पिनतुन तिब्बत के लोका प्रिफैक्चर की छोंगच्ये कांउटी में स्थित है, इस गांव में एक तिब्बती ओपेरा मंडली है, जो कभी कभार अभ्यास करती है और प्रदर्शनी व अभिनय भी। इस गांव में भ्रमण के दौरान हमारे संवाददाता ने मंडली के एक अभिनेता पाचू से मुलाकात की।
इस गांव में तिब्बती ओपेरा का अभ्यास स्थल चार से पांच सौ वर्ग मीटर क्षेत्रफल में फैला है, आंगन के सामने एक मंच है, आसपास के कई मकानों में अभिनय का सामान और वस्त्र रखे हुए हैं। मंडली के एक्टर बड़ी मेहनत से अभ्यास कर रहे हैं, घडियाल और ढोल की बड़ी आवाज़ों में वे रंगबिरंगे ओपेरा वस्त्र और सिर पर सफेद मुखौटा पहनकर मंच पर नृत्य कर रहे हैं। साथ ही वे एक लाइन में खड़े होकर इंतजार करते हैं, इसी वक्त एक अभिनेता बाहर आकर विशेष शैली में गा रहे हैं, बाकी लोग उनका साथ देते हैं।
इस गायक का नाम है पाचू। जिनकी उम्र 50 साल है, और वह शरीर से दुबले-पतले हैं। उन्होंने बताया कि इस तिब्बती ओपेरा का नाम है《राजकुमार नोसांग》, जो तिब्बती ओपेरा में सबसे प्राचीन और सबसे लोकप्रिय परम्परागत नाटकों में से एक है। उन्होंने कहा:"इस नाटक में एक कहानी सुनाई जाती है। बताते हैं कि काफी समय पहले, उत्तर और दक्षिण दोनों देशों के बीच लडाई हुई। दक्षिणी देश के राजा बहुत क्रूर थे और उनके शासन में जनता का जीवन मुश्किलों से भरा था। उत्तरी देश की राजकुमारी नोसांग बहुत दयालु था, उन्हें जनता बहुत प्यार करती थी। अंत में उत्तरी देश ने लड़ाई में विजय पायी। इस नाटक में राजकुमारी नोसांग का गुणगान किया गया है ।"
तिब्बती ओपेरा जातीय क्षेत्रों में प्रचलित विशेष ओपेरा है, जिसका इतिहास 600 वर्ष से भी अधिक पुराना है और इसे"जीवित जीवाश्म"कहा जाता है। छिंगहाई तिब्बत पठार के विभिन्न क्षेत्रों में प्राकृतिक स्थिति, जीवन शैली, रीति रिवाज़, सांस्कृतिक परम्परा और भाषा अलग होने के कारण तिब्बती ओपेरा की कई कलात्मक किस्में व शाखाएं हैं। पाचू ने बताया कि इस तिब्बती ओपेरा का नाम सफेद मुखौटा है, जो तिब्बती ओपेरा की एक शाखा है। कहते हैं कि इस ओपेरा का इतिहास सबसे पुराना है और उसका जन्मस्थल तिब्बत के लोका प्रिफैक्चर की छोंगच्ये कांउटी के पिनतुन गांव में है। पाचू ने कहा:"सफेद मुखौटा तिब्बती ओपेरा की एक विशेषता है कि अभिनेता के मुखौटे का रंग सफेद है। मुखौटे की आंखें आकाश की ओर देख रही हैं। कहा जाता है कि पांचवें दलाई लामा का जन्मस्थान हमारे यहां है और उनकी आंखें इस तरह की हैं। इस तरह सफेद मुखौटे पर आंखें आकाश की ओर देखने से हम दलाई लामा को याद कर रहे हैं। इसके अलावा अभिनेता के ओपेरा वस्त्र का मूल रंग भी सफेद है, इसके ज़रिए तिब्बती ओपेरा के संस्थापक थांगतुंग ज्याल्पू को याद किया जाता है। बताया जाता है कि थांगतुंग ज्याल्पू के वस्त्रों का रंग सफेद था, इस तरह आज तिब्बती ओपेरा के वस्त्रों का रंग मुख्य तौर पर सफेद है।"
