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तिब्बत के शिकाजे के ब्लाइंड स्कूल में कनाडियन नर्स माइक
2012-08-25 20:02:02

तिब्बत के शिकाजे प्रिफेक्चर के पियेन शुंग टाऊशिप में सीमा रहित ब्रेल संगठन द्वारा स्थापित नेत्रहीन स्कूल है। इस स्कूल में एक कनाडियन बुजुर्ग को काम किये हुए 6 साल हो गये हैं, उन्होंने अपने आप को इस नेत्रहीन स्कूल का नर्स कहा।

शिकाजे नेत्रहीन स्कूल में कुल 58 छात्र पढ़ते हैं, जिन में अधिकतर छात्र अपाहिज ही हैं। इस के अलावा माइक समेत कुल 21 कर्मचारी भी हैं। योजनानुसार माइक मुख्यतः सीमा रहित ब्रेल संगठन के अंतर्राष्ट्रीय समन्वयक की हैसियत से नेत्रहीन स्कूल के कोष का प्रबंधन संभालते हैं, लेकिन अधिकतर समय में वे इसी स्कूल के छात्रों की सेवा में नर्स और अध्यापक का काम कर लेते हैं।

"मैं नेत्रहीन छात्रों को बागवानी ज्ञान पढ़ाता हूं, हमने नेत्रहीन छात्रों के लिये कुछ शिक्षण विधियों का सृजन किया है। जी हां, यह स्वाभाविक ही है कि मैं नेत्रहीन छात्रों को अंग्रेजी भाषा भी पढ़ाता हूं।"

चालू वर्ष में 68 वर्षीय माइक कनाडा से आये हैं , हालांकि उन के बाल पक्के हो गये हैं, पर वे फिर भी बहुत हृष्ट पुष्ट और चतुर दिखाई देते हैं। उन्होंने मुस्कराते हुए अपने जीवन की चर्चा में कहा कि वे अपनी सोलह उम्र में कनाडा के एक विश्वविद्यालय में कृषि सीखने भर्ती हुए थे, फिर वे क्रमशः अमरीका, लेबनान, बंगलादेश और भारत आदि देशों में अध्ययन व काम करने गये थे। 1996 में जब वे प्रथम बार तिब्बत के दौरे पर गये, तो तिब्बत की विशेष पहचान ने एकदम उन्हें अपनी ओर खिंच लिया है। दूसरे वर्ष उन्होंने फिर तिब्बत आकर स्थिर रुप से रहने का निर्णय कर लिया। 2005 में वे सीमा रहित ब्रेल संगठन के निमंत्रण पर बागवानी व अंग्रेजी भाषा पढाने के लिये शिकाजे नेत्रहीन स्कूल में आ गये।

आम दिनों में माइक ज्यादा बोलने के आदी नहीं हैं, पर वे नेत्रहीन स्कूल का उल्लेख करते ही बेरोकटोक रुप से कहने लगे। उन्होंने इस का परिचय देते हुए कहा कि नेत्रहीन स्कूल में बड़ी उम्र वाले छात्र कुछ स्वेटर की बुनाई , पनीर व रोटी के प्रोसेसिंग, बागवानी कला, संगीत और मालिश जैसे श्रम कौशल सीख लेते हैं। माइक ने कहा कि इस प्रशिक्षण का मुख्य मकसद है कि इन बाल बच्चों को आत्मसम्मान की खोज करने और परिवार व समाज की मान्यता प्राप्त करने में मदद दी जा सके।

"हमें उम्मीद है कि वे सब से पहले आत्मसम्मान की खोज करने में सफल होंगे, जब उन्होंने यह समझ लिया है कि वे स्वयं काम करने और ईजात करने में सक्षम होंगे, तो उन्हें सर्वप्रथम आत्मसम्मान होगा, फिर समाज, अपने परिवार, अपने गांववासियों और समूचे समाज की ओर से सम्मान प्राप्त ही होगा।"

