तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा शहर में हजार वर्ष पुरानी पाकोर सड़क सभी लोग जानते हैं, इसी पाकोर सड़क के उत्तरी सेक्शन पर स्थित नम्बर 15 छोटी दुकान को जानने वाले तो ज्यादा नहीं हैं। इस छोटी दुकान का नाम है श्यामोकापू, इस दुकान का संकेत बोर्ड लकड़ी से तैयार हुआ है, इस सफेद बोर्ड पर लाल शब्द अंकित हुए हैं , पर समय के चलते लाल शब्द का रंग फीका पड़ गया है। पाकोर सड़क पर कतारों में खड़ी अंगिनत दुकानों में यह मामली सी दुकान का इतिहास सौ वर्ष से अधिक पुरानी है ।
श्यामोकापू दुकान में कदम रखते ही लगभग चालीस मीटर बड़ी दुकान में विविधतापूर्ण बुद्ध मूर्तियां रखी हुई नजर आती हैं। हमारे संवाददाता ने पूरी दुकान को अपनी नजर दौड़ायी, तो उनकी निगाह पश्चिमी दीवार पर लगी एक तस्वीर पर पड़ी। इस दुकान के नेपाली मालिक रत्न कुमार तूलधर ने यह देखकर तुरंत ही तस्वीर के सामने कुशल तिब्बती भाषा में संवाददाता
से बताते हुए कहा:"यह मेरे परदादा बासुरांना का फोटो है, करीब 125 साल पहले वे घोड़े पर सवार होकर हिमालाया पर्वत को पार कर नेपाल से तिब्बत में व्यापार करने आये थे। क्योंकि उस समय स्थानीय लोग उन का नाम याद नहीं रख पाते थे, सिर्फ यह देखा कि वे हमेशा नेपाली शैली वाली सफेद टोपी पहने हुए थे, अंत में उन्हें श्यामोकापू पुकारने लगे, तिब्बती भाषा में श्यामोकापू का अर्थ है सफेद टोपी। बाद में धीरे धीरे श्यामोकापू इसी दुकान का नाम बन गया।"
तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति से पहले पाकोर सड़क पर अधिकतर विदेशी व्यापारी नेपाल से आये हुए थे, उस समय तिब्बत बहुत पिछड़ा व गरीब था, यातायात अवरुद्ध भी था, माल मुख्यतः लोगों व घोड़ों के माध्यम से भारत, नेपाल और भूटान से लादे गये थे, इसलिये दुकानों की संख्या कम ही नहीं, मालों की किस्में भी ज्यादा नहीं थीं।
पिछले सौ सालों से अधिक समय में श्यामोकापू के ढांचे में कोई मूल बदलाव नहीं आया, लेकिन बाजारी मांगों में हुए परिवर्तन के साथ साथ मालों की किस्में लगातार बदली जाती है। नेपाली व्यापारी रत्न कुमार तूलधर ने कहा:"इस दुकान का इतिहास कोई 125 साल पुराना है, मेरे पू्र्वजों ने बुद्ध मूतियों जैसी चीजों के बजाये मुख्य रुप से खाद्य पदार्थ और वस्त्र आदि मालों का व्यापार किया। पहले तिब्बती वासियों को खाने पीने और पहनने वाला चीजों का अभाव था, इसे मद्देनजर मेरे पूर्वज इन मालों को इसी दुकान में लाकर बेचते थे, उस समय ल्हासा शहर का हरेक परिवार माल खरीदने में अकसर लम्बी लाइन में खड़ा होकर इंतजार करता था।"
अठहत्तर वर्षीय बुजुर्ग इशिलोड्रु अपनी छोटी उम्र से ही पाकोर सड़क पर रहते आये हैं, उन्होंने आज तक भी 1916 में उतारी गयी पाकोर सड़क की पुरानी दस्वीर सुरक्षित रखी है। उस समय की याद करते हुए बुज़ुर्ग इशिलोड्रु ने कहा:"अतीत में पाकोर सड़क का मिट्टी से तैयार मार्ग टेढीमेढ़ी पड़ा था। 59 साल पहले ल्हासा शहर में सिर्फ एक मिट्टी से तैयार कच्चा मार्ग था, पूरे शहर में किसी पक्के मार्ग का नामोनिशान भी न था, साथ ही यह मार्ग केवल यात्रियों व पशुओं के लिये चलने लायक था, वाहनों के लिये उस पर चलना मुश्किल था। पाकोर सड़क पर पहले इतनी चहल पहल नजर नहीं आती और इतनी विविधतापूर्ण चीजें भी नहीं बेची जाती। मेरे बचपन में पाकोर सड़क पर जो मोमबत्तियां, माचिस, सिगरेड और शराब बेची जाती थीं, वे सब के सब विदेशों से लाये गये थे।"