तिब्बती ऑपेरा तिब्बती बहुल क्षेत्रों में प्रचलित लोकप्रिय ओपेरा है, जिसकी शुरुआत के बारे में एक सुन्दर कहानी है। 15वीं शताब्दी में तिब्बती बौद्ध धर्म के गेग्यु संप्रदाय के भिक्षु थांगतुंग ज्याल्पू तिब्बती जनता को बेहतर सुविधा प्रदान करने के लिए छिंगहाई तिब्बत पठार में विभिन्न नदियों पर पुलों का निर्माण करना चाहते थे। वे पुल के निर्माण के लिए पैसा जुटाते थे, लेकिन वे अपने काम में सफल नहीं हो सके। बाद में थांगतुंग ज्यालपू ने धार्मिक अनुयायियों में सुन्दर, बुद्धिमान और गाने- नाचने में निपुण सात लड़कियों को एकत्र कर ओपेरा दल की स्थापना की, वे धार्मिक प्रथाओं के विषय पर सरल नृत्य व संगीत प्रस्तुत करते थे और ओपेरा का प्रदर्शन। उन्होंने इस तरह के प्रदर्शनों से पूंजी जुटायी और पुलों का निर्माण किया। तो, ऐसे हुई तिब्बती ओपेरा की शुरुआत। इस तरह लोग थांगतुंग ज्याल्पू को तिब्बती ओपेरा का संस्थापक मानते हैं।
आज का तिब्बती ओपेरा अपने शुरुआती रूप से अलग हो गया है। 17वीं शताब्दी के बाद तिब्बती ओपेरा की अपनी विशेष शैली कायम हुई। आम तौर पर तिब्बती ओपेरा मैदान में प्रदर्शित किया जाता है, न कि मंच पर । प्रदर्शन के दौरान अभिनेता व अभिनेत्री चेहरे पर मुखौटा पहनते हैं और हल्का मेकअप होता है। तिब्बती ओपेरा में अभिनेता व अभिनेत्री कम बोलते हैं, वे गीत गाते हैं। मैदान में प्रदर्शन के चलते उनकी आवाज़ बहुत बुलंद और शक्तिशाली होती है। आम तौर पर कुछ गानों के बाद कलाकार नाचते हैं। नृत्य के दौरान वे पहाड़ पर चढ़ने, नाव खेने, घुड़सवारी और पूजा करने के एक्शन करते हैं। इसमें तिब्बती बौद्ध धर्म के परम्परागत विषय बहुत ज्यादा हैं, लेकिन प्रमुख विषय सिर्फ़ आठ हैं, जिनमें थांग राजवंश की राजकुमारी वनछङ के तिब्बती राजा सोंगजान गाम्पू के साथ शादी के लिए थांग राजवंश की राजधानी छांगआन से तिब्बत में प्रवेश करने की कहानी शामिल है।
वैसे तिब्बती ओपेरा की कई शाखाएं हैं, आम तौर पर पुरानी और नई दो शाखाएं प्रमुख हैं। पुरानी शाखा में तिब्बती ओपेरा प्रदर्शन के दौरान कलाकार चेहरे पर सफेद रंग का मुखौटा पहनते हैं। इस शाखा को सफेद मुखौटे वाली शाखा कहते हैं। कलाकारों का अभिनय बहुत सरल होता है। उधर नई शाखा वाले तिब्बती ओपेरा के अभिनेता व अभिनेत्री नीले रंग के मुखौटे पहनते हैं। इसे नीले मुखौटे वाली शाखा कहते हैं। नई शाखा के बड़े विकास के कारण उसका प्रभाव व्यापक हो गया और धीरे-धीरे में उसने पुरानी शिखा का स्थान ले लिया।
तिब्बती बहुल क्षेत्रों में लोक तिब्बती ओपेरा की कई मंडलियां हैं। साथ ही कभी-कभी गांवों के मैदान में तिब्बती ओपेरा प्रदर्शित किया जाता है। गांव वासी आसपास के विभिन्न स्थलों से देखने आते हैं। श्वेतुन त्योहार समेत तिब्बती जनता के महत्वपूर्ण त्योहारों के दौरान तिब्बती ओपेरा प्रदर्शित करना अनिवार्य है, जिसका तिब्बती लोग बड़ा स्वागत करते हैं।
पिनतुन गांव की तिब्बती ओपेरा मंडली प्रदेश में स्थापित सबसे पुरानी तिब्बती ओपेरा मंडली है। पाचू के चाचा युवावस्था में इस मंडली के एक अभिनेता भी थे। पाचू को उनके चाचा ने बताया कि उसी समय तिब्बती ओपेरा मंडली हर वर्ष श्वेतुन त्योहार मनाने के लिए राजधानी ल्हासा जाती थी और सफेद मुखौटा तिब्बती ओपेरा अभिनय का पहला प्रोग्राम था। लेकिन 1980 के दशक में पैसे की कमी के कारण मंडली को भंग कर दिया गया। और गांव में सफेद मुखौटा तिब्बती ओपेरा अभिनय में निपुर्ण