11 जुलाई 2012 की सुबह नौ बजे हमारे संवाददाता इंटरव्यू लेने के लिये तिब्बत के लोका प्रिफेक्चर की छुनच्ये कांऊटी के लायू टाऊनशिप के त्वीपा गांव गये, यह एक बहुत साधारण स्थानीय ग्रामीण गांव है। जब हमारे संवाददाता गांव पहुंचे, तो अधिकतर गांववासी भेड़ बकरियों को चेराने के लिये चेरागाह चले गये हैं, मुर्गों व गुत्तों की भोंकने की आवाज को छोड़कर पूरा गांव एकदम शांत रहा है, नयी निर्मित पक्की सड़क पर भेड़ बकरियों का मल पड़ा हुआ है, यह सुबह सुबह चरागाह की ओर जाने वाले भेड़ बकरियों ने छोड़ा है, सड़क के दोनों किनारों पर तिब्बती वास्तु शैली युक्त दुमंजिली इमारतें सुढंग रुप से दिखाई देती हैं, कुछ आंगनों में कई भेड़ व गाएं अलग अलग तौर पर भेड़शाला व गौशाला में बंधे हुए हैं।
62 वर्षीय तिब्बती दादी मां सोलांगछुड्रोप खूब सजधज कर हमारे संवाददाता के इंतजार में हैं, गेस्ट रुम की मेज पर नाना प्रकार वाले विशेष स्थानीय पकवान रखे हुए हैं, गेस्ट रुम के प्रमुख स्थान पर स्वर्गीय अध्यक्ष माओ त्से तुंग की तस्वीर लटकी हुई है। दादी मां सोलांग का नया घर बड़ा रोशनीदार व हवादार है, इस नये घर में पूर्वज हाँल और गोदाम समेत कुल 13 कमरे हैं , उन्होंने विशेष तौर पर अपने घर के एक कमरे को खाली कर दुकान भी खोली। वे 2006 में तिब्बत में नयी आवास परियोजना को अमल में लाये जाने के बाद प्रथम खेप में नये मकानों रहने वाले किसानों व चरवाहों की गिनती में आती हैं।
2006 वर्ष के नये वर्ष दिवस के उपलक्ष में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की सरकार ने समूचे प्रदेश की विभिन्न जातियों के सामने गम्भीर रुप से यह वचन दिया है कि आगामी पांच वर्षों के भीतर ऐसे दो लाख 19 हजार 800 सौ किसानों व चरवाहों, जो सारे प्रदेश में काफी गरीब आवास स्थिति में रहने वालों का 80 प्रतिशत है, को सुरक्षित आरामदेह मकानों को उपलब्ध कराया जायेगा। यह ही प्रसिद्ध आवास परियोजना है। स्थानीय किसानों व चरवाहों के रहन सहन और अन्य रीति रिवाजों का समादर करने की पूर्वशर्त तले इस आवास परियोजना ने क्रमशः तम्बू और पशुओं के साथ सह निवास रहने की परम्परा को छोड़ दिया है।
दादी मां सोलांग ने हमारे संवाददाताओं को बताया कि 2006 से पहले उन का सारा परिवार सिर्फ एक 20 वर्गमीटर छोटे कमरे में रहता था , इतना ही नहीं, कई भेड़ों व गाय़ों का पालन भी इसी कमरे में किया जाता था, लेकिन अब उन्हें 360 वर्गमीटर विशाल नये मकान रहने को मिल गया है। उनका कहना है: "पहले सारा परिवार केवल एक छोटे से कमरे में रहता था, तत्काल में पशुओं का पालन एक भाग में किया जाता था, जबकि घरवाले दूसरे भाग में रहते थे , दैनिक जीवन में बड़ी दिक्कतें हुई थीं। पर आज उन का सारा परिवार नये मकान में रह गया है, जीवन बहुत आरामदेह व सुविधापूर्ण है। वे वर्तमान सुखी जीवन का आनन्द उठाने के लिये और दस साल जवान होना चाहती हैं।"
दादी मां सोलांग के गेस्ट रुम में अपनी नातिन चोका को मिले पुरस्कार प्रमाण पत्र लगा हुआ है। हालांकि चोका अब गांव में नहीं है, पर दादीमां सोलांग फिर भी उसके लिये अध्ययन के लिये एक कमरा रख दिया है। दादीमां सोलांग ने इस की चर्चा करते हुए कहा:"अब अपनी पोती बाहर के मिडिल स्कूल में पढ़ती है, छुट्टियों के दिन जब वह घर वापस आती है, तो घर में उसके लिये विशेष तौर पर एक कमरे का बंदोबस्त किया गया है, ताकि वह इसी कमरे में सुविधापूर्ण रुप से अध्ययन कर सके।"
