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पर्यावरण संरक्षण तिब्बत में
2012-08-30 12:40:07

लालू दलदल राष्ट्रीय दर्जे वाला प्राकृतिक संरक्षित क्षेत्र तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा के उत्तर पश्चिम में स्थित है। यदि यहां पर आप खड़े होकर नजर दौड़ाये, तो अपार हरियाली दूर क्षेत्र पर अवस्थित पर्वत की तलहटी तक फैली हुई है। फिर गौर से देखे, तो एक नीला व्याध पतंग चुपचाप से रीड के पत्ते पर पड़ा हुआ है, जबकि झुंट में झुंड जंगल बतख पानी में क्रिड़ाएं करते हुए दिखाई दे रहे हैं। ठंडक हवा लोगों को दोपहर के बाद ल्हासा की तेज गर्मी भुला देती है। ठीक यहां पर तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के वातावरण संरक्षण ब्यूरो के प्रधान चांग युंग त्से ने हमारे संवाददाता के साथ इंटरव्यू दिया।

लालू दलदल को जुलाई 2005 में राष्ट्रीय स्तरीय प्राकृतिक संरक्षित क्षेत्र की स्वीकृति मिली है, इस दलदल का कुल क्षेत्रफल 12 .3 वर्गकिलोमीटर बड़ा है। चांग युंग त्से की नजर में यदि पोताला महल ल्हासा का सांस्कृतिक व ऐतिहासिक कार्ड माना जाये, तो लालू दलदल इसी शहर का वातावरण संरक्षित व प्राकृतिक कार्ड ही है। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के वातावरण संरक्षण ब्यूरो के प्रधान चांग युंग त्से ने कहा:"शहर में जो इतना विशाल क्षेत्रफल वाला प्राकृतिक दलदल मौजूद है, वह सारी दुनिया में देखने को बहुत कम मिलता है । इस दलदल की मौजूदगी से दो प्रत्यक्ष प्रभाव पैदा हुए हैं, एक है आक्सीजन बढ़ जाता है, क्योंकि यहां पर विविधतापूर्ण वनस्पतियां उगी हुई हैं, जो ताजा वातावरण बनाये रखने के लिये मददगार है। दूसरा है कि विशाल जलीय सहत ल्हासा शहर के वायु को नमी बरकरार रखती है। ल्हासा का मौसम काफी खुश्क है, यदि यह दलदल नहीं होता, तो ल्हासा का अस्तित्व वातावरण काफी खराब होता।"

लालू दलदल ने न सिर्फ ल्हासा शहर के जलवायु को सुधार दिया है, बल्कि काले गर्दन सारस जैसे कुछ दुर्लभ जंगली जीव जंतुओं व जानवरों का निवास स्थान भी है, वह स्थानीय नदियों के पानी स्तर व गुणवत्ता समन्वित करने में सकारात्मक प्रभाव डालता है। इसलिये दलदल पृथ्वी का गुर्दा कहलाया जाता है, साथ ही वह जंगल, समुद्र के साथ दुनिया की तीन बड़े पारिस्थितिकी तंत्र भी माना जाता है। 2003 में हुई प्रथम राष्ट्रीय दलदल गणना के अनुसार तिब्बत में कुल दलदल क्षेत्रफल 60 लाख 40 हजार हैक्टर तक पहुंच गया है, जो समूचे देश के दलदल क्षेत्रफल का दस प्रतिशत वनकर अव्वल स्थान पर है। पर चांग युंग त्से ने स्पष्टतः मान लिया है कि दलदल की संरक्षण कोई आसान काम नहीं है। लालू दलदल को ही ले लीजिये, 1998 में यहां का करीब आधा भाग आसपास के किसानों के कब्जे में है , कुछ किसान यहां पर सब्जी उगाते थे, अन्य कुछ यहां पर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिये घुड सवार परियोजना भी करने लगे, यहां तक कि पर्वत की उत्तरी ढलान के पास 20 से ज्यादा पत्थर खदान भी लगाये गये। मुआवजा और सलाह के माध्यम से स्थानीय वासी कदम ब कदम अपना तात्कालिक हित को छोड़कर दलदल की भूमिका समझने लगे हैं। पिछले सात साल के निर्माण व प्रबंधन के जरिये 2005 में लालू दलदल राष्ट्रीय दर्जे वाले प्राकृतिक संरक्षित क्षेत्र का रुप दिया गया है।

