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तिब्बती क्षेत्र में युवा भिक्षुओं के आत्मदाह के पीछे किस का हाथ
2012-04-10 15:24:58

तिब्बती क्षेत्र में हाल ही में कुछ मठों में भिक्षुओं की आत्मदाह दुर्घटनाएं हुईं, चीनी प्रधान मंत्री वन च्चा पाओ ने कुछ समय पहले संवाददाता के प्रश्न के उत्तर देते हुए कहा कि हम सामाजिक सामंजस्य को भंग करने की इस उग्र कार्यवाही पर सहमत नहीं हैं। आत्मदाह करने वाले युवा भिक्षु बेगुनाह हैं, हमें उन की इस हरकत पर बहुत दुख है। प्रधान मंत्री वन च्चा पाओ का रवैया चीनी केंद्रीय सरकार का रुख है और व्यापक चीनी जनता की भावना प्रतिबिंबित भी हुआ है। आत्मदाह करने वाले भिक्षु अधिकतर बीस उम्र वाले युवक हैं, उन्होंने इसी शोचनीय तरीके से अपने प्राण को खत्म किया है, जिस से लोगों को बड़ा सदमा लगा और दुख भी हुआ। हालांकि स्थानीय सरकारों और लोगों ने आग बुझाने की हरचंद कोशिश की, पर कुछ युवा प्राणों को फिर भी गंवाना पड़ा।

खेद की बात है कि तिब्बती क्षेत्र में युवा भिक्षुओं की आत्मदाह दुर्घनाओं के प्रति बाहरी विभाजित शक्तियों और कुछ पश्चिमी मीडियाओं ने बड़ी खुशी व्यक्त की और आश्चर्यजनक तेज रफ्तार से अपनी प्रतिक्रियाएं प्रकट कीं। उन्होंने सब से पहले आत्मदाह घटना के तत्काल स्थलीय फोटो और आत्मदाह करने वाले व्यक्ति के जीवनकालीन फोटो और संबंधित सूचनाएं भी सार्वजनिक कर दीं। कुछ संगठनों ने आत्मदाह करने वाले व्यक्तियों को ठोस मुआवजा कीमत भी दी। हमेशा से अपने आप को अहिंसक कहलाने वाले दलाई लामा ने न सिर्फ आत्मदाह दुर्घटना पर तुरंत ही रोक लगाने और इसी दुर्घटना की पुनरावृति से बचने के बारे में कोई सलाह नहीं दी, बल्कि भारत के धर्मशाला में आत्मदाह हरकत के समर्थन व हिमायत करने के लिये विशेष प्रार्थना सभा की सदारत की और भूख हड़ताल में भी भाग लिया। यहांतक कि कुछ व्यक्तियों ने आत्मदाह करने वाले व्यक्तियों को हीरो और योद्धा भी कह दिया, साथ ही उन के लिये स्मारक स्थापित करने और उन की इस शोचनीय हरकत के लिये बौद्ध धार्मिक आधार बनाने की नाकाम कोशश भी की । हाल ही में निर्वासित तिब्बतियों द्वारा निर्वाचित तथाकथिक प्रमुख कालोन ने अपने एक वक्तव्य में आत्मदाह करने वाले व्यक्तियों की प्रशंसा में कहा कि उन की यह कार्यवाही समाजवादी स्वर्ग का निर्माण करने और तिब्बती जातीय विशेषताओं व रीति रिवाजों को सुरक्षित रखने वाले खाली वादे के प्रति तीव्र प्रतिरोध ही है। उन्होंने भिक्षुओं की आत्मदाह हरकत को जातीय अत्याचार , धार्मिक अत्याचार और सांस्कृतिक नरसंहार आदि राजनीतिक विषयों से जोड़ दिया है , जिस से आत्मदाह वारदात और ज्यादा उत्तेजक हो गयी।