दादी मां सोलांग अब बूढ़ी हो गयी हैं, खेती बाड़ी करने में असमर्थ हैं, आम दिनों में घर का काम संभालने के अतिरिक्त अपनी छोटी दुकान का संचालन भी करती हैं। उन्होंने हमारे संवाददाताओं से कहा कि अब उन का सारा घर नये रोशनीदार मकान में रह चुका है, जीवन भी बहुत आरामदेह है, उन की अनेक वर्षों की तमन्ना पूरी हो गयी है। अब वे अपने भविष्य पर और अनेक नयी आशाएं सेजोए हुए हैं। उनका कहना है:"अब मेरी एक छोटी सी तमन्ना यह है कि अपनी इस छोटी सी दुकान के विस्तार के लिये स्थानीय रियायती नीति के तहत धनराशि का समर्थन प्राप्त किया जाये।"
रिपोर्ट के अनुसार आवास परियोजना ने सरकार, तिब्बत को सहायता देने वाली इकाइयों, बैंकों और जन समुदाय पर निर्भर रहने के तौर तरीके के जरिये किसानों व चरवाहों की मकान बनाने की लागत को बड़ी हद तक कम कर दिया है। जिस से साधारण किसान व चरवाहे परिवारों से अत्यंत निर्धन परिवारों तक अलग अलग तौर पर दस हजार से 25 हजार य्वान तक की भत्ता दी गयी है।
छुंगच्ये कांऊटी में आवास परियोजना के जिम्मेदार इस कांऊटी की जन प्रतिनिधि सभा की स्थायी कमेटी के उपाध्यक्ष ला ड्रोप ने हमारे संवाददाताओं से कहा कि हरेक स्थानीय चरवाहा परिवार को आवास परियोजना की विशेष भत्ता मिलती है, अत्यंत निर्धन परिवारों को कुल मिलाकर 25 हजार से 50 हजार य्वान तक की भत्ता उपलब्ध होती है। उनका कहना है:"हमारे लोका प्रिफेक्चर की अधिकतर कांऊटियों में हरेक परिवार को दस हजार य्वान की आवास भत्ता बांटी गयी है। हमारी कांऊटी में कुल 7500 परिवार बसे हुए हैं, सहायता मापदंड के अनुसार हरेक परिवार सदस्य के हिस्से में औसतन पांच सौ य्वान का सब्सिडी प्राप्त है, यदि एक परिवार में पांच सदस्य हैं, तो इस परिवार को ठीक दस हजार य्वान की भत्ता मिलती है ।"
लोका प्रिफेक्चर ने आवास परियोजना के निर्माम में समूचे तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में काफी बखूबी अंजाम दिया है। इसीलिये हमारे संवाददाताओं ने लोका प्रिफेक्चर की प्रशासनिक जिम्मेदार यू फेइ के साथ एक विशेष साक्षात्कार किया। उन्होंने इस का परिचय देते हुए कहा कि आवास परियोजना ने स्थानीय किसानों व चरवाहों की रहने की स्थिति का बड़ी हद तक सुधार किया है, जिस से जन समुदाय की जीवन धारणा में बदलाव आया है, विकास और खुशहाल की उन की मसूबा और तीव्र हो गयी है। साथ ही बिजली, राजमार्गों व पानी संबंधी सहायक आधारभूत सुविधाएं भी संपूर्ण हो गयी हैं। आवास परियोजना के निर्माण में स्थानीय किसानों व चरवाहों की भागीदारी से किसानों की आय बढ़ गयी है, सिर्फ लोका प्रिफेक्चर के किसानों व चरवाहों ने बुनियादी संस्थापनों के निर्माण में तीस करोड़ य्वान से ज्यादा लाभ कमाया है।
लोका प्रिफेक्चर की आवास परियोजना का उल्लेख करते हुए यू फेइ ने कहा:"2006 में किसानों व चरवाहों की आवास परियोजना शुरु होने से लेकर चालू वर्ष के जून तक कुल चार अरब 19 करोड़ य्वान की धनराशि जुटाकर 68 हजार 242 किसान व चरवाहा परिवारों के लिये नये मकान बनाये गये हैं। 2012 के उत्तरार्द्ध से 2013 तक समूचा लोका प्रिफेक्चर बाकी तीन हजार 458 किसान व चरवाहा परिवारों को नये मकान उपलब्ध कराने और 49 प्रशासनिक गांवों के ग्रामीण वातावरण को सुधारने को संकल्पबद्ध है, ताकि जून 2013 के अंत से पहले समूचे प्रिफेक्चर के किसान व चरवाहा परिवार सुरक्षित, हवादार और आरामदेह नये मकानों में रह सके।"