व्यक्ति धीरे-धीरे बूढ़े हो गए। इसे देखते हुए चाचा बहुत चिंतित हुए। उन्होंने पाचू को इसकी ट्रेनिंग देने का फैसला किया। इसकी चर्चा में पाचू ने कहा:" जहां एक ओर मुझे इस पर रुचि थी, वहीं मेरे चाचा मेरे गुरू बन गए थे। अपने निधन के पहले उन्होंने इस ओपेरा से संबंधित सारी तकनीकें मुझे सिखायी और मुझसे इस कला के विकास की जिम्मेदार लेने की आशा जताई। मुझे अपनी जाति की इस संस्कृति को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे ले जाने की उम्मीद है।"
पाचू ने कहा कि सफेद मुखौटा ओपेरा की नृत्य और गायन शैली बहुत जटिल है। सिर्फ नृत्य ही नौ तरह के होते हैं। उसकी धुन बहुत लम्बी होने के कारण गायक को गहरी सांस लेनी पड़ती है। इसके साथ ही पुराने जमाने में तिब्बती ओपेरा के नाटकों में कोई शब्द नहीं था। नाटकों के बोल अच्छी तरह याद करने के लिए पाचू को रिकॉर्डर पर निर्भर रहना पड़ता था। इसकी चर्चा में उन्होंने कहा:"उस समय मेरे साथ अन्य 14 व्यक्ति मेरे चाचा जी से तिब्बती ओपेरा सीखते थे। हम सीखते हुए रिकॉर्डर में रिकॉर्डंग सुनते थे। दिन में चाचा से सीखते थे और रात को रिकॉर्डर से। हमें नाटकों के बोल याद करने के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ती थी।"
पाचू बहुत मेहनत से सीखते थे और बहुत जल्दी ही उन्होंने इस कला में महारत हासिल कर ली। संतोष की बात यह है कि वर्ष 2006 में तिब्बती ओपेरा को चीनी राष्ट्र स्तरीय गैर भौतिक सांस्कृतिक अवशेषों की सूची में शामिल किया गया। देश द्वारा प्रदत्त विशेष राशि से पिनतुन गांव के तिब्बती ओपेरा मंडली का पुनर्गठन किया गया। पाचू के मुताबिक ओपरा मंडली की स्थापना की शुरुआत में महज 12 एक्टर थे। लेकिन अब मंडली के सदस्यों की संख्या 28 तक पहुंच गई है, जिनमें आधे से अधिक 20 की उम्र के युवा हैं। पाचू ने कहा:"इस विशेष राशि से हमारे क्षेत्र व कांउटी को भत्ता मिला। इसका इस्तेमाल कर हमने अभ्यास के लिए बिल्डिंग का निर्माण करवाया और संबंधित चीजें व ओपरा के लिए ड्रेस आदि खरीदी। इसके साथ ही अभ्यास करने वालों को कार्य भत्ता भी दिया जाता है। अगले दिन होने वाले अभिनय की तैयारी इससे एक दिन पहले ही समाप्त कर ली जाती है।"
पाचू के पास 11 शिष्य भी हैं। वे सब पिनतुन गांव के हैं और उनकी उम्र 20 वर्ष के आसपास है। पाचू अपने शिष्यों को सफेद मुखौटा तिब्बती ओपेरा से संबंधित अपने जीवन भर का अनुभव बताते हैं। वे चाहते हैं कि किसी न किसी दिन तिब्बती ओपेरा तिब्बत से बाहर देश के विभिन्न स्थलों यहां तक कि विश्व भर में लोकप्रिय हो। पाचू ने कहा:"हमारी तिब्बती ओपेरा मंडली के तमाम सदस्यों की तमन्ना है कि सफेद मुखौटा तिब्बती ओपेरा को पूरे देश व सारी दुनिया भर में फैलाया जाएगा, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस तिब्बती कला की जानकारी कर सकें।"
हमारे संवाददाता से विदा लेकर पाचू फिर मंच पर चले गए और वे युवा अभिनेताओं के साथ पुनः अभ्यास करने लगे। कभी वे डांस कर रहे मुस्कुराते युवाओं को देख रहे हैं और कभी उन्हें टिप्स दे रहे हैं। उनकी मुस्कान देखकर लोग सफेद मुखौटा तिब्बती ओपेरा के भविष्य के प्रति आशावान भी हैं।