंगचान कानपू के बीच प्रेम कहानी हज़ार वर्षों से हान और तिब्बती जातियों में बहुत लोकप्रिय है। डंगर शहर राजकुमारी वनछङ के सोंगचान कानपू के साथ शादी करने के लिए तत्कालीन थांग राजवंश की राजधानी छांगआन से तिब्बत तक जाने के रास्ते का महत्वपूर्ण केन्द्र था। हान और तिब्बती जातियों के बीच मैत्री को बढ़ाने वाली इस राजकुमारी का वर्णन आज भी तिब्बती क्षेत्रों के लोगों के जुबान पर है। डंगर प्राचीन शहर के दक्षिण पश्चिमी ओर रिय्वे पर्वत खड़ा हुआ है। तिब्बती भाषा में रिय्वे पर्वत को"निमा दावा"कहा जाता है, "रि"का मतलब"सूर्य"है, जबकि"य्वे"का अर्थ"चंद्रमा"। "रिय्वे पर्वत"तो सूर्य-चंद्रमा पर्वत ही है। इस पर्वत के बारे में स्थानीय तिब्बतियों में बहुत सी कहानियां भी प्रचलित हैं, जो सब राजकुमारी वनछङ से संबंधित हैं। छिंगहाई प्रांत के प्रसार विभाग के कर्मचारी ल्यु चीछ्यांग ने एक कहानी सुनाते हुए कहा:"उस समय राजकुमारी वनछङ तिब्बत जाने के दौरान एक महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में रिय्वे पर्वत ह्वांगयुआन कांउटी में खड़ा हुआ है। कहते हैं कि थांग राजवंश के शाह थाईचोंग ने राजकुमारी वनछङ को एक सूर्य-चंद्रमा दर्पण दिया और कहा कि अगर उन्हें अपने जन्मस्थान की याद सताती हो, तो इस दर्पण से राजधानी छांगआन के दृश्य, अपने माता-पिता और परिजनों को देख पाता है। राजकुमारी वनछङ थुपो के राजा सोंगचान कानपू के साथ शादी करने के लिए छांगआन से रवाना हुई। रिय्वे पर्वत क्षेत्र पहुंचने के बाद उन्होंने दर्पण निकाल कर देखा, तो इसमें सिर्फ़ अपना कृश चेहरा नज़र आता था। राजकुमारी को बहुत क्रोध आया और उसने इस दर्पण को गिरा कर नष्ट कर दिया। सूर्य-चंद्रमा दर्पण दो भागों में टूट गया, एक भाग सूर्य दर्पण बन गया और दूसरा भाग चंद्रमा दर्पण। रिय्वे पर्वत के आसपास राजकुमारी के स्वागत के लिए राजा सोंगचान कानपू के विशेष दूतों का दल आया था।"

प्राचीन शहर का दृश्य 

राजकुमारी वनछङ के बारे में एक और कहानी प्रचलित है। कहा जाता है कि राजकुमारी ने रिय्वे पर्वत पर पश्चिम में थूपो की ओर देखा, रास्ता बहुत दूर था और घास का मैदान बहुत विशाल। फिर उन्होंने पूर्व में राजधानी छांगआन की ओर देखा, दिमाग में जन्मस्थान और परिजनों की याद एकदम ताजा हो आई। दुख के कारण राजकुमारी की आंखें आंसुओं से भर गईं, लगातार गिरने वाले आंसुओं से एक नदी बन गई और छिंगहाई झील की ओर बहती रही। यहां कुछ ठहरने के बाद राजकुमारी वनछङ रिय्वे पर्वत और डंगर शहर से विदा लेकर आगे चली। रास्ते में उसे अपने जन्मस्थान और परिजनों की याद सताने लगी और वो तिब्बत की ओर जाने लगी और उन्होंने हान और तिब्बती जाति के बीच मैत्री को मज़बूत करने का महत्वपूर्ण दायित्व उठाया। प्राचीन काल से आज तक तिब्बती क्षेत्र में राजकुमारी वनछङ को तिब्बती लोग सम्मान देते हैं। इसकी चर्चा में छिंगहाई प्रांत के प्रसार विभाग के कर्मचारी ल्यू चीछ्यांग ने कहा:"तत्काल तिब्बत यानी सोंगचान कानपू शासन काल में पशुपालन प्रधानता क्षेत्र था। राजकुमारी वनछङ भीतरी क्षेत्र से प्रगतिशील तकनीक ले कर आईं। उन्होंने तिब्बतियों को कृषि, बुनाई और चिकित्सा से संबंधित तकनीक सिखाई। जो आज सुप्रसिद्ध तिब्बती चिकित्सा में हान जातीय चिकित्सा का अधिक भाग शामिल हुआ है। लम्बे समय के विकास से वह धीरे-धीरे स्वतंत्र तिब्बती चिकित्सा की पद्धति बन गई। राजकुमारी वनछङ ने चीनी हान जातीय संस्कृतिक के प्रसार के लिए भारी योगदान किया था। तिब्बती लोगों के दिल में उन्हें बोद्धिसत्व अवलोकीतेश्वर की अवतार मानी जाती है। जैसा कि गीत में गाया जाता है तिब्बती जाति और हान जाति एक ही माता की बेटियां हैं।"

