"वह एक महा भिक्षु, अकादमिक मास्टर और मानवतावादी विचारक होने के साथ-साथ वह एक देशभक्त व्यक्ति भी थे, इतना ही नहीं वे तिब्बत में सामंती भूदास व्यवस्था का विरोध करते थे और उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का मुकाबला भी करते थे।"
यह कथन तिब्बत शास्त्र अनुसंधान केंद्र के शोधकर्ता तु योंगपिन द्वारा तिब्बती विद्वान व महाभिक्षु गेन्डुन चोंफेल का मूल्यांकन है। इस तिब्बती विद्वान के बारे में बाहरी दुनिया के लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन बहुत से अनुसंधानकर्ताओं की नज़र में वे 20वीं शताब्दी में तिब्बत के इतिहास में एक प्रसिद्ध विद्वान और महान विचारक थे।
तु योंगपिन ने वर्ष 1995 से गेन्डुन चोंफेल के बारे में अनुसंधान करना शुरू किया। उनके विचार में इस महान तिब्बती विद्वान पर अध्ययन व विवेचन करने में 20वीं शताब्दी में तिब्बत के इतिहास और तिब्बती जाति के अकादमिक व सांस्कृतिक इतिहास के साथ-साथ वैचारिक इतिहास पर अनुसंधान का व्यापक अहम महत्व है। उन्होंने कहा:"मुझे लगता है कि गेन्डुन चोंफेल के बारे में अध्ययन का महत्व उनके अकादमिक विरास को ग्रहण करने में होता है। साथ ही उनकी अकादमिक अध्ययन की परम्परा, वैज्ञानिक अनुसंधान के तरीके और मानवीय व सांस्कृतिक निर्देशन का विकास करना चाहिए। और उन की अकादमिक उपलब्धियों के आधार पर उनकी अध्यापन की शैली भी सीखना है। इनके अलावा, हमें उनकी क्रांतिकारी विचारधारा से भी सीखना चाहिए। वे सामाजिक प्रगति को रोकने वाली सामंती भूदास व्यवस्था का अंत करने में हमेशा अग्रसर रहे थे। हमें उनकी विचारधारा को ग्रहण कर आगे विकसित करना चाहिए। मेरे विचार में गेन्डुन चोंफेल पर अध्ययन करने का पूरा प्रासंगिक मूल्य होता है।"
वर्ष 1903 में गेन्डुन चोंफेल का जन्म आज के छिंगहाई प्रांत के ह्वांगनान प्रिफैक्चर की थोंगरन कांउटी में हुआ। उनके पिता तिब्बती बौद्ध धर्म के न्यिंग्मा संप्रदाय के तांत्रिक थे। गौरतलब है कि तांत्रिक तिब्बती बौद्ध धर्म न्यिंग्मा संप्रदाय के अहम धर्माचार्य है, वे भिक्षु के रूप में धार्मिक गविविधियों में भाग लेते हैं और आम लोगों की तरह शादी विवाह भी कर सकते हैं। तीन वर्ष की आयु में गेन्डुन चोंफेल को तिब्बत स्थित डोर्जेड्रा मठ के जीवित बुद्ध का अवतार चुना गया, इस तरह माता पिता ने उसे स्थानीय न्यिंग्मा संप्रदाय के मठ में पढ़ने के लिए भेजा। इसके बाद वे अपनी जन्मभूमि से बहुत दूर कानसू प्रांत के दक्षिण भाग में स्थित लाब्रांग मठ गए, यह मठ तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय के उच्चतम संस्थानों में से एक माना जाता है। लाब्रांग मठ में बौद्ध सूत्रों का अध्ययन करने के दौरान उन्होंने पांच साल में मध्य युग के समय में भारत में मशहूर दर्शनशास्त्र, हेतुविद्या के धर्माकीर्ति《प्रमाण》का गहरा अध्ययन किया था। मठ के दूसरे भिक्षुओं के साथ धार्मिक सूत्रों पर बहस में गेन्डुन चोंफेल अपनी प्रतिभा के बल पर बार-बार जीत लेते थे, इन भिक्षुओं में अनेक प्रसिद्ध भिक्षु भी थे। फुर्सत के समय गेन्डुन चोंफेल विदेशी पादरियों से अंग्रेज़ी भी सीखते थे। वर्ष 1929 में वे तिब्बत की राजधानी ल्हासा स्थित ड्रेपुंग मठ आकर कई महान आचार्यों से सूत्र सीखने लगे।
