चालू वर्ष में 71 वर्षीय बुजुर्ग ओड्रोलोप तिब्बत की राजधानी ल्हासा के उपनगरीय छाईकोंगथांग टाऊनशीप में रहते हैं। यह क्षेत्र पुराने तिब्बत के भूदास मालिक श्यासू के खानदानी क्षेत्रों में से एक था। पिछले 70 सालों में बुजुर्ग ओड्रोलोप ने तिब्बती भूदास समाज और तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति, भूदास व्यवस्था की समाप्ति से लेकर तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की स्थापना तक के विविधतापूर्ण परिवर्तन अपनी आंखों से देख लिये। वे तिब्बती समाज में हुए बदलाव का साक्षी ही नहीं, बल्कि उन्हें तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति से अपने जीवन में हुए परिवर्तन से लाभ भी हुआ है।
बुजुर्ग ओड्रोलोप की नजर में घर के पास स्थापित कई पुल इधर सालों में तिब्बती समाज में हुए भारी परिवर्तन की सब से बड़ी मिसाल ही हैं। 60 साल पहले छाईकोंगथांग टाऊनशीप से ल्हासा शहर जाने के लिये ल्हासा नदी को पार करना था पर उस समय इस नदी के ऊपर कोई पुल नहीं था स्थानीय वासियों को भैंस चमड़े से तैयार नाव या लकड़ी नाव पर सवार होकर नदी के दूसरे किनारे स्थित नाचिन टाऊनशीप पहुंचने की जरुरत पड़ती थी उस समय आने जाने में कम से कम एक घंटे से अधिक समय लगता था लेकिन अब ल्हासा नदी पर एक बड़ा पुल निर्मित हुआ है छाईकोंगथांग टाऊनशिप से ल्हासा शहर पहुंचने में केवल कई मिनट लगता है आने जाने में बड़ी सुविधापूर्ण हो गया है। बुजुर्ग ओड्रोलोप ने याद करते हुए कहा:"साठ साल पहले नदी पार करने के लिये नाव पर सवार होना पड़ता था। उस समय हमें कभी कभी नाव का इंतजार करते करते नदी तट पर पूरी रात ठहरना पड़ता था, और तो और भीड़ों व पशुओं की वजह से नाव पर कोई जगह न मिलने से बड़ी दिक्कतें हुई थीं। जबकि गर्मियों में नदी का पानी बढ़ जाता था, नावों के सामने उफनती नदी में हर समय उलटने का खतरा भी मौजूद था।"
61 साल पहले यानी 23 मई 1951 में चीनी केंद्रीय सरकार ने तिब्बत की तत्कालीन स्थानीय सरकार के साथ पेइंचिंग में तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति उपाय के बारे में समझौता संपन्न किया , तब से तिब्बत में शांतिपूर्ण मुक्ति साकार हो गयी। बुजुर्ग ओड्रोलोप को याद है कि उस साल शरद में चीनी जन मुक्ति सेना ने इसी स्थान से नाव पर सवार होकर ल्हासा शहरीय क्षेत्र पहुंचकर तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति का ऐतिहास मिशन पूरा कर लिया है।
बुजुर्ग ओड्रोलोप ने कहा कि तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद तिब्बत में प्रविष्ट जन मुक्ति सेना ने ल्हासा नदी के ऊपर एक लकड़ी पुल बांध दिया, जिस से स्थानीय वासियों की बाहर आने जाने की स्थिति सुधर गयी। पर बाद में लम्बे समय में वर्षाओं व हवाओं के थप्पड़ों से यह लकड़ी पुल नष्ट होकर प्रयोग में लगातार लाने लायक नहीं था। 1965 में सछ्वान तिब्बत राजमार्ग को जोड़ने वाला ल्हासा पुल खड़ा किया गया। पिछले 40 सालों से अधिक समय में ल्हासा पुल न सिर्फ आसपास के स्थानीय वासियों के लिये बाहर जाने आने में सुविधापूर्ण ही नहीं , बल्कि तिब्बत से भीतरी क्षेत्रों के साथ जोड़ने वाला महत्वपूर्ण फीता बन गया है, अतीत के भैंस चमड़े नाव व लकड़ी नाव सदा के लिये अपने ऐतिहासिक मंच से हट गये हैं । बुजुर्ग ओड्रोलोप ने कहा:"इस पुल की स्थापना के बाद हम बाहर जाने आने में बड़ी सुविधा मिल गयी है, दस मिनट से कम समय में हम ल्हासा शहर पहुंच सकते हैं। अब जब मुझे अवकाश मिलता है, तो अवश्य ही बस से घूमने ल्हासा शहर जाता हूं, इस से हमारे दैनिक जीवन में भी रंग भर गया है।"