रत्न कुमार तूलधर श्यामोकापू का चौथी पीढ़ी का मालिक है। असुविधापूर्ण यातायात की वजह से रत्न के पूर्वजों के मालों का परिवहन मुख्यतः मानवों व घोड़ों पर निर्भर था, जिस से हद से ज्यादा मानवीय व भौतिक संसाधनों व समय की बरबादी हुई। पहले की तुलना में वर्तमान यातायात व परिवहन स्थिति बड़ी सुधर गयी है और व्यापार करना भी बहुत सुविधाजनक हो गयी है। रत्न कुमार तूलधर ने कहा:"मेरे दादा जी और पिता जी पहले घोड़ों के भरोसे माल काठमांडू से बेचने के लिये यहां लाये, उस जमाने में यातायात स्थिति बहुत खराब थी, ल्हासा से काठमांडू पहुंचने में 25 दिन लगते थे। पर आज यातायात बहुत सुविधापूर्ण है, ल्हासा से काठमांडू पहुंचने में सिर्फ दो तीन दिन का समय लग जाता है। अब लम्बे चौड़े राजमार्ग जाल की तरह एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, व्यापार करना भी बेहद आसान हो गया है, हम चीन की विशेषताओं वाली वस्तुएं नेपाल में ले जाते हैं, फिर नेपाल की विशेषताओं वाले माल तिब्बत लेकर बेचते हैं।"
पूर्वजों द्वारा छोड़ी गयी श्यामोकापू दुकान भी विरासत के रुप में लगातार विकसित हो गयी है, बाजार की बदलती मांग के अनुसार आज की श्यामोकापू दुकान में मुख्यतः नेपाली बुद्ध मूर्तियां बेची जाती हैं। रत्न ने बड़े गर्व से कहा कि श्यामोकापू दुकान पाकोर सड़क पर बुद्ध मूर्तियां बेचने वाली प्रथम दुकान ही है। वे नेपाल के सब से बढ़िया बुद्ध मूर्ति निर्मित कारखाने से मूर्तियां खरीदकर ल्हासा में बेचते हैं। पिछले अनेक सालों में स्थापित प्रतिष्ठा की वजह से श्यामोकापू अब पाकोर सड़क पर बुद्ध मूर्तियां बेचने वाली सब से बढ़िया दुकानों में से एक मानी जाती है। रत्न कुमार तूलधर ने कहा:"अब लोगों को खाने व कपड़े पहनने में कोई दिक्कत नहीं है, इसलिये हम ने इस दुकान में मुख्य रुप से बुद्ध मूर्तियों जैसी वस्तुएं बेचने का फैसला कर लिया है। हमारी यह दुकान पाकोर सड़क पर बुद्ध मूर्तियां बेचने वाली प्रथम दुकान ही है।"
चालू वर्ष में 55 वर्षीय रत्न कुमार तूलधर ल्हासा में व्यापार किय हुए 27 साल हो गये हैं, यह तिब्बती भाषा खूब जानने वाला नेपाली बिलकुल पुराना ल्हासा वासी बन गया है। उनका कहना है:"मेरे ल्हासा आने के समय बिजली व नल पानी की सप्लाई नहीं थी, मार्ग भी ऊबड़ खाबड़ था, चारों ओर बहुत गंदी पड़ी थी। पाकोर सड़क पर इतने ज्यादा स्टाल नहीं थे, बाहर से आने वाले लोगों की संख्या और अधिक कम हो गयी। आज पाकोर सड़क और ल्हासा शहर का रात्रि दृश्य जगमगाते हए दिखाई देता है, लम्बे चौड़े राजमार्ग बेहद समतल हैं, वातावरण व स्वास्थ्य भी बहुत साफ सुथरा है।"