वर्ष 1934 में गेन्डुन चोंफेल भारत गए, वहां वे संस्कृत और अंग्रेज़ी सीखते थे। इस के बीच वे पाली भाषा सीखने के लिए श्रीलंका भी गए। भारत की यात्रा के दौरान गेन्डुन चोंफेल ने《भारत यात्रा में मेरा चिन्तन》समेत कई रचनाएं लिखीं, जो मशहूर भारतीय पत्रिका《मेलोंग》में प्रकाशित की गयी थीं। इसके अलावा उन्होंने तिब्बती भाषा में《कामसूत्र》संपादित किया और प्रसिद्ध बौद्ध सूत्र《धाम्मापद》को पाली भाषा से तिब्बती भाषा में अनुवादित किया। वर्ष 1945 में गेन्डुन चोंफेल स्वदेश लौटे और वे दक्षिण एशिया में कुल 12 साल रह रहे। यह समय उनके अकादमिक अनुसंधान का स्वर्ण काल था। इसकी चर्चा में चीनी तिब्बत शास्त्र अनुसंधान केंद्र के अनुसंधानकर्ता तू योंगपिन ने कहा:"एक अनुवादक के रूप में गेन्डुन चोंफेल ने चीन व भारत के बीच सांस्कृतिक आदान प्रदान के लिए भारी योगदान किया है। उन्होंने भारत के सुप्रसिद्ध रचनाओं मसलन्《रामायण》और《भगवद गीता》को संस्कृत से तिब्बती भाषा में अनुवादित किया। इसके अलावा उन्होंने तिब्बत के क्लासिक ग्रंथ《हरा इतिहास》और《प्रमाणावर्टिका》आदि तिब्बती भाषा की मशहूर रचनाओं का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया। उन्होंने अन्य अनेक रचनाओं का भी अनुवाद किया, जिससे चीन व भारत के बीच सांस्कृतिक आदान प्रदान और अधिक मज़बूत हो गया।"
अप्रैल, 1946 में तिब्बत की तत्कालीन स्थानीय काशा सरकार ने गेन्डुन चोंफेल को गिरफ़्तार कर लिया और वर्ष 1950 में वे रिहा हुए। जेल में गेन्डुन चोंफेल को यातनाएं दी गयीं, अगस्त 1951 में 48 वर्षीय गेन्डुन चोंफेल का ल्हासा में निधन हो गया।
तिब्बती शास्त्र अनुसंधान केंद्र के शोधकर्ता तू योंगपिन के विचार में गेन्डुन चोंफेल को तिब्बत व भारत के इतिहास, भाषा, धर्म, पुरातत्व, भूगोल और चिकित्सा आदि क्षेत्रों में गहरा ज्ञान प्राप्त हुआ था। उन्होंने बहुत सी पुस्तकें लिखीं और मानवीय ऐतिहासिक विचारधाराओं का अकादमिक अनुसंधान में प्रयोग किया। साथ ही तिब्बत व भारत के समाज, इतिहास व संस्कृति को लेकर वैज्ञानिक ढंग से सर्वेक्षण व अनुसंधान किया। इसके साथ ही तिब्बत शास्त्र के महागुरू के रूप में उन्होंने अकादमिक अनुसंधान की नई शैली बनाई। उन्होंने बौद्ध धर्म के ईश्वरवादी शास्त्र को मानवीय शास्त्र में बदलने में भारी योगदान भी किया।
तू योंगपिन ने बताया कि वर्ष 2012 चीनी तिब्बत शास्त्र जगत में गेन्डुन चोंफेल वर्ष मनाया जा रहा है। इसकी चर्चा में उन्होंने कहा:"वर्ष 2012 गेन्डुन चोंफेल वर्ष है। क्यों?क्योंकि चोंफेल की जीवन कहानी, अकादमिक ज्ञान, विचारधारा आदि लोगों को आकर्षित करते हैं, जिनका अध्ययन करने योग्य है। इसके साथ ही गेन्डुन चोंफेल इतिहासकार ही नहीं, भाषाविद भी थे। वे धर्मविद, कवि और चित्रकार भी थे। उनके द्वारा लिखे गए मशहूर आलेख《श्वेत इतिहास》आज तक तिब्बत शास्त्र और तिब्बती जाति के इतिहास व संस्कृति का अध्ययन करने वाली अनिवार्य कृति है।"
बताया जाता है कि गेन्डुन चोंफेल वर्ष के नाते इस वर्ष चीन में संबंधित अकादमिक संगोष्ठी आयोजित की जा रही है। तिब्बत शास्त्र पत्रिका में《गेन्डुन चोंफेल》से संबंधित विशेषांक प्रकाशित किया गया है । इसके अलावा, तिब्बत शास्त्र प्रकाशन गृह"गेन्डुन चोंफेल"से जुड़ी पुस्तक मालाएं प्रकाशित करेगा और तिब्बती संस्कृति संग्रहालय भी गेन्डुन चोंफेल के अकादमिक जीवन के बारे में प्रदर्शनी आयोजित करेगा।
गौरतलब है कि अगले वर्ष गेन्डुन चोंफेल की 110वीं जयंती होगी। इस मौके पर तिब्बत शास्त्र जगत की ओर से कई सांस्कृतिक कार्यक्रम चलाए जाएंगे, ताकि इस महान तिब्बती विचारक व धार्माचार्य को सम्मान दिया जा सके।