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नाछ्यु के पठारीय घास मैदान में खिले केसांग फूल
2012-07-08 19:13:24

तिब्बत प्रदेश के नाछ्यु प्रिफैक्चर छिंगहाई तिब्बत पठार के थांगकुला पर्वत, न्यूछिंग थांगकुला पर्वत और कांगतिस पुर्वत के बीचोंबीच स्थित है, समुद्र स्तर से जिसकी औसत ऊंचाई 4500 मीटर से ज्यादा है। वायुमंडल में ऑक्सीजन की कमी होती है, जो कि भीतरी इलाके का सिर्फ 48 प्रतिशत है। नाछ्यु प्रिफैक्चर में सालाना औसतन तापमाम शून्य से तीन डिग्री नीचे होता है। इस कठोर प्राकृतिक परिस्थिति वाले पठार में लम्बे समय तक कार्यरत चीनी महिला सैनिक फङ यान स्थानीय तिब्बतियों के बीच जानी मानी शख्सियत हैं, उन्हें छिंगहाई तिब्बत पठार में विशेष तौर पर खिले हुए सुन्दर केसांग फूल की तरह तिब्बतियों का सम्मान हासिल है।

वर्ष 1998 में फङ यान दक्षिण पश्चिमी चीन के स्छ्वान प्रांत की राजधानी छङतु स्थित सैन्य क्षेत्र के अधीनस्थ चिकित्सा उच्च कॉलेज में पढ़ती थी। एक बार उन्होंने टीवी पर एक प्रोग्राम देखा, जो तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के नाछ्यु प्रिफैक्चर विशेष बर्फीला आपदा प्रभावित हुआ था। वहां राहत बचाव कार्य में लगे सैनिकों के होंठ, हाथ व पांव खराब व ठंडे मौसम के कारण घायल हुए, आपदा पीड़ित नागरिकों के पास चिकित्सीय वस्तुएं व दवाइयां भी कम थीं।

उस प्रोग्राम को देखने के बाद फङ यान ने स्नातक होकर नाछ्यु में काम करने का फैसला किया। स्नातक के बाद उन्होंने भीतरी इलाके के अस्पताल को छोड़ कर चीनी सेना के तिब्बत कमान के अधीनस्थ नाछ्यु यूनिट में काम करने का आवेदन किया, और एक सैनिक नर्स बन गई। इसकी चर्चा में फङ यान ने कहा:

"उस समय मेरा विचार बहुत सरल था। मेरे पिता जी तिब्बत पठार में जीवन भर काम करते रहे हैं, इस तरह मैं तिब्बत में वापस लौटकर काम करने की इच्छुक थी। मैं समुद्र तल से ज्यादा ऊंचाई वाले क्षेत्र में जाकर काम करना चाहती थी।"

काम करते-करते 12 साल बीत चुके हैं। समुद्र तल से 4500 मीटर क्षेत्र को चिकित्सीय जगत में"जीव-वर्जित क्षेत्र"माना जाता है। खराब व कठोर प्राकृतिक वातावरण के कारण फङ यान के साथ नाछ्यु के चिकित्सा केंद्र आने वाले अन्य दो नर्सें आधे साल के भीतर वापस चली गई। चीनी सेना के तिब्बत कमान के अधीनस्थ नाछ्यु युनिट के चिकित्सा केंद्र के प्रधान मा ख्वानचुन ने कहा:

"उस समय मैंने फङ यान को समझाया कि समुद्र तल से नाछ्यु की ऊंचाई बहुत अधिक है और प्राकृतिक वातावरण बहुत खराब है, दूसरी महिला नर्सों ने अपना तबादला अन्य जगहों के लिए करा लिया, तुम भी कोशिश करो। लेकिन हर बार ये बातें करते हुए वह सिर्फ़ हंसते हुए सिर हिलाती थी। "

फङ यान की डायरी में ऐसे वाक्य लिखे रहते हैं:"तिब्बत में अपना योगदान देने का विकल्प चुनने के बाद मैं वहां अपनी ड्यूटी पर डटी रहूंगी। अगर स्वास्थ्य अच्छा रहेगा, तो मैं जिन्दगी भर अपना वादा निभाने को तैयार रहूंगी। नाछ्यु में एक दिन से ज्यादा समय ठहरने पर यहां कार्यरत सैनिकों की ज्यादा सेवा करने के साथ-साथ जीव-वर्जित क्षेत्र में संघर्ष करने वाले व्यक्तियों के लिए कुछ कर पाऊंगी।"

