चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश और दूसरे प्रांतों के तिब्बती क्षेत्रों में रहने वाली तिब्बतियों का इस तरह वर्णन किया जाता है कि उन्हें बोलना आते ही गीत गाना आता है, चलना आते ही नृत्य करना आता है। पर वर्तमान में भूमंडलीय संगीत का विकास व्यवसायीकरण की लहर से लिपटा हुआ है, शानदार व समृद्ध तिब्बती संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाला तिब्बती संगीत किस तरह विकसित होगा और विश्व की ओर बढ़ेगा। हाल ही में चीन के भीतरी इलाकों और तिब्बत स्वायत्त प्रदेश से आये दसियों विशेषज्ञ , विद्वान और संगीतकार ल्हासा शहर में एकत्र होकर प्रथम चीनी तिब्बती संगीत शिखर मंच में उपस्थित हुए। उन्होंने परम्परागत जातीय संगीतों के संरक्षण के लिये विशेष संस्था की स्थापना करने को कहा, साथ ही संगीत रचनाकारों को तिब्बती सांस्कृतिक परम्पराओं से संजीदगी के साथ सीखना चाहिये, ताकि आधुनिक मार्केटिंग अवधारणा अपनाकर तिब्बती जातीय संगीत सचे मायने में विश्व भर में अपना स्थान बना सके।
लम्बे अर्से से तिब्बती जाति ने दूसरी जातीय संस्कृतियों से सीखने और एक दूसरे के साथ मिलाने के जरिये धीरे धीरे अपनी विशेष तिब्बती जातीय सांस्कृतिक कला बना ली है। गत सदी से तिब्बती संगीत रचना और प्रचार प्रसार तीन तीन ज्वारों से गुजर गया है, जिस से विशेष पहचान बनाने वाले तिब्बती संगीत तत्व चीन के विभिन्न क्षेत्रों में एकदम लोकप्रिय हो गये हैं।
गत सदी के 60 वाले दशक में धुलाई गीत और मुक्त हुए भूदास गीत गाओ नामक बड़ी तादाद में गीत, जो तिब्बती परम्परागत संगीत के आधार पर तैयार हुए हैं, समूचे चीन में व्यापक रुप से प्रसारित हुए हैं , साथ ही काफी ज्यादा तिब्बती गायक, जिन का प्रतिनिधित्व प्रसिद्ध गायका चायतानचोमा है, प्रकाश में आये हैं। फिर इस के बाद गत सदी के 90 वाले दशक में तिब्बती शैली युक्त गीतों की प्रचार प्रसार रफ्तार और पैमाना बड़ी हद तक विस्तृत होने लगा, इतना ही नहीं, पाँप संगीत के तत्वों को मिलाकर छिंगहाई तिब्बत पठार, चुमुलांगमा आदि हजारों पाँप गीत रचित हुए हैं। नयी सदी में व्यावसायिक संचालन में तिब्बती शैली युक्त पाँप संगीत का उभाड़ एकदम सामने आया, मसलन सुनहरी जन्मभूमि, उस पूर्व पहाड़ की चोटी पर और चोमा आदि गीत लगातार सुनने को मिल गये हैं, साथ ही पासांग, छुंगश्येचोमा और काउय्वानहुंग जैसे गायक गायकाएं समेचे चीन में बहुत लोकप्रिय भी हो गये हैं। इतना ही नहीं, तिब्बती लोक गीत, बाल गीत, मदिरा गीत, श्रम गीत और तिब्बती आँपरा आदि गीतों संगीतों का संग्रहित व संकलित काम दिन ब दिन सुव्यवस्थित होता गया है और उत्तरोत्तर अधिकाधिक संबंधित रचनाएं भी प्रकाश में आयी हैं।