दोपहर के 12 बजे पेइचिंग के पांच तारा होटल होलेटे इन से रवाना हुए। पेइचिंग हवाई अड्डे तक पहुंचने में करीब एक घंटा का समय लगा। इस दौरान हमारे साथ चंद्रिमा जी भी थीं। और रास्ते में लुशान पहाड़ पर पुरस्कार वितरण समारोह, लूशान पहाड़ का भ्रमण, लूशान पहाड़ पर रात बिताना, चिनडेचेन कस्बे का दौरा, चीनी मिट्टी बर्तन बाजार, वूय्वान में रात बिताना, वूय्वान का भ्रमण, सान छिंग शान पहाड़ का भ्रमण, सान छिंग शान पहाड़ के नीचे रात बिताना, नानछांग के लिये रवाना, लंबी दीवार का भ्रमण, थ्येन आन मन व शाही महल संग्रहालय का दौरा, सी.आर.आई. का दौरा के बारे में मैं अपने अनुभव को चंद्रिमा जी को बताया। तो उन्होंने मुझ से पूछा कि इस तरह का अनुभव आप को हुआ, तो इससे आप क्या कर सकते हैं?तो मैंने उनसे बताया कि यह सभी अनुभव को मैं अपने कल्ब मित्रों व दूसरे कल्ब मित्रों को एकत्रित करूंगा। जिस में कुछ स्थानीय समाचार पत्र के संवाददाता भी होंगे। और उन सब लोगों को अपनी चीन यात्रा के दौरान खिंचे गये चित्रों को दिखाऊंगा। और अपने अनुभवों को बताऊंगा, ताकि भविषय में उन लोगों में इसी को चीन आने का अवसर मिले तो उपर दिये गये सुन्दर दृश्यों का नजारा ज़रूर ले सकें। यह बात स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित की जा सके। इस सी.आर.आई. के श्रोताओं में बढ़ोत्तरी हो सकेगी। और चीन भारत के संबंधों में सुधार का एक रास्ता भी बनेगा। क्योंकि अगर चीन भारत की संस्कृति एक जैसी होगी। तो दोनों देशों का संबंध मधुर होने की संभावना अधिक होगी। और भारत चीन की जनसंख्या विश्व भर में सब से ज्यादा है। और भारत चीन में युवाओं की संख्या अधिक है। अगर ये दोनों देश मिलकर कोई काम करेंगे, तो पूरे विश्व में एक उदाहरण बन सकते हैं। और भारत चीन से उन गरीब देशों का अधिक से अधिक लाभ भी हो सकता है। क्योंकि दोनों देशों का सामान बहुत सस्ता कहीं भी खरीदा जा सकता है। यह सब स्थिति देखने व सोचने से यह स्पष्ठ होता है दोनों पड़ोसी देश को एक मत होने की अत्यअधिक आवश्यकता है। और इस में भारत चीन वासियों को सहयोग करने की आवश्यकता है। इस तरह बातें होते, हम दोनों पेइचिंग हवाई अड्डे पर पहुंचे और वहां पहुंचकर कुछ बातें और हुई, जो मैं चंद्रिमा जी का जवाब दिया और बताया, कि सच में चीन एक अच्छा देश है। यहां के लोगों का चरित्र अच्छा है। और ईमानदारी है। इस बात को मैं नहीं भूल पाऊंगा। और नहीं सी.आर.आई. के सदस्यों को भूलूंगा। रही बात अच्छा लगने कि तो जब कहीं कोई कुछ दिनों तक रह जाता है। तो सब कुछ एक जैसा लगता है। चाहें वह भारत हो या विदेश, इसलिये मेरा अनुभव है कि अपनी जन्मभूमि हमेशा याद आती रही है। यहीं अपनी बातें खत्म करके मैं चंद्रिमा जी से पिछड़ गया। और मैं जहाज के लिये रवाना हुआ, मुड़ मुड़ कर मैं चंद्रिमा जी को देखता रहा। लेकिन भीड़ में नहीं वह दिखायी दीं। इस तरह मैं वापस भारत आया। धन्यवाद।