फङ यान जैसा कहती हैं वैसा ही करती भी हैं। 45 किलोग्राम से कम वज़न वाली इस महिला नर्स ने 12 सालों में नाछ्यु के सैन्य यूनिट के अधीनस्थ सभी शाखाओं का दौरा किया। उन्होंने 700 से अधिक बार मुफ्त इलाज किए, तिब्बत में 25 हज़ार किमी. का चिकित्सीय दौरा कर 12 हज़ार रोगियों की सेवा की। तिब्बत के सैन्य क्षेत्रों के अफसरों व सैनिकों के स्वास्थ्य पर फङ यान हमेशा ध्यान देती हैं।

एक बार सैन्य चिकित्सा केंद्र के डॉक्टर के साथ चिकित्सीय दौरे के वक्त उन्होंने देखा कि एक सैनिक ट्रेनिंग के दौरान घायल हो गया है और उसकी बाएं पैर से खून बह रहा है। इसकी याद करते हुए फङ यान ने कहा:

"मुझे लगता था कि यह एक छोटी सी चोट है। इस तरह मैं उसका इलाज कर रही थी, लेकिन सफलता नहीं मिली, रक्त का रिसाव बंद नहीं हुआ। इस तरह मुझे दूसरे साथी से मदद मांगनी पड़ी और देखा कि जल्द दी खून बहना बंद हो गया। उस पल मुझे लगा कि मेरे पास स्कूल से हासिल किताबी ज्ञान बहुत सीमित है।"

इसके बाद समय मिलने पर फङ यान कमरे में पठारीय चिकित्सीय अध्ययन करने लगी। उन्होंने पठार के ठंडे मौसम में इलाज से संबंधित 17 सेवा अनुभवों का सारांश किया और 30 से अधिक रिपोर्टें पेश कीं।

पठार में तैनात बुनियादी स्तरीय अफसरों व सैनिकों की ज्यादा अच्छी सेवा करने के लिए फङ यान मेहनत से पढ़ाई में संलग्न होने के साथ-साथ वे चीन के भीतरी इलाके से तमाम पेशेवर किताबें खरीदकर चीनी चिकित्सीय एक्यूपंक्चर सीखती हैं। और उन्होंने चीनी एक्यूपंक्चर के बुनियादी तकनीक सीखकर इसका प्रयोग कर सौ से अधिक सैनिकों व अफ़सरों का इलाज किया। चीनी सेना के तिब्बत कमान के अधीनस्थ नाछ्यु यूनिट की एक टुकड़ी के अफ़सर यांग पाओ ने कहा:

"वर्ष 2007 में हमारी टुकड़ी में लोपू नामक एक सैनिक का निचला अंग वारिक्स से ग्रस्त हो गया और वह चलना तो दूर खड़ा भी नहीं हो सकता था। कई अस्पतालों में उसका कई बार ओपरेशन किया गया, लेकिन मुश्किल वातावरण के कारण उसकी स्थिति में सुधार नहीं आया। फङ यान यह जानकर हर दिन हमारे यहां लोपू का मसाज करती थी। आधे साल से ज्यादा समय की देखभाल के बाद लोपू का स्वास्थ्य धीरे-धीरे बेहतर हो गया।"

सैनिकों के साथ बातचीत करने के वक्त फङ यान ने पता लगाया कि आंशिक सैनिकों व अफसरों को गंभीर प्राकृतिक पर्यावरण के कारण कई तरह की विषम मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस तरह उन्होंने विशेष तौर पर मनोविज्ञान सीखा और नाछ्यु प्रिफैक्चर के सैन्य क्षेत्र में प्रथम मनोवैज्ञानिक सेवा हॉट लाइन खोली और क्रमशः 200 से अधिक अफ़सरों व सैनिकों की मनोगत विषम समस्याएं दूर की। सैनिक प्यार से उन्हें प्यारी दीदी कहकर बुलाते हैं।

फङ यान सैनिकों व अफ़सरों को अपने भाई और स्थानीय तिब्बती नागरिकों को परिजन मानती हैं। नाछ्यु प्रिफैक्चर की दस कांउटियों व एक जिले में उन्होंने पशुपालन क्षेत्र के तिब्बती चरवाहों को 3 सौ से ज्यादा बार स्वास्थ्य संबंधी कक्षाएं दी और 80 से अधिक ग्रामीण चिकित्सकों को ट्रेनिंग। साथ ही 42 नवजान बच्चे जनाए और गंभीर बीमारियों से ग्रस्त 32 रोगियों को बचाया।