शिकाजे नेत्रहीन स्कूल में नेत्रहीन छात्र अपनी रुचि के अनुसार कोर्स का विकल्प कर सकते हैं। इस स्कूल में कई साल पढ़ने के बाद वे अवश्य ही कुछ न कुछ कौशलों पर महारत हासिल कर लेते हैं। इस की चर्चा करते हुए माइक ने विशेष तौर पर हमारे संवाददाता को ओड्रोपतोजे नामक एक अध्यापक का परिचय करा दिया। उन्होंने कहा कि ओड्रोप को इसी नेत्रहीन स्कूल में सीखे हुए 8 साल हो गये और तिब्बती जातीय संगीत वाद्ययंत्र छै तारों वाला वायलिन बजाना बहुत पसंद है, फिर उन्होंने तिब्बत विश्वविद्यालय के संगीत विभाग में आगे अध्ययन करने के बाद कई टीवी स्टेशनों में कार्यक्रम पेश किये। अब वे फिर शिकाजे नेत्रहीन स्कूल में वापस लौटकर एक संगीत अध्यापक का काम करते हैं।

माइक छात्रों की थोड़ा बहुत प्रगति देखकर बेहद गर्व महसूस करते हैं। उन्होंने पिछले दसेक सालों के समय, क्षमता और धन राशि को इसी नेत्रहीन स्कूल के शिक्षा कार्य में जुटा दिया है। माइक की तिब्बती साथी आचन ने कहा कि माइक लम्बे अर्से में खेताबाड़ी का काम करते हैं, दोनों हाथ शुष्क ही नहीं, दरारों से भी भरे हुए हैं। उन्होंने यह कभी भी नहीं देखा है कि माइक ने कोई नया कपड़ा पहन लिया।

"अब उन के पास पहनने के लिये कोई नयी पैंट नहीं है, वे अकसर कहते आये हैं कि मुझे इस की जरुरत नहीं है, छात्रों को देना चाहिये, मेरे लिये धन दौलत व नये कपड़ों का कोई मतलब नहीं है, बेकार है। जब मैंने अपने दोस्त को माइक की कहानी सुनायी, तो मेरे दोस्त ने माइक के लिये एक नया कपड़ा खरीद लिया, माइक इस नये कपड़े को देखकर बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने कहा कि मैं इस नये कपड़े को पहनने का इच्छुक नहीं हूं, मुझे सचमुच इस की जरुरत नहीं है, यहां के छात्रों को चाहिये।"

आचन ने कहा कि उन्होंने माइक से बहुत ज्यादा सीख लिया है।"एक विदेशी होने के नाते वे दिन के 24 घंटे भर में इसी स्कूल में रहते हैं, मैंने माइक से बहुत ज्यादा चीजें सीख ली हैं। आम दिनों में हम जो खाना खाते हैं, वे भी वही खाना खाते हैं। उन की जेब में दस य्वान की नोट भी नहीं है, जब हम साथ मिलकर शिकाजे जाते हैं, उन्हें च्याओची खाना बहुत पसंद करते हैं, मैं उन्हें वही च्याओची खिला देती हैं।"

बहुत ज्यादा लोगों ने माइक से परिचित होने के बाद कौतूहलपूर्वक पूछा कि वे किस लिये इतने दूर से चीन के तिब्बत आये हैं और बच्चों के साथ इतने लम्बे समय तक इसी स्कूल में बसे हुए हैं। पर शायद माइक ने इस सवाल पर कभी भी गम्भीरता से सोच विचार नहीं किया हो। माइक ने कहा:"मैं सुख का पीछा करता हूं और सूखी जीवन बिताना भी चाहता हूं। पर मैं अपने आप को समझता हूं। मैंने जो प्रयास किये हैं, वे सब के कुछ इन नेत्रहीन बच्चों को स्वस्थ रुप से पलने बढ़ने, सार्थक जीवन बिताने और प्यार प्राप्त करने के लिये हैं। मैंने उन से बहुत ज्यादा प्यार प्राप्त कर लिये हैं, मैं अपने तौर तरीके से उन्हें वापस लौटाने की आशा करता हूं। मुझे उम्मीद है कि ये बाल बच्चे सूखी जीवन बिताएंगे।"

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