ल्हासा शहर में रिपोर्ट बटोरने के दौरान हमारे संवाददाताओं को स्पष्टतः महसूस हुआ है कि यहां के निवासी पर्यावरण संरक्षण के प्रति बेहद जागृत हुए हैं। सड़कों पर बहुत कम वे लोग देखने को मिलते हैं, जो प्लास्टिक बैग लेकर चल जाते हैं। डिपार्टमेंट स्टोरों व सुपर बाजारों में ग्राहकों को मुफ्त में वातावरण संरक्षण बैग मिलते हैं। प्रसिद्ध पाकोर सड़क पर दुकानदार आम तौर पर कोई शाँपिंग बैग न देते ही नहीं , ग्राहकों को माल अपने बैग में रखने की सलाह भी देते हैं। यह ल्हासा शहर में 2005 वर्ष से लागू प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध आदेश से जुड़ा हुआ है, जबकि यह प्रतिबंध आदेश देशव्यापी प्रतिबंध आदेश से तीन साल पहले है। यू थो रोड पर एक स्थानीय वस्तुओं की दुकान के दुकानदार चाओ इंग श्वो ने हमारे संवाददाताओं से इस का परिचय देते हुए कहा:"इसी प्रकार वाले शाँपिंग बैग को प्रयोग किये हुए दसेक साल हो गये हैं। हम प्लास्टिक बैग के बजाये शाँपिंग बैग मुफ्त में मुहैया करते हैं। इसी प्रकार वाला बैग सुविधापूर्ण ही नहीं, उसका बार बार प्रयोग करने लायक भी हैं। पर प्लास्टिक बैग एक बार प्रयोग करने के बाद फेंका जाता है। मैं खुद भी शांपिंग बैग लेकर सुपर बाजार जाता हूं।"

बेशक, तिब्बत में सभी लोग वातावरण संरक्षण के प्रति इतना जागृत नहीं हैं। कुछ लोग वातावरण संरक्षण व अपने आप के हित से ठीक से नहीं निपट पाते हैं। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के वातावरण संरक्षण ब्यूरो के प्रधान चांग यूं त्से पुंगनाचांगपू नदी में गोल्ड रश का दृश्य भूला नहीं सकते। यह 2004 वर्ष की बात है कि पुंगनाचांगपू नदी के 18.5 किलोमीटर लम्बे एक सेक्शन में दो हजार से अधिक लोग और सैकड़ों नाव गोल्ड रश करने में लगे हुए थे, जिस से नदी के तटों व जल मार्ग को गम्भीर रुप से क्षति हुई है। सलाह देने से कोई फायदा न होने की हालत में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की सरकार ने 2006 के नव वर्ष के अवसर पर तमाम गोल्ड रश उद्यमों को बंद करने का फैसला कर लिया। इसी बीच वातावरण संरक्षण को बखूबी अंजाम देने के लिये तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की सरकार ने ताप बिजली व कागज निर्माण जैसे ऊंची खपत व दूषण वाले उद्यमों का विकास न करने की पेशकश की।

तिब्बत में जोरशोर से पन बिजली के विकास पर बाहरी शंका की चर्चा में चांग युंग त्से का मानना है कि अब तिब्बत में बिजली का सख्त अभाव है, जबकि जल ऊर्जा अपना श्रेष्ठ सन्साधन ही है, उसका अच्छी तरह प्रयोग करना चाहिये, जिस से क्रमशः बिजली की पर्याप्त आपूर्ति की जाय़ेगी। चांग युंग त्से ने कहा:"मैं आप को एक उदाहरण देता हूं। वर्तमान समूचे तिब्बत में कुल जनरेटर क्षमता दस लाख किलोवाट मात्र ही है, पर तिब्बत में जल ऊर्जा का सैद्धांतिक भंडारण 20 करोड़ किलोवाट है, जिस के 14 करोड़ किलोवाट का तकनीकी विकास करने लायक है, जरा देखिये, 14 करोड़ और दस लाख के बीच क्या फर्क है।"