पाकोर सड़क तो बड़ी नहीं है, पर पिछले 60 सालों के विकास के जरिये वह बाहरी दुनिया से घनिष्ठ रुप से जुड़ी हुई है, साथ ही वह समूचे तिब्बत का सबसे बड़ा माल वितरण केंद्र और रमणीय पर्यटन स्थल भी है, अधिकांश देशी विदेशी यात्री तिब्बत में पाकोर सड़क के दौरे पर जरुर जाते हैं। अब पाकोर और ल्हासा शहर मजबूत जातीय विशेषताओं की नयी सूरत में कोने कोने से आने वाले पर्यटकों का स्वागत करने में व्यस्त हैं, उन्होंने विशाल पर्यटकों पर गहरी छाप छोड़ रखी है, जिससे वे पर्यटकों का पवित्र स्थल भी बन गये हैं।
हांगचओ रहने वाला श्री चू दूसरी बार तिब्बत के दौरे पर आय़ा है, उसने कहा कि छै साल पहले की तुलना में ल्हासा में बड़ा परिवर्तन हुआ है। श्री चू का कहना है:"मुझे लगता है कि अब यहां पर स्टाल और भीड़ें पहले से कहीं ज्यादा हो गयी हैं, शहरी निर्माण में भी बड़ा बदलाव आया है, जातीय माहौल भी अधिकाधिक सघन हो गया है, मुझे ल्हासा और तिब्बत से लगाव है।"
महिला पर्यटक चंग होनान प्रांत के लो यांग शहर से आयी है, पाकोर सड़क पर रंगारंग विविधतापूर्ण तिब्बती विशेताओं वाली वस्तुएं देखकर वह एकदम चमत्कृत रह गयी। सुश्री चंग ने कहा:"यह सड़क बहुत बढ़िया है, तिब्बत की विशेषताओं से युक्त है, बहुत ज्यादा चीजें हमारे वहां नहीं मिलती हैं, देखिये, मैंने इतनी ज्यादा चीजों को चुन लिया है, अपनी पसंदीदा चीजें खरीदकर वापस ले जाती हूं। ल्हासा शहर अच्छा है, साफ सुथरा है, सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था भी बेहतर है।"
कुछ लोगों का कहना है कि पाकोर सड़क पर घूमने के बिना ल्हासा न आने के बराबर है। इस दो किलोमीटर से कम लम्बे रोड पर 1410 से अधिक व्यापारी बूथ उपलब्ध हुए हैं, भारत व नेपाल आदि देशों और देश के विभिन्न क्षेत्रों से आये तिब्बती, हान और हुई जाति के व्यापारी यहां पर जमे हुए हैं, जो एक लघु अंतर्राष्ट्रीय बाजार मालूम पड़ता हो। पेइचिंग की वांग फू चिंग सड़क और शांगहाई के नानचिंग रोड जैसी पाकोर सड़क ल्हासा शहर के प्रतीकात्मक संकेतों में से एक बन गयी है।
यदि श्यामोकापू नामक दुकान को पाकोर सड़क का एक झरोखा कहा जाये, तो पाकोर सड़क ल्हासा शहर और ल्हासा शहर समूचे तिब्बत का झरोखा ही है।
पिछले सौ सालों से अधिक समय में श्यामोकापू दुकान पाकोर सड़क के साथ आगे बढ़ने के चलते पाकोर सड़क व ल्हासा में हुए परिवर्तनों का साक्षी भी है। जी हां, अतीत में ऐसा हुआ था, अब ऐसा हो रहा है, आइंदे वह अवश्य ही पाकोर सड़क के साथ समान रुप से विकसित होकर ही रहेगा और भावी परिवर्तनों का साक्षा होगा।
श्यामोकापू के दुकानदार रत्न कुमार तूलधर ने कहा कि अब ल्हासा की स्थिति स्थिर है, अर्थव्यवस्था का तेजी से विकास हो रहा है, व्यापार भी जोरों पर है, वे आइंदे श्यामोकापू इस सौ साल पुरानी दुकान को ल्हासा शहर की पाकोर सड़क पर अच्छी तरह चलाने को कृतसंकल्प हैं। उन्होंने कहा:"भारत और अमरीका में हमारी शाखाएं खोली गयी है , लेकिन हम ल्हासा में यह दुकान नहीं छोड़ सकते , क्योंकि इस स्थल के प्रति हमारी गहरी भावनाएं व आस्थाएं संजोए हुए हैं।"