ल्हासा शहर के सब से पहले आधुनिक पुल की हैसियत से ल्हासा बड़े पुल ने ल्हासा शहर के आर्थिक विकास में असाधारण योगदान दिया है। लेकिन आज यह दो पथों वाला बड़ा पुल दिन ब दिन बढ़ने वाले यातायात जरूरतों को पूरा करने में असक्षम हो गया है। इस ल्हासा बड़े पुल पर यातायात दबाव को कम करने के लिये संबंधित विभागों ने तीस करोड़ य्वान से अधिक पूजी लगाकर ल्हासा नदी के ऊपर 6 पथों वाला नाचिंग बड़ा पुल निर्मित कर दिया, चालू साल के नवम्बर में इस पुल का निर्माण पूरा हो गगा। नाचिन बड़े पुल परियोजना दल के तत्स्थलीय प्रतिनिधि वांग च्यानरोंग ने इस का परिचय देते हुए कहा:"नाचिन बड़ा पुल दूसरे क्षेत्रों और ल्हासा शहर के उपनगरों के यातायात के साथ जोड़ देगा और वह ल्हासा शहर के प्रमुख शहरी क्षेत्रों का एक महत्वपूर्ण संगठित भाग बन जायेगा। इस पुल के उद्घाटन के बाद पूर्वी ल्हासा शहरी आर्थिक विकास की यातायात रुकावटें दूर होगी, ल्हासा शहरी क्षेत्रों की रोड जाल की संरचना संपूर्ण होगी और ल्हासा शहर के आर्थिक व सामाजिक समन्वित विकास को बढावा मिलेगा।"
नाचिन बड़ा पुल ल्हासा नदी के ऊपर चौथे सीमेंट राजमार्ग पुल की हैसियत से प्रथम ल्हासा पुल के नाम से नामी हो गया। यह बड़ा पुल ल्हासा शहर के पूर्वी उपनगर में खड़ा है, उस की कुल लम्बाई 1.28 किलोमीटर है और चौड़ाई 33 मीटर है, 6 वाहन दोनों तरफ साथ साथ आ जा सकते हैं, वह तिब्बत में सब से बड़ा व चौड़ा राजमार्ग पुल का रुप लेगा, साथ ही वह ल्हासा शहरी क्षेत्रों की यातायात स्थिति को सुधारने के लिये मददगार सिद्ध होगा।
पिछले 60 सालों से अधिक समय में घाट से लकड़ी पुल तक, फिर दुहरे वाहन पथों वाले ल्हासा पुल से छै वाहन पथों वाले उच्च स्तरीय नाचिन पुल तक एक के बाद एक बड़ा पुल निर्मित हुए ही नहीं, वे एक से एक बढ़कर उच्च कोटि के हैं और एक से एक बढ़कर चौडे भी हैं, ये तीनों पुल छाईकोंगथांग टाऊनशिप के स्थानीय वासियों के जीवन में आये अभूतपूर्व बदलाव का प्रतिबिन्ब भी करते हैं।
बुजुर्ग ओड्रोलोप ने कहा कि तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति से पहले छाईकोंगथांग टाऊनशीप के भूदास शोचनीय जीवन बिताते थे, यहांतक कि उन्हें मोटे अनाज से बने चानपा नामक पकवान खाने को भी नसीब नहीं था। पर आज आधुनिक पुलों ने खेत और बाजार के बीच का फासला कम कर दिया है, व्यापक किसानों व चरवाहों और खुशहाल जीवन के बीच का फासला भी छोटा कर दिया है, लोग खुशहाल जीवन की ओर बढ़ाने पर आश्वस्त हैं। 2011 में छाईकोंगथांग टाऊनशिप के प्रति व्यक्ति के हिस्से में औसत पांच हजार चार सौ य्वान से अधिक आय प्राप्त हुई, जिस से वह एक विख्यात खुशहाल गांव के नाम से जाना जाने लगा। तिब्बती बुजुर्ग ओड्रोलोप ने कहा:"वर्तमान में हमारे टाऊनशिप में कुल 50 से अधिक ट्रक परिवहन करने में लग गये हैं, हर वर्ष रोजगार के लिये काफी ज्यादा स्थानीय लोग बाहर जाते हैं, इसलिये गांववासियों के पास पैसे ज्यादा हो गये हैं और जीवन का स्तर भी लगातार उन्नत हुआ है।"
बुजुर्ग ओड्रोलोप का आंगन तिब्बती वास्तु शैली से युक्त है, दो मजदूर आंगन में पार्किंग स्थल का निर्माण करने में व्यस्त हैं। बुजुर्ग ओड्रोलोप ने हमारे संवाददाता से कहा कि 6 साल पहले उन के परिवार ने अपने खर्चे पर दो सौ वर्गमीटर से अधिक विशाल भूमि पर अपना मकान बनवा दिये। इस वर्ष उन के परिवार ने फिर तीन लाख य्वान से अधिक महंगा ट्रक खरीद लिया , ताकि अपना दामाद इस ट्रक के जरिये परिवाहन का काम संभाल सके। इस की चर्चा करते हुए बुजुर्ग ओड्रोलोप का चेहरा एकदम खिल उठा:"मेरा बदन बहुत हृष्ट पुष्ट है, बेटे पोते हमारे साथ रहते हैं, हमारा जीवन बहुत आरामदेह और सुखदायक है।"
हर सुबह बुजुर्ग ओड्रोलोप अपने घर के पास एक पार्क में घूमने जाते हैं, मंडप के नीचे बैठकर ल्हासा नदी का स्वच्छ पानी और नदी के ऊपर निर्मित आधुनिक पुल देखने में बड़ा मजा लेते हैं। बुजुर्ग ओड्रोलोप की याद में यह बंजर भूमि पहले भूदास मालिक का जागीर था, पर पिछले दसियों सालों में इस विरान भूमि ने बुजर्ग ओड्रोलोप और गांववासियों के सुंदर घरों का रुप धारण कर लिया है।