चांग युंग त्से ने यह भी कहा कि तिब्बत पन बिजली का अंधाधुंध विकास नहीं करता, क्योंकि तिब्बत का पारिस्थितिकी वातावरण अभी भी काफी कमजोर है, वातावरण संरक्षण को प्रधानता पर देना अत्यावश्यक है।

फरवरी 2009 में चीनी राज्य परिषद ने तिब्बती पारिस्थितिकी सुरक्षा अवरोध संरक्षण और निर्माण योजना ( 2008-2030) पारित की और यह पेश किया कि पांच पंच वर्षीय योजनाओं के दौरान 15 अरब 50 करोड़ य्वान लगाकर मूल रुप से तिब्बत के पारिस्थितिकी सुरक्षा अवरोध की स्थापना की जायेगी , ताकि तिब्बत का पारिस्थितिकी तंत्र बिनाइन चक्रीय स्थिति का रुप ले सके। पारिस्थितिकी सुरक्षा अवरोध बहुत ज्यादा लोगों के लिये एक अपरिचित अवधारणा ही है। तिब्बत किस कारण से समूचे देश का पारिस्थितिकी अवरोध बनता है। सर्वप्रथम तिब्बत छिंगहाई तिब्बत पठार का प्रमुख संगठित भाग है, उस का क्षेत्रफल 12 लाख से अधिक वर्गकिलोमीटर बड़ा है, और तो और यह स्थल विश्व में सब से ज्यादा हिम नदियों, बड़े क्षेत्रफल वाली झीलों और नद नदियों का उद्गम क्षेत्र ही है, जल स्रोतों की कुल मात्रा और पन बिजली संसाधन का सैद्धांतिक भंडारण समूचे चीन में प्रथम स्थान पर है। दूसरी तरफ तिब्बती पारिस्थितिकी तंत्र की किस्में विशेष और विविध हैं, जंगली जानवरों व वनस्पतियों की किस्में भी विविधतापूर्ण हैं , यहां पर 39 किस्मों वाली राष्ट्रीय प्रमुख संरक्षित जंगली वनस्पति और 125 किस्मों वाले राष्ट्रीय प्रमुख संरक्षित जंगली जानवर पाये जाते हैं। तीसरी तरफ तिब्बत ने अपने विशेष जलवायु, भौगिलिक स्थान और विविध पारिस्थितिकी तंत्रव समृद्ध जीव संसाधन की वजह से एशिया, यहां तक कि उत्तरी गोलार्ध के जलवायु परिवर्तन के नियामक, पठारीय पारिस्थितिकी तंत्र , जैव विविधता और आसपास क्षेत्र के पारिस्थितिकी संतुलन को बनाये रखने के अहम अवरोध का रुप ले लिया है। चांग युंग त्से ने इस का परिचय देते हुए कहा:"यदि हिमालाया पर्तव न होता, तो यहां का हरा भरा व समृद्धिशाली नजारा नजर नहीं आता, क्योंकि अफ्रीका में यहां के बराबर अक्षांश पर स्थित क्षेत्र रेगिस्तान ही है। ठीक ही छिंग हाई तिब्बत पठार से ही हमारे देश में हिन्द महा सागर और प्रशांत महा सागर की गर्म व नम एयरफ्लो साथ साथ मौजूद है, इसी विशेष जलवायु से यहां का हरा भरा खुशहाली दृश्य बना है।"

चांग युंग त्से ने अपनी कुछ चिन्ताएं भी जतायीं। भूमंडलीय जलवायु परिवर्तन तिब्बत के वातावरण पर प्रभाव डाल रहा है, हिम नदियों का पिघलना और बढ़ती बर्फ लाइन सब से अच्छा उदाहरण है। यदि तिब्बत के वातावरण का संरक्षण चांग युंग त्से जैसी तिब्बती जनता का दायित्व कहा जाए, तो सारी पृथ्वी के आम वातावरण का संरक्षण सारी दुनिया की जनता का समान मिशन जरुर ही है। अतः आइये, हम अपनी संतानों को एक साफ सुथरा तिब्बत और स्वच्छ भूगोल छोड़ने के लिये छोटी सी बातों से शुरु करें और प्लास्टिक बैग का प्रयोग न करें।

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