चीन में जनसंख्या और देश की सामाजिक,आर्थिक ,पर्यावरणीय समस्याओं पर काबू पाने के लिए चीन सरकार ने शहरों में सन 1978 में एक परिवार एक बच्चे की नीति लागू की।और इस के परिणाम स्वरुप एक अनुमान के अनुसार सन 1979 से 2011 तक चीन में 400 मिलियन कम बच्चे पैदा हुए हैं।इस समय 36 प्रतिशत चीनी जनसंख्या इस नीति के दायरे में आती है।विशेष प्रशासनिक क्षेत्र हांगकांग.मकाओ इस नीति के दायरे में ऩहीं आते।और विशेष परिस्थितियों में चीनी गावों में रहने वाले ग्रामीण,जनजातियां और ऐसे विवाहित जोड़े जिन का कोई भाई बहन नहीं है,इस नीति में दी गई छूट का लाभ उठा कर एक से अधिक बच्चे पैदा कर सकते हैं।इस नीति को लागू करने के लिए प्रांतीय स्तर पर हरजाने की व्यवस्था की गई है।शहरों में रहने वाले विवाहित जोड़े यदि एक से अधिक बच्चे पैदा करते हैं तो उस साल की उन की आय के अनुपात में उन्हें हरजाना देना पड़ता है,और बहुत सी सामाजिक कल्याण की सुविधाओं से भी वे वंचित हो जाते हैं।शहरों में इस नीति को जितनी सख्ती से लागू किया गया है,गांवों में उतनी सख्ती नहीं बरती जाती।ग्रामीण निवासियों में यदि पहला बच्चा लड़की हो,बच्चा अपंग हो,मानसिक रुप से बीमार हो,तो दूसरा बच्चा पैदा किया जा सकता है,लेकिन पहले और दूसरे बच्चे के जन्म के बीच 3 से 4 साल का अंतर होना लाजिमी है।कुछ प्रांतो में कुछ व्यवहारिक कठिनाईयों के मद्देनज़र दूसरे बच्चे की अनुमति दे दी जाती है,जैसे स्छवान प्रांत में हाल ही में आए भूकंप में अनेक लोगों ने अपने बच्चे खो दिए,तो स्छवान प्रांत ने उन सभी को दूसरा बच्चा पैदा करने की अनुमति दे दी।चीनी कानून के अनुसार चीन की सभी अल्पसंख्यक जनजातियों पर यह नीति लागू नहीं होती.वे यदि शहर में रहते हैं तो दो बच्चे पैदा कर सकते हैं और यदि गांव में रहते हैं तो तीन से चार बच्चे पैदा कर सकते हैं।
चीन में जनसंख्या पर काबू पाने की कोशिश सन 1950 से ही शुरु हो गई थी,उस समय नारा दिया गया था...एक अच्छा है,दूसरा ठीक है तीसरा बहुत अधिक है '一个最好,两个可以,三个很多了जन्मदर कम होने पर जनसंख्या वृद्दि की कम दर ने जनसंख्या अधिक होने के कारण पैदा होने वाली समस्याओं की गंभीरता में भी कमी आई है जैसे महामारी,झुग्गी झोंपड़ियों के फैलने की समस्या,सामाजिक सेवाओं पर पड़ने वाला दबाव जैसे स्वास्थ्य ,शिक्षा,आदि और पर्यावरण पर पडऩे वाला दबाव,उपजाऊ जमीन का दुरुपयोग और बड़ी तादाद में कचरे का उत्पाद भी कम हुआ है ।
कम जनसंख्या के अन्य लाभ भी हुए हैं जैसे महिलाओं को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हो रही हैं,जन्म के समय जच्चा-बच्चा की मृत्यु दर में कमी हुई है।स्वास्थ्य केंद्रों में महिलाओं को मुफ्त कंट्रासेप्टिप उपलब्ध कराए जाते हैं।
जब से एक परिवार एक बच्चा की नीति लागू हुई है,लोगों की पैसे बचाने की दर में बहुत ईजाफा हुआ है।एक तो यह कि यदि परिवार में यदि सिर्फ एक ही बच्चा है तो खर्चा भी कम होता है दूसरा एक बच्चा होने के कारण लोग अपने बुढापे में उस पर निर्भर नहीं रह सकते इसलिए भी लोग अपने बुढापे के लिए अधिक पैसा बचाते हैं।
जनसंख्या को नियंत्रण करने का एक मुख्य कारण आर्थिक था,ताकि प्राकृतिक संसाधनों का कम दोहन हो,बेरोजगारी न बढ़े,अधिक जनसंख्या होने के कारण मजदूरों का जो आर्थिक शोषण होता है,वह न हो और अतिरिक्त मुहं खाने का इंतजार न करें।
चीन में परिवार नियोजन की नीति के सफल होने पर वे लाभ तो हुए हैं जो सरकार और नीति बनाने वालों ने सोचे थे लेकिन इस नीति के कारण कुछ समस्याएं भी सामने आई हैं
