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ल्हासा शहर में तिब्बती रेस्टोरेंट की कर्मचारी लामू की कहानी
2012-04-05 19:01:02

यह चाइना रेडियो इन्टरनेशनल है। श्रोता दोस्तो, हमारा तिब्बती लाखों भूदासों के मुक्ति दिवस से जुड़े सिलसिले कार्यक्रम सुनने का हार्दिक स्वागत है। मैं हूं आप की दोस्त, चंद्रिमा। आज हम ल्हासा शहर में स्थित एक तिब्बती रेस्टोरेंट में काम करने वाली एक लड़की लामू की कहानी सुनाएंगे।

ल्हासा शहर में एक साधारण तिब्बती रेस्टोरेंट खुला हुआ। तिब्बती लड़की लामू ने भी अपना काम शुरू किया। चार साल पहले 19 वर्ष की उम्र वाली लामू एक साथी के परिचय से स्कूली कैंटीन से इस रेस्टोरेंट में आयी। क्योंकि उन के रेस्टोरेंट में सेवा करने का अनुभव समृद्ध है, और उन की चीनी भाषा भी बहुत अच्छी है, इसलिये रेस्टोरेंट के मालिक ने उन्हें खज़ानची का काम दिया। हर महिने उन्हें 1200 य्वान की नियमित वेतन पाने के अवाला 100 से 300 तक का बोनस भी मिल सकता है। गांव से आई लड़की लामू के लिये यह काम का एक बहुत अच्छा मौका है।

सुबह के समय मेहमान ज्यादा नहीं हैं। इसलिये रेस्टोरेंट के मालिक ने एक प्रशिक्षण का प्रबंध किया। यह लामू की सब से पसंदीदा गतिविधि है। क्योंकि चार वर्षों में उन्होंने ऐसी प्रशिक्षण से खूब जानकारियां प्राप्त कर ली है। चीनी भाषा, सेवा से जुड़े नियम, जातीय नृत्य, हर तरह के प्रशिक्षण से उन्हें कुछ उपयोगी चीज़ें मिल सकती हैं। लामू ने लंबे समय में यहां काम करना चाहा, और वे भी यह जानती हैं कि बड़े शहर में काम करने के लिये विशेष क्षमता व तकनीक भी चाहिए। ज्यादा कौशल सीखना उन के लिये बहुत महत्वपूर्ण है।

दोपहर को रेस्टोरेंट में मेहमानों की संख्या बढ़ने लगी। लामू भी व्यस्त हैं। यह रेस्टोरेंट ल्हासा में ज़रा प्रसिद्ध है। बहुत पर्यटक विशेष तिब्बती भोजन खाने के लिये यहां आते हैं। पर्यटन के समृद्ध काल में इस छोटे से रेस्टोरेंट में भीड़-भाड़ है। यह लामू के लिये खुशी के साथ तकलीफ़ भी है। ज्यादा बोनस मिलने से वे बहुत खुश हैं, लेकिन हर दिन दस घंटे से ज्यादा समय काम करना उन के लिये बहुत कठिन है।

दोपहर भोजन के बाद रात्रि भोजन से जुड़े काम की तैयारी के अलावा मालिक कभी कभी कुछ प्रशिक्षण का प्रबंध करते हैं। और रात को अंतिम मेहमान से बिदा लेने के बाद लामू अपने सारे दिन का काम समाप्त करती हैं।

काम के बाद लामू अपने होस्टल में वापस जाती है। यह होस्टल तिब्बती रेस्टोरेंट द्वारा निःशुक्ल दिया गया है, इसलिये कमरा बहुत सरल है। लामू जैसी यहां काम करने वाली कई लड़कियां बाहर में अपनी मित्र के साथ कमरा का किराया देती हैं। जिससे किराया बहुत महंगा नहीं है, और कमरा भी ज्यादा सुविधाजनक है। लेकिन लामू ने ऐसा नहीं किया। उन का विचार यह है कि अगर मैं निःशुल्क होस्टल में रहती हूं, तो आवास के लिये खर्च की किफ़ायत की जा सकती है। और हर महिने उन का खर्च केवल 200 से 300 तक य्वान के अंदर में है, तो वे 700 य्वान अपने घर में भेज सकती हैं। और ये पैसे लामू के घर के लिये एक बड़ी आय है। लामू का घर ल्हासा के आसपास के लिनचो काऊंटी में स्थित है। घर में कुल सात लोग हैं। बूढ़े मां-बाप को देखभाल के अलावा लामू के भाई का स्कूल में जाने के लिये भी पैसा चाहिये। इसलिये लामू ने मां-बाप के बोझ को हल्का करने के लिये 15 वर्ष की उम्र से काम करना शुरू कर दिया।

रात में ल्हासा बहुत शांतिपूर्ण है। अगले दिन लामू जैसे बाहर से ल्हासा में काम करने वाले लोग फिर अपना जीवन दोहराएंगे। उन्हें यह शहर पसंद है। यहां उन्हें पैसे के अलावा बहुत जानकारियां प्राप्त हैं, और उन्होंने विभिन्न व्यवसायों के मित्र भी बनाये हैं। खास बात यह है कि इस सहनशील शहर में उन की जातीय आदत को सम्मान मिलता है। वे सुखमय जीवन बिता रहे हैं।

वर्तमान में तिब्बत के किसान व चरवाहे बाहर में काम करने से आय की वृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। शहर व बस्ती के आर्थिक विकास से तिब्बती किसान मज़दूरों को रोजगार के बहुत मौके मिले हैं। ल्हासा व शिकात्से जैसे तिब्बत के बड़े शहरों में सेवा व्यवसाय ज्यादा से ज्यादा ग्रामीण श्रमिकों को आकर्षित कर रहा है, जो ग्रामीण श्रमिकों के लिये शहर में काम करने का एक मुख्य तरीका बन गया है। रेस्टोरेंट उद्योग तो उन में से एक महत्वपूर्ण भाग है।

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