चीन में खाने की संस्कृति बहुत समृद्ध है,हर प्रांत का अपना विशेष खाना है जो चीनी संस्कृति का अभिन्न अंग है।लेकिन चीनी खाने में साठ से सत्तर प्रतिशत तक मांस का होना उसी तरह जरुरी है जैसे भारत में अधिकांश आम भोजन में दाल रोटी,सब्जी का होना।चीन में एक कहावत है कि चीनी लोग हर उस चीज को खाते हैं जो उड़ती हो,चलती हो,या तैरती हो.सिवा हवाई जहाज,मोटर गाड़ी और कुर्सी मेज के।इस कहावत में जरुर सच्चाई है।दक्षिण और पूर्वी चीन में कुत्ता बिल्ली सांप का मांस लजीज माना जाता है,जबकि अन्य प्रांतों में सुअर का मांस और गाय का मांस दाल सब्जी की तरह भोजन में शामिल होना सामान्य बात है।
मेरा पूरी तरह से शाकाहारी होना चीनी दोस्तों के लिए काफी लंबे अरसे तक आश्चर्य का विषय बना रहा,विशेष कर विद्यार्थियों के लिए।यह जानकारी पाते ही उन का पहला सवाल होता यदि आप मांस मछली अंडा नहीं खाते तो शरीर के पोषण के लिए जरुरी तत्व नहीं मिलते होंगे।उन्हें यह जान कर सचमुच बहुत आश्चर्य होता कि शाकाहारी भोजन से भी शरीर के लिए जरुरी सारे तत्व मिल जाते हैं और किसी हद तक शाकाहारी भोजन स्वास्थ्य के लिए अधिक बेहतर है।शायद स्कूल की पुस्तकों में उन्होने यह पढ़ा है कि मांस मछली अंडे से शरीर के लिए जरुरी पोषक तत्व मिलते हैं। और भोजन में इन का होना जरुरी है।कुछ विद्यार्थियों के सवाल जरा रोचक भी होते।एक बार एक विद्यार्थी को जब मैंने यह बताया कि मैं पूरी तरह बचपन से शाकाहारी हूं तो उस ने धीरे से बुदबुदा कर कहा,जरुर मेरा परिवार बहुत गरीब रहा होगा और खाने में इसलिए मुझे कभी मांस अंडा आदि खाने को नहीं मिला। चीन में यदि खाने में मांस नहीं है तो या तो आप बुद्ध भिक्षु होंगे या गरीब। इस लिए उस विद्यार्थी का ऐसा सोचना वाजिब था।
तो आप सोचते होंगे कि चीन में शाकाहारी भोजन मिलना जरुर कठिन होगा।यह बात जितनी सच है उतनी ही सच नहीं भी है।
चीन में अब हर बड़े शहर में एक आध भारतीय रेस्तरां देखने को मिल जाते हैं लेकिन एक तो वे बहुत मंहगे होते हैं और आम तौर पर आप के रहने की जगह से बहुत दूर।और कुछ ऐसे नए रेस्तरां भी हैं जो पूरी तरह ,से शाकाहारी हैं जिन में आप को शाकाहारी,मटन,शाकाहारी मछली.शाकाहरी बीफ...यानि कि जब कुछ शाकाहारी लेकिन देखने में और स्वाद में मांस के बराबर।मुझे नहीं लगता कि पारंपरिक भारतीय परिवार शाकाहारी मांस को गले से नीचे उतार पाने में रुचि रखेगा।जो चीज देखने में मांस या मछली जैसी लग रही हो फिर चाहे वह शाकाहारी सब्जी ही क्यों न हो,भारतीय शाकाहारी उसे छुएगा भी नहीं,यह मैंने यहां देखा है।