अनेक अन्य एशियाई देशों की तरह चीन में भी लड़के को लड़की की तुलना में प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति रही है। एक परिवार एक बच्चे की नीति लागू होने के बाद इस का खामियाजा बहुत सी स्थितियों में गर्भ में पल रहे उस बच्चे को झेलना पड़ा है,जो लड़का नहीं है, यदि एक ही बच्चा होना है तो वह लड़का हो तो बेहतर है यह सोच पूरी तरह से गायब नहीं हुई है।हाल ही में सम्पन्न जनगणना से पता चलता है कि लड़कियों की संख्या का अनुपात लड़कों की तुलना में बहुत कम हुआ है।भारत में भी ऐसी ही स्थिति है।
परिवार में एक ही बच्चा होने पर 4,2 ,1 की समस्या का भी सामना समाज को करना पड़ रहा है।एक बच्चे की नीति के लागू होने के बाद पहली ऐसी पीढ़ी अब बड़ी हो गई है और उस एक बच्चे को अपने मां-बाप के साथ अपने दादा दादी और नाना नानी की देखरेख करने का जिम्मा उठाना पड़ रहा है जो किसी भी स्थिति में व्यवहारिक नहीं है,ऐसी स्थिति में उन बड़े बूढों को या तो अपनी पेंशन या जमा पूंजी के आधार पर अपना गुजारा करने पर मजबूर होना पड़ रहा है। आर्थिक स्थिति से भी अधिक बड़ी समस्या उन के अकेलेपन की है।एक बच्चा एक ही समय छह बड़े बूढों की देखरेख नहीं कर सकता,विशेष कर ऐसी स्थिति में जब उसे प्रतिस्पर्धा वाले जीवन में अपने और अपने जीवन साथी के सपने भी पूरे करने के लिए दिन रात जी तोड़ मेहनत करनी पड़ रही हो।
एक दूसरी समस्या मां-बाप के द्वारा बच्चे की जरुरत से अधिक देखरेख की है जिसे मीडिया ने नाम दिया है लिटल एमपररज,यानिकि छोटे शहनशाह।बीस साल पहले जब पहली एक बच्चे वाली पीढ़ी बड़ी हो रही थी,लोगों को यह चिंता थी कि एक बच्चा होने के कारण और मां बाप के द्वारा अधिक ध्यान देने के कारण और कोई भाई बहन न होने के कारण शायद यह पीढ़ी सामाजिक व्यवहार में,मानसिक रुप से और भावनात्मक रुप से पूरी तरह परिपक्व न हो। लेकिन अब क्योंकि यह पीढ़ी अपनी उम्र में आ चुकी है और इन में से अनेक ने अपना अपना परिवार भी बना लिया है,यह समस्या अप धीरे-धीरे चर्चा से बाहर हो रही है।इस पीढ़ी के सामने अब सब से बड़ी समस्या अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने की है।लेकिन एक बच्चा होने के कारण मां-बाप को ऐसी स्थिति का सामना तो करना पड़ ही रहा है जब वह बच्चा बड़ा हो कर विदेश जा कर पढ़ना चाहता हो,या किसी दूसरे शहर में जा कर काम करना चाहता हो।
एक परिवार एक बच्चे की नीति के परिणाम स्वरुप समाज में युवा लोगों की तुलनात्मक रुप से कमी की स्थिति भी देखने को मिल रही है। आने वाले सालों में यह समस्या और गहरी हो सकती है जब काम करने वाले युवा लोगों की कमी दिखाई पड़ेगी और ऐसे लोगों की संख्या में बढ़ोतरी होगी जो काम करने की स्थिति में नहीं है,ऐसे में उन की देखरेख का,स्वास्थ्य का बोझ समाज पर बढ़ सकता है।
इन सब कारणों को ध्यान में रख कर सन 2007 में 30 सदस्यों ने सीपीपीसीसी के सामने इस नीति पर पुनर्विचार करने के लिए आवेदन किया था।लेकिन सरकार का मानना है कि अभी इस नीति को बदलने का समय नहीं आया है।लेकिन इस समस्या पर मीडिया में और बुद्धिजीवी वर्ग में काफी चर्चा हो रही है कि अब समय आ गया है कि बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित रखते हुए सामाजिक समसरता और समाज के सतत विकास के मद्देनज़र इस नीति में कुछ फेरबदल किया जाए और शहर में उन लोगों को जो दूसरा बच्चा चाहते हैं ,उन्हें दूसरा बच्चा पैदा करने की छूट दी जाए।