नवंबर 2008 के अंत में एक आधी रात को पीरू कांउटी की एक दादी मां आक्समिक बीमारी से पीड़ित हुई, जो मरणासन्न थी। फङ यान ने दादी मां के परिजनों का फोन नंबर हासिल कर डाक्टर के साथ रात ही में उसके घर गई। तेज़ हवा और भारी बर्फ़ के कारण फङ यान कई बार घोड़े की पीठ से गिर पड़ी और दोनों हाथों में चोट भी आयी। छह घंटे की मुश्किल सफर के बाद उन्होंने दादी मां के घर पहुंचकर उसकी जान बचाई।

इस तरह की कई कहानियां हैं। चीनी सेना के तिब्बत कमान के अधीनस्थ नाछ्यु युनिट के क्लीनिक विभाग के डाक्टर पाइमा ने फङ यान की प्रशंसा करते हुए कहा:

"हर बार पशुपालन क्षेत्र की चिकित्सीय दौरे के वक्त चाहे मौसम कितना भी खराब क्यों न हो और रास्ता कितना ही दूर क्यों न हो, फङ यान बहुत सक्रिय रहती हैं। तिब्बती बंधुओं के प्रति उसकी गहरी भावना है, जिससे मैं भी प्रभावित हुआ।"

नाछ्यु कस्बे स्थित वयोवृद्ध सदन के 24 तिब्बती बुजुर्ग लोग फङ यान को अपनी बेटी मानते हैं। फङ यान ने उनके लिए स्वास्थ्य फाइल कार्ड बनाया और कभी कभार उन्हें देखभाल के लिए वयोवृद्ध सदन आती हैं।

80 वर्षीय तिब्बती दादी मां ची त्सेरन को रुमेटी हृदय रोग के कारण अपने आप की देखभाल नहीं कर पाती। फङ यान वयोवृद्ध सदन आकर उनकी मदद करती है। कपड़े धोती है, खाना पकाती हैं और दादी मां के साथ बातचीत करती हैं। दादी मां ची त्सेरन फङ यान को अपनी प्यारी बेटी मानती हैं। उन्होंने कहा:

"फङ यान मेरी बेटी जैसी है। वह कभी-कभी मुझे देखने आती है, मेरे लिए मसाज करती हैं और गर्म पानी से लेप लगाती हैं।"

सात वर्षीय तिब्बती लड़की त्सेरन वांगमू कल्याण संस्थान में रहती है। दो साल की उम्र में उसके माता पिता का देहांत हो गया और वह अनाथ बन गई। वर्ष 2006 के शुरू में फङ यान इस कल्याण संस्थान का चिकित्सीय दौरा करने के वक्त उससे मिली। तभी से फङ यान के पास एक तिब्बती बेटी हो गई। मां फङ यान की चर्चा में इस छोटी तिब्बती लड़की ने कहा:

"फङ यान मेरी सबसे अच्छी मां है। हर दिन वह मुझे देखने यहां आती है।"

इधर के सालों में इस कल्याण संस्थान के अन्य 35 तिब्बती अनाथों को छोटी त्सेरिंग वांगमू की तरह फङ यान का प्यार हासिल हुआ। फङ यान ने इन बच्चों की पढ़ाई व जीवन के लिए 50 हज़ार युआन दिए और क्रमशः सात बच्चों को भीतरी इलाके के स्कूलों में पढ़ने की मदद की।

पिछले 12 सालों में फङ यान अपने निस्वार्थ प्यार से दूसरे लोगों की मदद करती रहती हैं। चीनी सेना के तिब्बत कमान के अधीनस्थ नाछ्यु यूनिट के राजनीतिक कमिश्नर यांग यी ने फङ यान की प्रशंसा करते हुए कहा:

"हमारी नाछ्यु यूनिट में एकमात्र महिला सैनिक के रूप में फङ यान दस से ज्यादा साल यहां रही हैं। वे अपने वास्तविक कदमों से आधुनिक सैनिकों की मूल्य धारणा दिखाती हैं। उन्होंने पुरानी तिब्बती भावना को नया रूप दिया और वे नाछ्यु सैनिकों की आदर्श मिसाल बन गईं।"

बर्फीले पठार पर खिले गेसांग फूल की तरह फङ यान तिब्बत में अपना योगदान कर रही हैं। नाछ्यु प्रिफैक्चर के विशाल छ्यांगथांग घास मैदान में उनकी छवि छोटी है, लेकिन उनकी मौजूदगी के कारण यह सुन्दर घास का मैदान ज्यादा रंगबिरंगा लगता है।

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