तुआन वू त्योहार अन्य त्योहारों की तरह चीन के चंद्र कैलेंडर पर आधारित है ।यह चंद्र कैलेंडर के पांचवें माह की पांच तारीख को मनाया जाता है। दक्षिण गोलार्ध में इस समय दिन सब से लंबा होता है।पारंपरिक रुप से ड्रैगन की तरह सूर्य पुरुष ऊर्जा का प्रतीक है और चांद प्रकृति ऊर्जा का। उत्तर अयनांत के समय पुरुष ऊर्जा अपने सब से उच्च स्तर पर होती है इसलिए ड्रैगन की पुरुष ऊर्जा का तुआन वू उत्सव के साथ जुड़ना स्वभाविक है।
तुआन वू त्योहार कैसे शुरु हुआ इस के बारे में चीन में कई लोक कथाएं और मिथ प्रचलित हैं,जिन में से सब से प्रसिद्ध कथा वारिंग राज्यों के युग में सन 278 बी सी में छू साम्राज्य में हुए कवि और राजनयिक छू य्वान के द्वारा की गई आत्महत्या से संबंधित है।कहा जाता है कि चो राजवंश में छू के उच्च परिवार से संबंधित श्यु य्वान राज्य के कई उच्च पदों पर रहे,लेकिन जब राजा ने शक्तिशाली राज्य छिन के साथ संबंध बनाने का फैसला किया तो श्यु ने इस का विरोध करते हुए सब पद छोड़ कर अपना रास्ता पकड़ा और वहां से गायब हो गए।उन्हें राजद्रोही करार दिया गया।अपने निर्वासन के दौरान श्यु ने बहुत सी कविताएं लिखीं जिन के लिए आज वे जाने जाते हैं।28 साल बाद छिन राज्य ने छू राज्य की राजधानी पर कब्जा कर लिय़ा।निराशा में श्यु ने पांचवे माह की पांच तारीख को मिल्यु नदी में कूद कर अपनी जान दे दी।कहा जाता है कि स्थानीय लोगों ने जो श्यु य्वान को बहुत पसंद करते थे पके चावल के गोले बना बना कर नदी में फैंकने शुरु किए ताकि मछलियां श्यु य्वान के शरीर को न खाएं।तुआन वू के अवसर पर चावल के बनाए जाने वाले पकवान चुंगत्ज बनाने की परंपरा ऐसे शुरु हुई। मछलियों को भगाने के लिए या श्यु य्वान के शरीर को हासिल करने के लिए स्थानीय लोग नदी में नाव चलाने लगे।
इसी तरह तुआन वू के साथ एक और कहानी जुड़ी हुई है। अढाई हजार साल पहले वू राज्य में वू चशु एक ईमानदार राजनयिक था जिस ने राज्य के हित राय दी लेकिन उस की राय को तत्कालीन राजा फूछाए ने नकार दिया।और वू च छू को आत्महत्या करने पर विवश कर दिया और बाद में उस के शरीर को नदी में फिंकवा दिया।वह दिन पांचवे माह की पांच तारीख थी। उस की मृत्यु के बाद सुचो आदि जगहों में तुआनवू त्योहार के दिन वू चशु को याद किया जाता है।
इसी तरह उत्तरपूर्वी चीन के चच्यांग प्रांत में शु य्वान की जगह इस दिन छाओ ई को याद किया जाता है।छाओ ई के पिता छाओ शु एक शामन थे जो तुआन वू उत्सव के दौरान वू चशु की स्मृति मनाने के समारोह का आयोजन करते समय 2000 साल पहले पांव फिसलने के कारण नदी में गिर गए।अपने पिता को खोजने के लिए छाओ ई तीन दिन तक उन्हें नदी में ढूंढती रही।पांच दिन के बाद उस की और उस के पिता की लाश नदी के तट पर मिली। दोनों की नदी में डूबने के कारण मृत्यु हो गई थी।आठ साल बाद शांगयु में छाओ ई की याद में एक मंदिर बनाया गया।आज भी छिंगथांग नदी की एक सहायक नदी का नाम छाओ ई के नाम पर है।
ये सब कहानियां और मिथ इस उत्सव को जनमानस में याद रखने के लिए बनी हुई प्रतीत होती हैं। ऐतिहासिक घटनाएं ऐसे उत्सवों को और बल प्रदान करती हैं। लेकिन एक बात तय है कि कृषि प्रधान समाज में ऐसे उत्सवों की अपनी सार्थकता और प्रासंगिकता होती है।
कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि तुआन वू का त्योहार पहले सर्दी की गेहूं की फसल के पकने पर मनाया जाता था और इस के साथ जुड़ी कहानियां वास्तव में उस समय चीन में बुद्ध धर्म के फैलने पर कंफ्युशियस विद्वानों द्वारा रची गई हैं और कुछ का मानना है कि तुआन वू त्योहार वास्तव में गर्मी में होने वाले बिमारियों से बचने के लिए शुरु हुआ था,इसलिए नाव दौड़,चुंगत्ज आदि खाना,आराम करना और खेल खेलना इस में शामिल हुए।और कुछ अन्य का मानना है कि यह त्योहार ड्रैगन की पूजा का त्योहार है इसलिए नदी में चावल फैंक कर ड्रैगन की पूजा की जाती है।बहराल..
इस उत्सव के दौरान बांस के लंबे पत्ते में चावल,खजूर,चीनी और लाल दाल का मिश्रण डाल कर उसे अच्छी तरह बांध कर पानी में उबाल कर पकाया जाता है। और मिल बांट कर खाया जाता है। दक्षिण चीन में इस में मिश्रण में मांस शामिल करने की परंपरा भी है। इस के अलावा इस अवसर पर पीली शराब पी जाती है और दक्षिण चीन में जहां नदियां और समुद्र है लोग नाव दौड़ का आनन्द उठाते हैं।लोग लंबी सैर पर निकलते हैं।अंडे को खड़ा करने,मैजिक और अन्य खेल खेलने में दिन बिताते हैं।
आजकल चीन में तेजी से विकास हो रहा है और शहरों में लोगों के जीवन स्तर में बहुत उन्नति हुई है। काम में अत्यंत व्यस्त रहने के कारण त्योहरों के ऐसे अवसर पर लोग पारंपरिक रस्म तो निभाते ही हैं साथ ही यह समय खरीददारी करने,रिश्तेदारों,दोस्तों से मिलने और विद्यार्थियों के लिए सुबह देर तक सोने का होता है।
यह त्योहार चीन के अन्य त्योहारों की तरह दुनिया में हर कहीं जहां चीनी मूल के लोग रहते हैं मनाया जाता है।
इन त्योहारों का एक लाभ यह होता है कि इस से चीनी जनमानस में झांकने और उन्हें समझने का एक अदद मौका मिलता है।