लेकिन यह भी सच है कि चीन में लगभग हर शाकाहारी भोजन बहुतायत में उपलब्ध है.आटा.चावल,दालें,सब्जियां,फल दूध आदि।मूंग और राजमाह ये दो दालें परिचित दालें हैं,बाकी दालें विशेष हैं जिन्हें भारत में देखने का कभी मौका नहीं मिला।हल्दी यहां नहीं मिलती,बाकी सभी मसाले कमोबेश मिल जाते हैं। यदि आप को मेरी तरह खाना बनाने में रुचि है तो चीन में रहना आसान है।रेस्तरां में जरुर कठिनाई का सामना करना पड़ता है क्योंकि कि सब्जियों में,यहां तक कि सलाद में भी मांस का शामिल होना आम बात है।और रेस्तरां की रसोई में खाना बनाने कि लिए इस्तेमाल होने वाले बर्तन सब्जी मांस के लिए अलग नहीं होते और खाने को अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए तेल की जगह चर्बी का इस्तेमाल भी किया जाता है।चीन की यात्रा करने वाले भारतीय शुद्ध शाकाहारियों को यदि ऐसे रेस्तरां में मजबूरन जाना पड़े तो आप उन्हें सेब, केला खाते हुए या पैकेटबंद जूस पीते हुए ही देखते हैं।ऐसे कई रोचक घटनाक्रम देखने को मिलते रहते हैं।
कुछ साल पहले शांगहाई में चीनी सामाजिक अकादमी के द्वारा आयोजित भारत चीन पर आधारित एक सेमिनार में कुछ शुद्ध भारतीय भी आमंत्रित थे।तीन दिन तक चले सेमिनार में उन के लिए अलग से उबले आलू और टमाटर की मिली जुली सब्जी और चावल ही उन का भोजन रही।और उसे भी आयोजकों को विशेष अलग बर्तन में बनवाना पड़ा।
ऐसे ही पिछले साल जब में छुटिटयां बिता कर चीन वापिस आ रहा था तो दिल्ली हवाई अडडे पर एक रोचक दृष्य देखने को मिला। कस्टम अधिकारियों को एक वृद्ध सिक्ख दंपत्ति के सामान में बनी हुई दाल,बनी हुई सब्जी और मक्की की रोटी के डिब्बे मिले,जिन्हें वे सुरक्षा नियमों के तहत साथ ले जाने पर रोक लगा रहे थे।वे वृद्ध दंपत्ति दाल सब्जी बना कर इसलिए साथ ले जा रहे थे कि चीन में शायद शुद्ध शाकाहारी भोजन न मिले।उन के समझाने पर कस्टम अधिकारियों ने दाल सब्जी के डिब्बे खोल कर थोड़ा चख कर मुस्कुराते हुए साथ ले जाने की अनुमति दे दी।
कई भारतीय मित्र जो चीन आए,और तीन चार दिन यहां रुके ।उन्हें मांसाहारी होने पर खाने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए थी,लेकिन भोजन में जब तक दाल रोटी सब्जी न मिले तब तक उत्तर भारतीय को तृप्ति नहीं होती।और भारतीय मांसाहारी भी शाकाहारियों की तरह ही होते हैं।मछली ,मटन और मुर्गी के अलावा मुश्किल से ही वे कुछ गले से नीचे उतार पाते हों।और यहां रेस्तरा में खाना खाते समय यह पता चलना कठिन है कि जिसे आप चिकन समझ कर हलक से नीचे उतार रहे हैं वह बीफ या किसी ऐसे जानवर का मांस हो सकता है जिस का नाम भी आप न पहले कभी न सुना हो।
ऐसे अनेक मित्रों के चेहरे पर उन्हें अपने निवास पर दाल रोटी सब्जी खिला कर मैंने ऐसी तृप्ति का भाव देखा है जैसा भारत में कभी नहीं देखा।मुझे एक बात का तीव्र एहसास हुआ कि यदि मुझे खाना बनाना न आता और खाना बनाने में रुचि न होती तो चीन में मेरा रहना कभी आसान नहीं बन पाता।