जैसा कि हम जानते हैं कि तिब्बत का विशेष दर्शनीय प्राकृतिक दृश्य हर वर्ष में दुनिया के भिन्न भिन्न क्षेत्रों के अंगिनत पर्यटकों को मोहित कर लेता है, जबकि बहुत ज्यादा विदेशी पर्यटकों ने नाना प्रकार वाले कारणों की वजह से विश्व छत के नाम से नामी इस विश्वविख्यात स्थल के साथ अटूट रिश्ता स्थापित कर दिया और यहां पर दीर्घकालिक रुप से रहने, काम करने और अपनी दूसरी जन्मभूमि बनाने का फैसला कर लिया है।
बहुत ज्यादा पर्यटकों की तरह वे तिब्बत के सौंदर्य और रहस्यता की वजह से ल्हासा के दौरे पर आयीं। पर बड़ी तादाद में पर्यटकों से अलग है कि उन्हें तिब्बत में काम किये हुए 24 साल हो गये हैं। यहां रहने का कारण यहां की विशेष पहचान के बजाये उन के स्थानीय छात्र ही है। वे हैं तिब्बती सामाजिक विज्ञान अकादमी की अमरीकी अध्यापिका शारोंग ही। उन का कहना है कि हालांकि उन की शादी कभी भी नहीं हुई, पर उन के बहुत ज्यादा बच्चे हैं, ये सभी बच्चे अपने छात्र ही हैं।
"मेरे तिब्बती छात्र अपने जीवन का एक अभिन्न अंग बन गये हैं, हालांकि मेरी शादी नहीं हुई और कोई बच्चा भी नहीं है, पर यहां पर मैं कभी भी अकेलापन महसूस नहीं करती। मैं कभी कभी पूरे दिन उन के साथ पिकनिक करती या चाय घर में गपशप मारती, हम अकसर महत्वपूर्ण बहस या इंटरएक्टिव भी करते हैं। क्या आप को मालूम है कि उन्हें जीवन का आनन्द उठाना खूब आता है, यह एक बहुत खूब सूरत बात है।"
अध्यापिका शारोंन ने कहा कि वे अपने हरेक छात्र को अपना लाल समझती हैं। वे उन के लिये प्रयास करने में बहुत खुश हैं और उम्मीद करती है कि वे अपना सपना साकार बना लेंगे।
"मैं उन के लिये एक के बाद एक पाठ्यक्रम तैयार करने को तैयार हूं और चाहती हूं कि वे अपना एक एक सपना साकार बनाने में सफल हों । मेरे तीन छात्र अब विदेशों में पीएचडी कर रहे हैं, अन्य बहुत ज्यादा छात्र विदेशों में मास्टर के लिये शोध कर रहे हैं, इस पर मैं बहुत संतुष्ट हूं। मैं अकसर उन के साथ मजाक उड़ाते हुए कहा कहती हूं कि आप लोगों को मेरा नाम अपने उपाधि प्रमाण पत्र पर लिखना चाहिये, क्योंकि मैंने आप लोगों के लिये बहुत ज्यादा किये हैं। उन्हें देखकर सचमुच बहुत संतुष्ट हूं।"
शारोंग आम माताओं की ही तरह अपने बच्चों की सफलता पर गर्व महसूस करतीं ही नहीं, बल्कि उन पर बहुत चिन्तित भी हैं। वे खूब जानती हैं कि चीनी और पश्चिमी संस्कृतियों में बड़ा अंतर मौजूद है, साथ ही ऊंचाई स्थित तिब्बत की जीवन गति पश्चिमी शहरीय जीवन से एकदम अलग भी है। अतः उन्हें बड़ी चिन्ता है कि अपने छात्र विदेशों में पढ़कर लौटने के बाद तिब्बती जीवन के अनुकूल न हों।
"जब वे पढ़ने के बाद विदेशों से तिब्बत लौट आते हैं, तो मैं इस बात पर काफी चिन्तित हूं कि कहीं वे यहां की जीवन गति के लिये अनुकूल न हों। विदेशों में उन्हें विविध विषयों का अध्यायन करने या बड़ी तादाद में पुस्तकें पढ़ने और निबंध लिखने जैसे बहुत ज्यादा अध्ययन कार्य करने की जरुरत है, जबकि वापस लौटने के बाद उन के लिये सब से बड़ी चुनौति है यहां की काफी सुस्त जीवन स्थिति, मुझे चिन्ता है कि वे विदेशों में संजीदगी के साथ अध्ययन करने की भावना खो बैठें।"
पर उन के छात्रों ने विदेशों से वापस लौटने के बाद अपने कार्य क्षेत्र में जो उल्लेखनीय उपलब्ध प्राप्त की है, उसे देखकर शारोंग बेहद निश्चिंत हो गयी हैं। आज उन के तीन छात्रों ने विदेशों में डाक्टर की उपाधि पाकर तिब्बत सामाजिक वैज्ञानिक अकादमी में अपना स्थान बना लिया है और अपने अनुकूल कार्य गति भी खोज निकाली है। शारोंग ल्हासा इसी पठारीय शहर के जीवन का बहुत आराम से आनन्द उठाते हैं। हर सप्ताहांत में वे अवश्य ही ल्हासा के आसपास पर्वत का पर्वतारोहण करने जाती हैं।
"मुझे प्रकृति से बेहद लगाव है, यह ही मेरा यहां बसने का निर्णय लेने का एक कारण है। हर शनिवार को मैं ल्हासा के आसपास ऊंचे पर्वत पर चढ़कर ताजे फूलों के फोटो खींचने में अत्यंत मस्त हूं, इसी वक्त शहर की हलचल भूल जाती हूं। मेरे ख्याल से दुनिया में कोई आनन्दमय समय उपलब्ध नहीं है, जो पर्वत की चोटी पर खड़ा होकर समूचा ल्हासा आंखें भरकर देखा जाता है। गत गर्मियों में मैंने 1987 व 1988 में ड्रेपोंग मठ के ऊपर खींचे गये ल्हासा शहर के फोटो गौर से देखे, फिर मैंने उसी स्थान पर खड़ी होकर ल्हासा शहर के और कई फोटो खींच लिये, इन फोटों से मुझे पता चला कि पूरे ल्हासा शहर में वाकई बड़ा परिवर्तन हुआ है।"
शहर का विकास हो रहा है, छात्र परिपक्व बनते जा रहे हैं, शारोंग को तिब्बत में बसे हुए 24 वर्ष हो गये हैं, इतने लम्बे समय में ल्हासा और हरेक छात्र में थोड़ा बहुत परिवर्तन उन के पास हुआ है और उन के जीवन से भी जा मिला है, जिस से उन के जीवन काल में सब से महत्वपूर्ण तिब्बती रिश्ता बन गया।