जैसा कि प्रधान मंत्री वन च्चा पाओ ने पत्रकार के प्रशन के उत्तर में कहा है कि तिब्बत में हम जातीय क्षेत्रीय स्वशासन प्रणाली लागू करते हैं। हालांकि इधर सालों में तिब्बत में आर्थिक व सामाजिक क्षेत्रों में बड़ा विकास हुआ है, पर भीतरी इलाकों की तुलना में तिब्बत फिर भी काफी पिछड़ा है। इसलिये केंद्रीय सरकार ने तिब्बत के विकास को गति देने की नयी योजना समेत सकारात्मक कदम भी उठा दिये हैं। इन कदमों का मुख्य उद्देश्य तिब्बती किसानों व चरवाहों का जीवन स्तर उन्नत करना है। तिब्बत का आर्थिक विकास करना जरुरी तो है, पर इस के साथ ही तिब्बत के पारिस्थितिकि वातावरण और सांस्कृतिक परम्पराओं को बनाये रखने पर ध्यान देने की जरुरत भी है। हम तिब्बती बंधुओं के धार्मिक विश्वास व स्वतंत्रा का सम्मान करते हैं, उन का धार्मिक विश्वास कानूनी संरक्षण में है। हम तिब्बती बंधुओं के प्रति समानता व आदर का रुख अपनाते हैं और अपने कामों को लगातार सुधारते हैं। तिब्बत को छोड़कर दूसरे तिब्बती क्षेत्रों की हालत लगभग मिलती जुलती है। तिब्बत और तिब्बती क्षेत्रों में तिब्बती लामा बौद्ध धर्म पर धार्मिक अत्याचार का सवाल ही नहीं उठता, बल्कि सरकार ने ऐतिहासिक विरासतों के रुप में मठों की रक्षा व मरम्मत करने में बड़ी धन राशि भी जुटायी और कदम ब कदम भिक्षुओं व भिक्षुणियों को सामाजिक व चिकित्सक बीमा प्रणालियों में शामिल करने की कोशिश की। सछ्वान प्रांत के अबा छांग जातीय स्वशासन प्रिफेक्चर, जहां भिक्षुओं की आत्मदाह दुर्घटनाएं हुई हैं, में 42 बौद्ध धार्मिक मठ और 5226 भिक्षु व भिक्षुणियां पंजीकृत हो चुके हैं, साथ ही मठ बहुत साफ व सुव्यवस्थित ही नहीं, बुद्ध मूर्तियां, सुंदर थांगका और भित्ति चित्र हू ब हू सुरक्षित ही नहीं, बहुत भव्यदार भी दिखायी देते हैं, विभिन्न धार्मिक शाखाएं भी मेलमिलापपूर्वक साथ साथ रहती आयी हैं। विभाजित शक्तियों ने युवाओं की प्राण की कीमत चुकाने की परवाह न कर धार्मिक अत्याचार आदि बेहूदा दलील रचकर चीन सरकार को नुकसान पहुंचाने की नाकाम कोशिश की, मकसद है कि तिब्बत और तिब्बती क्षेत्रों में केंद्रीय सरकार की जातीय व धार्मिक नीतियों पर प्रहार किया जाये और उक्त क्षेत्रों में सामाजिक विकास व प्रगति और जन जीवन सुधार के तत्यों को नकारा जाये , ताकि अंतर्राष्ट्रीय लोकमत का ध्यान आकर्षित कर तिब्बत सवाल को अंतर्राष्ट्रीकरण को बढावा दिया जा सके और तिब्बत स्वाधीनता की राजनीतिक मांग को मूर्त रुप दिया जा सके।

ताबड़तोड़ घटित आत्मदाह वारदातों पर तिब्बती लामा बौद्ध धार्मिक जगत के जाने माने सूत्रों ने गम्भीर चिन्ताएं जतायीं। सछ्वान प्रांतीय बौद्ध धर्म संघ के उपाध्यक्ष जीवित बुद्ध काडेन ने अपनी टिप्पणी में कहा कि कुछ व्यक्तियों से तिब्बती लामा बौद्ध धर्म को धार्मिक उग्रवाद की ओर ले जाने पर सतर्क रहना चाहिये । उन का कहना है कि भिक्षुओं की आत्मदाह दुर्घटनाओं से विभिन्न सामाजिक जगतों में विरोध भाव पैदा हो गया। यदि मुट्ठी भर के लोगों को धार्मिक राजनीतिक हरकत करने, गैर कानूनी कार्यवाही करने और सामाजिक विकास धारा के खिलाफ तिब्बती लामा बौद्ध धर्म को धार्मिक उग्रवाद की ओर ले जाने की इजाजत दी जाय़े, तो अनिवार्यतः तिब्बती बौद्ध धर्म आधुनिक समाज में अपने आप को खो बैठेगा।

लम्बे अर्से में दलाई लामा गुट ने तिब्बत की परम्परागत संस्कृति और तिब्बती लामा बौद्ध धर्म की धार्मिक स्वतंत्रता बनाये रखने का झंडा उठाते हुए तिब्बत और दूसरे तिब्बती क्षेत्रों में अनेक हिंसक आतंकवादी दगे फसाद पैदा किये। 14 मार्च 2008 को तिब्बत और दूसरे तिब्बती क्षेत्रों में हुए मार पीट व लूट खसोट अपराधपूर्ण वारदात से जनता के जान माल को भारी क्षति हुई हैं। जब स्थानीय धार्मिक जगतों और जन समुदायों को आत्मदाह दुर्घना से नफरत है, तो उन्होंने वसंत त्यौहार का बेजा फायदा उठाकर वारदात खड़ी की, स्थानीय पुलिस चौकियों पर प्रहार किया, ताकि लोकमत का ध्यान आकर्षित करने और केद्रीय सरकार पर दबाव डालने की कोशिश की जा सके। पर हमें पक्का विश्वास है कि तिब्बती जाति विनम्र, दयालु और शांतिप्रिय श्रेष्ठ जाति ही है, सामंजस्य व विकास तिब्बती जाति और समूचे देश की जनता व सारी दुनिया की जनता की समान अभिलाषा है, उग्रवादी और हिंसक हरकत विफल होकर ही रहेगी।

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