कंफ्युशस मंदिर की बाहरी दीवार

कंफ्युशस मंदिर में पत्थर वाली पुस्तक

डंगर प्राचीन शहर के भीतर कंफ्युशस मंदिर स्थापित हुआ है। मंदिर की बाहरी दीवार पर कंफ्युशस की कहानियां अंकित हुई हैं। इसके भीतर के आंगन में बड़े पत्थर से बनी हुई कई मेज़ें रखी हुई हैं, जिनपर पत्थर वाली खुली किताबें लगाई जाती हैं, इनमें कंफ्युशस की विचारधाराओं का कुछ अंश अंकित किया जाता है। छिंगहाई भीतरी क्षेत्र से दूर है, यहां पशुपालन प्रधानता वाली संस्कृति ने कृषि प्रधानता वाली संस्कृति का स्थान ले लिया। इस तरह कंफ्युशस संस्कृति का असर धीर-धीरे कम हो गया। हमारी गाइड सुश्री ली के अनुसार इस कंफ्युशस मंदिर की स्थापना 90 से ज्यादा वर्ष पूर्व की गई थी, और यह चीन के सबसे पश्चिमी भाग में निर्मित कंफ्युशस मंदिर है।

डंगर प्राचीन शहर में पर्यटक पुराने जमाने के रीति रिवाज़ महसूस करने के साथ-साथ विभिन्न जातियों के रंगबिरंगे वस्त्र शो का आनंद भी ले सकते हैं। प्राचीन शहर में बसे स्थानीय वासी तिब्बती, हान, मंगोल, ह्वेई और सारा आदि जातियों के वस्त्र पहनकर ऊंचे और मधुर तिब्बती गीत संगीत में अपने-अपने जातीय वस्त्र और रीति रिवाज़ दिखाते हैं।

डंगर प्राचीन शहर में वस्त्र शो

तिब्बती बौद्ध धर्म का तोंगखेर मठ, कंफ्युशस मंदिर, बौद्ध धर्म के नगरदेवता का मंदिर और स्वर्ण बुद्ध मंदिर, लोककथाओं में स्वर्ग सम्राट का मंदिर, क्वांगडी मंदिर और धन देव मंदिर के अलावा डंगर शहर में मुसलमानों का मस्जिद भी स्थापित हुआ है। इसी स्थल में विभिन्न प्रकार वाले मठों और मंदिरों को देखा जा सकता है। इन वास्तु निर्माणों से तिब्बती संस्कृति, हान संस्कृति, मुस्लिम संस्कृति एकजुट होकर नज़र आती है। यहां एक ईंट, एक द्वार, एक खिड़की, एक आंगन और एक गली से प्राचीन रंगबिरंगी संस्कृति का चिह्न दिखाया जाता है, साथ ही डंगर प्राचीन शहर में लोग हान और तिब्बती जाति के बीच मैत्री की भावना ही नहीं, जातीय एकता का सामंजस्यपूर्ण माहौल भी महसूस कर सकते हैं।

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