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पठार के गुर्दे के रक्षक
2013-02-25 19:46:59

"तुम्हारे पास प्रकृति की जितनी अधिक जानकारी होगी, तुम उससे उतना ही प्यार करोगे।"

यह आवाज़ थ्येन रेइछुन की है। वे उत्तर पश्चिमी चीन के कानसू प्रांत के दक्षिण भाग के कान्नान तिब्बती प्रिफैक्चर की लूछ्यु कांउटी में स्थित काहाई झील के प्राकृतिक संरक्षण केंद्र में दस से ज्यादा साल काम कर चुके हैं।

प्रकृति के प्रति असीम प्यार के कारण भीतरी इलाके के हेपेइ प्रांत से आए थ्यान रेइछुन दस साल पूर्व समुद्र सतह से 3480 मीटर की ऊंचाई पर स्थित छिंगहाई तिब्बत पठार के काहाई झील पहुंचे। यह कान सू प्रांत की सबसे बड़ी मीठे पानी वाली झील है, जो कान्नान तिब्बती प्रिफैक्चर की लूछ्यु कांउटी में स्थित है। यह पूर्व छिंगहाई तिब्बत पठार की अहम आर्द्रभूमि ही नहीं, चीनी राष्ट्र की माता नदी यानी पीली नदी के ऊपरी भाग का अत्यंत महत्वपूर्ण जल संरक्षण केंद्र भी है, जो"पठार के गुर्दे"एवं"पठारीय मोती"के नाम से विख्यात है। स्थानीय तिब्बती लोग काहाई झील क्षेत्र को"त्सोनिंग"कहते हैं, अर्थ है"याक आने जाने का स्थान"। खूब पानी भरी हुई झील में प्रचुर घास होती है। साथ ही काले सारस, काले गर्दन वाली क्रेन और जंगली हंस आदि दुर्लभ चिड़ियाएं यहां आती जाती हैं।

नीले आसमान में झील का पानी सूर्य की किरणों में चमकदार दिखता है, आकाश में स्वतंत्र रूप से उड़ते मौसमी पक्षी नज़र आते हैं। झील पर खेलते हुए चिड़िया, घास के मैदान में आराम से घास चुग रहे याक, दौड़ते हुए घोड़े और भेड-बकरों का झुंड......नीले आसमान में सफेद बादल के नीचे घास मैदान में यह सब मिलकर एक बहुत सुन्दर दृश्य दिखाई देता है। लेकिन इस प्रकार का सौंदर्य पहले नहीं दिखता था।

गत पचास के दशक के बाद सूखे मौसम, अति चरागाह और वनस्पति के नष्ट होने आदि कारणों से काहाई झील का जलीय क्षेत्र लगातार कम हो रहा था। वर्ष 1995, वर्ष 1997 और वर्ष 2000 में तीन बार सूखा पड़ा। इस क्षेत्र के घास मैदान में घास नहीं मिलती, जिससे याक व भेड़-बकरों को चारा नहीं मिल पाता। यहां तक कि चरवाहों को पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं होता। वर्ष 1998 में काहाई क्षेत्र को राष्ट्र स्तरीय प्राकृतिक संरक्षण केंद्र बनाया गया। वर्ष 2000 से ही देश ने इसी क्षेत्र में आर्द्रभूमि की बहाली की परियोजना के कार्यान्वयन के लिए भारी धन राशि लगाई। और झील के मूल क्षेत्र में सुरक्षा बांड लगाया, दूसरी जगह से पानी लिया और बांध का निर्माण किया। स्थानीय सरकार ने जल स्रोत की गारंटी के साथ-साथ घास उगाने और चरवाहों के उचित पशुपालन संबंधी तमाम कदम उठाए, जिससे आर्द्रभूमि धीरे-धीरे बहाल हुई।

वर्ष 2003 में कान्नान तिब्बती प्रिफैक्चर के काहाई चेछा संरक्षण केंद्र की स्थापना हुई। उस वक्त थ्यान रेइछुन यहां आकर काहाई संरक्षण केंद्र के प्रधान बने। वे स्थानीय जीव जंतुओं की विविधता के संरक्षण व निगरानी और आर्द्रभूमि संरक्षण परियोजना के कार्यान्वयन आदि कार्यों की जिम्मेदारी उठाते हैं। उन्हें काम करते हुए दस साल बीत चुके हैं। आर्द्रभूमि के संरक्षण की चर्चा में उन्होंने कहा:"अब घास मैदान की बहाली संबंधी तकनीक के जरिए स्थानीय लोग वैज्ञानिक तरीके से घास मैदान का प्रबंधन करते हुए इसका उचित इस्तेमाल करते हैं। इधर के सालों में घास मैदान का ठेका दिया गया और सरकार ने पशुपालन का प्रबंधन और चरागाह के लिए कदम उठाए, जिसने आर्द्रभूमि के संरक्षण में अहम भूमिका निभाई।"

थ्यान रेइछुन ने कहा कि काहाई आर्द्रभूमि के संरक्षण व बहाली परियोजना के कार्यान्वयन के बाद से लेकर अब तक यहां 94 किस्मों की जलीय वनस्पति का पता लगा। साथ ही मछली, एम्फीबिया, सरीसृप, पक्षी और पशु आदि 95 प्रतिशत जानवर मिले। वर्ष 2004 में जलीय पक्षियों में अग्रिम राष्ट्र स्तरीय संरक्षित काले सारसों की संख्या दस से कम थी, लेकिन वर्ष 2011 में यह संख्या बढ़कर 420 तक पहुंच गई। इसके साथ ही दुर्लभ काले-गुर्दे-क्रेन की संख्या भी वर्ष 2004 के 10 से वर्तमान के 130 तक पहुंची।

दस से ज्यादा सालों में थ्यान रेइछुन का पदचिह्न काहाई झील संरक्षण क्षेत्र के हर पहाड़ की चोटी, हर नीचे लाइंग लैंड और हर घाटी तक पहुंचे। रोज़ वे दूरबीन के जरिए मौसमी पक्षियों को देखने झील में स्थापित बर्ड वॉच-मंडप जाते हैं। नई किस्म वाले पक्षियों का पता लगाते वक्त थ्यान रेइछुन संतुष्ट होने के साथ-साथ दुखी भी होते हैं। उन्होंने कहा:"अगर पहले न दिखने वाले पक्षी अचानक यहां आते हैं या पक्षियों की किस्में एकदम बढ़ जाती हैं, या पक्षी लम्बे समय तक यहां ठहरते हैं। एक तरफ़ यह अच्छी बात है, जाहिर है कि हमारे संरक्षण केंद्र की स्थिति बेहतर होगी। लेकिन दूसरी तरफ़ शायद इन पक्षियों के लिए पहले रहने वाला स्थल नष्ट हुआ होगा, इसीलिए वे यहां आए होंगे।"

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